अंतरंग व बहिरंग के ऐश्वर्य की प्रगति की राजमार्ग

August 1993

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प्रकृति के रहस्यों करो जितनी तत्परता सो खोजा जा रहा है, जितने अधिक प्रयास उस दिशा में नियोजित होते जा रहे है, उसमें एक से एक बड़े रहस्यों और शक्ति स्रोतों का पता लगाया जा रहा है। आदिम काल में सम्भवतः मनुष्य भी अन्य पशुओं की तरह मात्र अपनी शरीर चर्चा तक ही निर्भर था। तत्पर पूर्ण शोधों अग्नि, विद्युत अणु-ऊर्जा आदि अनेक शक्तियों को उसके वशवर्ती बना दिया ज्ञान विज्ञान की अभिन्न उपलब्धियां ही उसे सशक्त और सुसंपन्न बनाती चली जा रही है। यह सब तत्परता पूर्ण शोधों का ही परिणाम है। वैसा न कर पाने के कारण अन्य प्राणी असमर्थ एवं असहाय ही बने हुए है। यों प्रकृति का विशाल भाँडागार उनके समक्ष भी वैसा खुला पड़ा है, जैसा कि मनुष्य के सामने।

प्रकृति क्षेत्र में और भी अधिक महत्व पूर्ण व रहस्यपूर्ण चेतना का समुद्र है। वह सूक्ष्म जगत के रूप में इस समस्त ब्रह्मांड में हिलोरे ले रहा है। समुद्र को रत्नाकर, रत्नभंडार कहा जाता है। प्रकृति में तो उनकी कुछ तरंगें लहराती दिखती भर हैं। बीज रूप से वह ब्रह्मांडीय चेतना मनुष्य के कण-कण में भरी है जो सम्पदाओं और विभूतियों का स्रोत, कारण और आधार है। हमारे भीतर व बाहर इतना कुछ है, जिसकी कल्पना करना तक अशक्त है। न तो ब्रह्मांड के विस्तार की कल्पना हो सकती है और न चेतना के अंतरंग बहिरंग-स्तरों की गरिमा का मूल्याँकन कर सकना ही संभव है। वस्तुतः अनंत वैभव के भाँडागार के बीच ही निवास कर रहे है।

दारिद्रय व अतृप्ति मिटाने के लिए जिस वैभव की आवश्यकता है, उसकी उपलब्धि हेतु दो ही पुरुषार्थ जरूरी है- एक तत्परता पूर्ण शोध व दूसरा विज्ञान शक्तियों का पराक्रम पूर्ण उपयोग। जो यह चरण उठा सका, उसके लिए ऐश्वर्य और आनन्द की कोई कमी नहीं रह सकती। इस दिशा में अग्रगामी होने का राजमार्ग ही साधनापथ कहलाता है


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