निद्रा अनिवार्य भी, उपयोगी भी

August 1993

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निद्रा मनुष्य के लिए आवश्यक और उपयोगी है। इसका न होना अथवा उससे वंचित कर देना व्यक्ति को विक्षुब्ध जैसी स्थिति में ला खड़ा करता है। सूक्ष्म यातनाओं का महत्वपूर्ण आधार यही है। सामान्य मनुष्य के लिए सूक्ष्म जगत से संपर्क उसी स्थिति में बन पड़ता है। यही शारीरिक मानसिक थकान मिटाने का सर्वसुलभ साधन है।

मनो वैज्ञानिकों के अनुसार निद्रा में सचेतन भाग अवचेतन की स्थिति में सिर्फ इस लिए नहीं जाता है कि उससे थके अंगों को आराम मिलें, वरन् उस स्थिति में अंतरिक्ष में प्रवाह मान विद्युत धाराओं में भी उपयोगी अंश संगृहीत संपादित करने का अवसर भी मिलें, प्रयोजन यह भी होता है। एरियल और एंटीना विद्युत चुंबकीय तरंगों को पकड़ता है। निद्रा अवस्था में हमारा अचेतन मस्तिष्क उसी स्थिति में बन जाता हैं और आकाश से इतनी विद्युत खुराक प्राप्त कर लेता है, जिससे शारीरिक मानसिक क्रियाकलापों का का संचालन ठीक प्रकार संभव हो सकें। निद्रा की पूर्ति होने पर शारीरिक और मानसिक स्थिति में तो गड़बड़ी उत्पन्न होती है उसे मनोविज्ञान के अनुसार “चेतनात्मक मुमुक्षा “ कहते हैं। आवश्यक विद्युतीय खुराक न मिल पाने के कारण ही यह दशा पैदा होती हैं इसके बने रहने पर मनुष्य विक्षिप्तों या अर्धविक्षिप्तों जैसा व्यवहार करने लगता है। पागल पन का एक कारण अनिद्रा भी है। अनिद्रा में इस विद्युतीय आहार की ही कमी पड़ती है।

लम्बी अनिद्रा के कारण उक्त विद्युत की आपूर्ति में जब अवरोध उत्पन्न होता है, तो न सिर्फ शारीरिक मानसिक स्वास्थ गड़बड़ाता है, अपितु उस शक्ति का भी ह्रास होने लगता है। जो अतीन्द्रिय अनुभूति का महत्वपूर्ण आधार है। स्वस्थ मनुष्य में जैसे जैसे यह ऊर्जा बढ़ती हैं, इंद्रियातीत सामर्थ्य की संभावना भी तद्नुरूप बलवती होती जाती है। योगी यती इसी विद्युत को बढ़ाकर ऐसी क्षमताएँ अर्जित कर लेते हैं जिन्हें जन सामान्य ऋषि सिद्धि के नाम से जानते हैं। निद्रा संवर्धन और अनिद्रा अभिवर्धन में इसका कितना बड़ा हाथ हैं, उसे प्राणायाम का कोई भी अभ्यासी सहज ही अनुभव कर सकता है। देखा गया है कि अभ्यास ज्यों ज्यों बढ़ता है, बुद्धी तीक्ष्ण होती है और गहरी निद्रा आती है। गहन निद्रा का यह गुण शारीरिक हल्कापन भी है और दूसरा भव्य संबंधी स्वप्न का दिग्दर्शन भी है।

यों निद्रा संबंधी सामान्य सोच कि रात्रि में हम जितना समय सोते हैं, उतना खोते हैं, पर यह अवधारणा अब गलत साबित होती जा रही है। वैज्ञानिक शोध अब यह सिद्ध करने की स्थिति में आ गयी है, कि हमारा सोया हुआ समय भी उपयोगिता की दृष्टि से उतना ही महत्वपूर्ण हैं, जितना जागरण का, तो कदाचित कोई अत्युक्ति न होगी।

सीखने समझने के लिए कितने ही ऐसे कार्य इस दशा में सम्पन्न किये जा सकते हैं, जैसे जाग्रतावस्था में। मनो वैज्ञानिकों को इस कथन के पीछे सत्य अब सूर्य की तरह झाँकने और यह प्रमाणित करने लगा है कि नींद आना निरर्थक समयक्षेप जैसी प्रक्रिया न होकर ज्ञान संपादन की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। ऐसा ही समाचार पूर्व सोवियत संघ के “ नेवेत्सो न्यूज एजेन्सी “ ने अब से कुछ वर्ष पूर्व वहाँ के अखबारों में छापा, तो लोग आश्चर्य चकित रह गये। शरीर शास्त्रियों ने इसे शेखचिल्लियों जैसी कल्पना बताया, तो रूस के अनेक महाविज्ञानियों ने उन मनः शक्तियों का उपहास उड़ाया, जिनने इस प्रकार का दावा किया था, पर कई दिन पश्चात जब वहाँ के परिणाम प्राप्त होने शुरू हुए तो उनका संदेह जाता रहा। यहाँ तक कि उनने स्वयं भी वहाँ जाकर परीक्षण का सूक्ष्म निरीक्षण किया और किसी प्रकार के संयम की गुँजाइश न रहने पर संतोष व्यक्त किया।

इस अनुसंधान के शुरुआत की भी अत्यन्त रोचक घटना है। हुआ यों कि कुछ वर्ष पूर्व मूर्धन्य मनःशास्त्री इगोर इवानोविच अपने साथी मनोवैज्ञानिकों के साथ नींद और स्वप्न की प्रक्रिया पर विचार कर रहे थे कि अचानक उनके दिमाग में स्वप्न की वह बात कौंधी, जिसके माध्यम से यदा कदा स्वप्न द्रष्टा को सही सूचना प्राप्त हो जाती है। बस, फिर क्या था उनके मस्तिष्क में इस संदर्भ में उधेड़ बुन आरंभ हो गयी। वे और उनके सहयोगी इस विषय पर गंभीरता पूर्वक वार करने लगे, कि जब स्वप्नों में दिमाग सत्य संदेश प्राप्त कर सकने में सक्षम है, तो क्या निद्रावस्था में उसे सूक्ष्म शिक्षण सम्प्रेषित कर प्रशिक्षित नहीं किया जा सकता?

इन्हीं संभावनाओं के बीच इस विलक्षण अन्वेषण कार्य का जन्म हुआ और मास्को के निकट दूबना नामक स्थान पर तत्संबंधी एक अनुसंधान शाला स्थापित की गयी। परीक्षण आरंभ करने से पूर्व मनोवैज्ञानिकों ने कुछ प्रतिमान बनायें, जिसके आधार पर प्रयोगार्थियों का चयन किया जाना था, पर इसका सबसे महत्वपूर्ण आधार गहरी नींद था। प्रयोग में उन्हीं व्यक्तियों को सम्मिलित किया गया, जिन्हें गहरी निद्रा आती थी। जो शेष प्रतिमानों के पूरे होने पर भी, गहरी नींद के अनुबंध पूरे नहीं करते थे, उन्हें उसमें शामिल नहीं किया गया। दूसरी ओर जिन्हें गहरी नींद तो आती थी, पर वे शेष शर्तों को पूरी नहीं कर पाये, उन्हें भी अयोग्य घोषित कर दिया गया। कुल मिलाकर परीक्षण के अनुकूल उन्हें ही ठहराया गया, जो निर्धारित सभी शर्तों की पूर्ति करते थे।

प्रयोग आरंभ किया गया। इसमें सूक्ष्म ध्वनि तरंगों के माध्यम से प्रयोगार्थियों को नींद के दौरान अंग्रेजी एवं अन्य भाषा शास्त्र के टेप रिकार्ड सुनाये गये और जागने पर तद्विषयक अनेक प्रश्न पूछे गये, जिसके कुछ ने सही और कुछ ने गलत जवाब दिये। सही उत्तर न दे सकने के कारणों का स्पष्टीकरण करते हुए मनःशास्त्रियों का कहना था संभवतः इसका कारण मस्तिष्कीय अनुकूलता का अभाव था। जिस मस्तिष्क ने जितनी जल्दी स्वयँ को परीक्षण के योग्य ढाल लिया, उसने उतनी ही जल्दी सूचनाओं और संदेशों को ग्रहण करना आरंभ कर दिया, पर इसकी कमी सूक्ष्म संकेतों को ग्रहण करने में बाधा उत्पन्न करती हैं, ऐसा मनोवेत्ताओं का अभिमत था। दूसरी ओर यह दृढ़ विश्वास भी कि जैसे जैसे मस्तिष्क की अनुकूलता विकसित होगी, वैसे वैसे उनकी ग्रहणशीलता में भी उत्तरोत्तर विकास होता चला जायेगा। मनोवैज्ञानिकों का मत है कि इस प्रक्रिया द्वारा लोग सोते में भी सारगर्भित जानकारी अर्जित कर उस समय का अतिरिक्त उपयोग कर सकेंगे, जिसे बोल चाल की भाषा में “ सोना अर्थात् खोना “ जैसे संबोधनों से अभिहित किया जाता है। प्रयोग अभी जारी है।

इसका परिणाम चाहे जो हो, इस तथ्य से सर्वदा इन्कार नहीं किया जा सकता है कि हम सोते होते हैं, तब भी प्रकारान्तर को जागते रहते हैं। अंतर सिर्फ इतना होता है कि इसमें चेतन का एक स्वल्प अंश अचेतन स्थिति में चला जाता है, पर उसका अधिकाँश भाग अपना कार्य यथावत् करता रहता है। हृदय का धड़कना, साँस का चलना, रक्त का दौड़ना उस अवस्था में भी ज्यों का त्यों जारी रहता है। ऐसी दशा में बाहरी शिक्षण किस प्रकार उतर जाय, तो इसे आश्चर्यजनक तो कहा जा सकता है, पर संभव नहीं। यह प्रक्रिया योगी स्तर के उन लोगों में स्पष्ट देखी जाती है, जिनकी चेतना तनिक परिकृष्ट हो गयी हो। फिर वह सोते हो, अथवा जागते हो, उनकी व्यष्टि चेतना समाविष्ट चेतना से इस प्रकार गुंथ जाती है कि अदृश्य के गर्भ में जो भी घटना पकती पनपती रहती है, उसकी महत्वपूर्ण जानकारी जागते ओर सोते हुए में समान रूप से प्रत्यक्ष मूर्तिमान होने लगती है। महापुरुषों स्वप्न प्रायः इसी स्तर के होते हैं। उनमें सामान्य जनों जैसे औंधे सीधे दृश्यों का जाल जंजाल नहीं होता, वरन् उसमें सोद्देश्य सूचनाओं का सारगर्भित समावेश होता है।

संक्षेप में नींद एक साथ अनेक प्रयोजन पूरे करती हैं। वह शरीर और मस्तिष्क की क्लाँति मिटा कर उन्हें नई स्फूर्ति से ओत प्रोत करती ओर उस ऊर्जा की भरपाई करती है जिसका की कार्य के क्षणों में क्षरण होता है। इसे अनिवार्य भी माना जा सकता है एवं जो इसके संबंध में सामान्यता भ्रांतियां संव्याप्त हैं, उन्हें पूर्णतः निर्मूल भी अब किया जा सकता है।


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