माँत्रिकी में है चमत्कारी शक्ति

August 1993

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मंत्र की शक्ति सामर्थ्य सभी भौतिक शक्तियों से बढ़कर है। इस तथ्य की जानकारी भारतीय तत्त्वदर्शियों ने प्राचीनकाल में ही प्राप्त कर ली थी। यों तो हम जो कुछ भी बोलते या उच्चारण करते हैं। उसका प्रभाव व्यक्तिगत और समष्टिगत रूप से सारे ब्रह्मांड पर पड़ता है। तालाब में फेंके गये एक छोटे से कंकड़ से उत्पन्न जल तरंगें दूर तक जाती हैं। उसी तरह हमारे मुख से निकला हुआ प्रत्येक शब्द आकाश के सूक्ष्म परमाणुओं में कंपन उत्पन्न करता है। उसके कंपन से लोगों में अदृश्य प्रेरणायें जाग्रत होती है। शब्द की इस सामर्थ्य से स्थूल जगत में पदार्थ और आकाश स्थित पिण्डों में जबर्दस्त विस्फोट किया जा सकता है। यही नहीं ग्रह नक्षत्रोँ में पायी जानें वाली सूक्ष्म प्राण-विद्युत, प्रकाश, गर्मी आदि को भी आकर्षित किया जा सकता है। आवश्यकता मात्र उनकी जानकारी एवं सही प्रयोग की है। इसी आधार पर मंत्रों एवं वैदिक ऋचाओं का निर्माण हुआ है। देखने में शब्द और प्रार्थनायें लगने वाले मंत्र ओर ऋचायें एक प्रकार के यंत्र हैं जिनका विधिवत् प्रयोग यदि कोई कर सके तो वह सारे संसार का स्वामित्व प्राप्त कर सकता है।

ध्वनि विज्ञान की आधुनिकतम उपलब्धियाँ यह बताती हैं, कि क्रमबद्ध ध्वनि कंपनों की सामर्थ्य असामान्य है। अल्ट्रासाउंड जैसी सूक्ष्म कर्णातीत ध्वनि तरंगों को जब विद्युत आवेश प्रदान किया जाता है तो उनकी भेदन क्षमता इतनी बढ़ जाती है कि सघन से सघन वस्तु के परमाणुओं का भी भेदन करके उनकी रचना का स्पष्ट फोटोग्राफ प्रस्तुत कर देती है। इसी तरह चिकित्सा जगत में सूक्ष्म ध्वनि तरंगों के प्रयोगों से यह सिद्ध हो गया है कि सामान्य से ध्वनि कंपन में जब इतनी सामर्थ्य है, तो मंत्रों में, जिनका कि गुम्फन ही विशेष रूप से ऋषियों द्वारा हुआ, कितने शक्तिशाली होंगे। मंत्र शक्ति से कभी रोग निवारण, विष मनोगति द्वारा मारण, मोहन, उच्चाटन आदि प्रयोग सफलता पूर्वक संपन्न होते रहे हैं। रामायण एवं महाभारत में मंत्र प्रेरित शास्त्रों की मार होती थी। उससे परमाणु बमों से भी भयंकर ऊर्जा उत्पन्न होती थी, इसलिए उसका बड़ा सधा हुआ उपयोग संभव हो पाता था। उस शक्ति से सैनिकों के समूहों को भी नष्ट किया जा सकता था। और हजारों की भीड़ में छिपे केवल एक ही व्यक्ति को भी मारा जा सकता था। यह सब उस शब्द विज्ञान का ही चमत्कार था जिसकी हल्की सी जानकारी ही अभी तक भौतिक विज्ञान को मिल गई है।

मंत्रशक्ति से भौतिक और आध्यात्मिक सभी तरह के लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं। प्राचीनकाल के योगी, ऋषि और तत्वदर्शी महापुरुषों ने मंत्र बल से पृथ्वी, देवलोक, और ब्रह्मांड की अनंत शक्तियों पर विजय पाई थी। मंत्रशक्ति के प्रभाव से वे इतने समर्थ बन गये थे कि इच्छानुसार किसी भी पदार्थ का हस्तांतरण, शक्ति को पदार्थ और पदार्थ को ऊर्जा में बदल देते थे। शाप और वरदान मंत्र का ही प्रभाव माना जाता है। एक क्षण में किसी का रोग दूर कर देना, पल भर में करोड़ों मील दूर की बात जान लेना, एक नक्षत्र से दूसरे नक्षत्र की जानकारी और शरीर की 72 हजार सूक्ष्म नाड़ियोँ के एक-एक जोड़ की जानकारी तक मंत्र की ही अलौकिक शक्ति थी। इसीलिए भारतीय तत्वदर्शन में मंत्र शक्ति पर जितनी अधिक शोधें हुई हैं। उतनी और किसी पर नहीं हुई है। मंत्रों के आविष्कारक होने के कारण ही ऋषि मंत्र दृष्ट कहलाते थे। वेद और कुछ नहीं एक प्रकार के मंत्र विज्ञान है जिसमें विराट् विश्व-ब्रह्मांड की उन अलौकिक सूक्ष्म और चेतन सत्ताओं तथा शक्तिओं तक से संबंध स्थापित करने के गूढ़ रहस्य दिये हुए हैं। भौतिक विज्ञानी अभी इस क्षेत्र की मामूली सी जानकारी ही प्राप्त कर सके हैं।

मंत्र का सीधा संबंध उच्चारण या ध्वनि से है, इसलिए इसे ‘ध्वनि विज्ञान’ भी कह सकते हैं। अब तक इस दिशा में जो अनुसंधान हुए हैं। और निष्कर्ष निकले है, वह बताते हैं कि बुद्धिवादी व्यक्ति मंत्र शक्ति पर भले ही विश्वास न करे, पर वैज्ञानिक अब उसी दिशा में अग्रसर हैं। न्यूयार्क-अमेरिका के मूर्धन्य अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिक डॉ. लारेन्स क्रेर्स्टा ने स्पेक्टोग्राफ जैसे उपकरणों के माध्यम से विभिन्न आयु वर्ग के हजारों लोगों की आवाजों का ग्राफ खींचने और उनका विश्लेषण करने के बाद निष्कर्ष निकाला है कि प्रत्येक व्यक्ति के ध्वनि कंपन से जो रेखायें बनती हैं। वे अलग-अलग प्रकार की होती हैं। लेकिन किसी व्यक्ति द्वारा बोला गया एक ही वाक्य स्वस्थ-अस्वस्थ अधिक या कम ताप या दबाव आदि अवस्थाओं में सदैव अपरिवर्तित बना रहता है। इसका अर्थ यह हुआ कि ध्वनि तरंगों में इतनी सामर्थ्य होती है। कि प्राकृतिक परिवर्तनों यथा हवा-तूफान, वर्षा तापमान आदि का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, प्रत्येक अवस्था में लकीरें एक व्यक्ति की एक ही तरफ होंगी। इसी तरह प्रत्येक मंत्र का तरंगों के रूप में विस्तार एक ही तरह का होता है। लकीरों ग्राफ की आकृति-प्रकृति भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा भले ही भिन्न होँ, अर्थात् यदि एक व्यक्ति एक वाक्य या मंत्र बोलता है तो आगे बढ़ने या पीछे लौटने वाली लकीरें लम्बी या छोटी हो सकती हैं। पर उनकी आवृत्ति एक ही तरह की होगी।

सामान्य रूप से बोली जानें वाली ध्वनि तरंगें थोड़ी आगे बढ़कर समूचे विश्व ब्रह्मांड में फैल जाती हैं। और कुछ ही सेकेंडों में प्रतिक्रिया सहित वापस लौट आती हैं। परावर्तित कंपनों में उसी तरह के अनेक भाव और विचार भागे चले आते हैं। और उच्चारणता में वैसे ही तत्वों को और बढ़ा देते हैं। इसलिए कहा जाता है कि बोला हुआ प्रत्येक शब्द मंत्र है, मनुष्य को बहुत सँभल कर केवल मधुर और आशयपूर्ण ही शब्द बोलना चाहिए।

मंत्र का विज्ञान इससे भिन्न प्रकार का है। जिन शब्द तरंगों की उपरोक्त पंक्तियों में चर्चा की गयी है। उनका आकार-प्रकार विद्युत शक्ति द्वारा निश्चित और प्रयुक्त होता रहा है पर मंत्र में किसी प्रकार की बाह्य शक्ति शब्द तरंगों को रूपांतरित नहीं करती। योग पद्धति मंत्र के उच्चारण से उत्पन्न ध्वनि को शब्द शक्ति ही विद्युत शक्ति प्रदान करती है जब कि मानवीय इच्छा या संकल्पशक्ति उस पर नियंत्रण करके कोई भी कार्य करा सकने में समर्थ होती है। जप और ध्यान नाद आदि कंपन और बिन्दु साधना का सम्मिलित रूप है। उससे सृष्टि के विराट् से विराट् और सूक्ष्म कण का भेदन भी संभव हो जाता है। इसलिए मंत्र की शक्ति को अकूत माना जाता है और अनुमान किया जाता है कि इस शक्ति का उल्लंघन ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा कोई अन्य देवता भी नहीं कर सकते। तभी तो मानसकार ने कहा है-मंत्र परम् लघु जासुवश, विधि, हरिहर, सुर सर्व। “

भौतिक विज्ञानियों के अनुसार मनुष्य कम से कम 20 और अधिक से अधिक 20000 कंपन वाली ध्वनि सुन सकता है। कुछ व्यक्ति इसके अपवाद हो सकते हैं, अन्यथा इस सीमा से बाहर वाले कर्णातीत ध्वनि कंपन कानोँ से सुनी नहीं जा सकती इतने पर भी उनका अस्तित्व इतना शक्तिशाली होता है कि बादलों के गर्जन से जिस प्रकार सारे प्राकृतिक परमाणु काँप जाते हैं। उसी प्रकार यह ध्वनि कंपन जहां कानोँ से सुनी नहीं जा सकती इतने पर भी उनका अस्तित्व इतना शक्तिशाली होता है कि बादलों के गर्जन से जिस प्रकार सारे प्राकृतिक परमाणु काँप जाते हैं। उसी प्रकार यह ध्वनि कंपन जहाँ से भी गुजरते हैं- तीव्र हलचल उत्पन्न कर देते हैं। जीवों को नष्ट कर देना, परमाणुओं को उछालकर उड़ा ले जाना, उन्हें शक्ति में बदल देना-यह सब कर्णातीत ध्वनि तरंगों की तीव्रता पर निर्भर करता है। मंत्रों में भी इन्हीं सिद्धान्तों का समावेश है। मंत्रोच्चार से भी कर्णातीत ध्वनि तरंगें निकलती हैं। उसे भावनाओं की श्रद्धा समन्वित मनोगति की विद्युत शक्ति जितनी अधिक मात्रा में मिलती है उतनी ही तीव्रता से वह आकाश के परमाणुओं को कंपाती हुई ध्यान वाले स्थान तक दौड़ी चली आती है। यह एक तथ्य है कि आकाश भी शून्य नहीं हैं। अपने अरबों-खरबों परमाणु बाल्टी में भरे पानी की भाँति भरे और गतिशील हैं। साधारणतया ध्वनि चारों दिशाओं में फैलती है, पर मंत्रों में शब्द इस प्रकार गुंजित होते हैं। कि उसकी ध्वनि तरंगें विशेष प्रकार की हो जाती हैं। गायत्री महामंत्र की ध्वनि तरंगें तार के छल्ले जैसी ऊपर उठती हैं। और यह सूक्ष्म अंतराल के परमाणुओं के माध्यम से सूर्य तक पहुँचती है और जब यह ध्वनि सूर्य के अंतराल से प्रतिध्वनित होकर लौटती हैं तो अपने साथ प्रकाश अणुओं की गर्मी, प्रकाश व विद्युत जप करने वाले के शरीर में उतारती चली जाती हैं। साधक उन अणुओं से शरीर ही नहीं, मन और आत्मा की शक्तियों का भी विकास करता चला जाता है और कई बार वह लाभ प्राप्त करता है जो साँसारिक प्रयत्नों द्वारा कभी संभव नहीं होते।

वेदों में प्रयुक्त प्रत्येक मंत्र का कोई न कोई देवता होता है। गायत्री का देवता ‘सविता ‘है। अर्थात् गायत्री उपासना से जो भी लाभ यथा आरोग्य, प्राण बल, धन-संपत्ति, पुत्र और अपनी महत्वाकाँक्षाएँ आदि पूर्ण होती है। उसकी शक्ति अथवा प्रेरणा सूर्यमण्डल से आती है। किसी भी मंत्र का जब उच्चारण किया जाता है तब वह विशेष गति से आकाश के परमाणुओं ईथर आदि के बीच बढ़ता हुआ उस देवता या शक्ति केन्द्र तक पहुँचता है। जिसका संबंध उस मंत्र से होता है। मंत्र जप के समय आवश्यक ऊर्जा मनकी शक्ति के द्वारा प्राप्त होती है। इस शक्ति के द्वारा जप के समय की ध्वनि तरंगों को विद्युत तरंगों के रूप में प्रेक्षित किया जाता है। वह तेजी से बढ़ती हुई कुछ क्षणों में देवशक्ति से टकराती हैं। उससे अदृश्य सूक्ष्म परमाणु मंदगति से परिवर्तित हो रही है। उनकी दिशा ठीक उलटी होती है सूक्ष्म और स्थूल दोनों तरह के परमाणु दौड़ पड़ते हैं और साधक को शारीरिक लाभ तथा मानसिक प्रेरणायें देने लगते हैं। मंत्र की परावर्तित शक्ति एवं बहुगुणित शक्ति ही मनुष्य को क्रमशः भौतिक सिद्धियों एवं आत्मिक विभूतियों की ओर अग्रसर करती है।

गायत्री महामंत्र की उपासना से साधक सूर्य के अंतराल का वेधन करके वहाँ के परमाणुओं में हलचल उत्पन्न कर देता है फलस्वरूप प्रकाश ऊर्जा -प्राण चेतना एवं प्रेरणाओं की सघन तरंगें साधक पर बरसने लगती हैं। प्रारंभ में आदान प्रदान की आवर्तन परावर्तन की प्रक्रिया थोड़ी धीमी होती है पर जैसे-जैसे मानसिक एकाग्रता बढ़ती जाती है। प्रतिक्रिया भी तीव्र होती जाती है और सूक्ष्म आत्मसत्ता भी तेजी से प्रकाश परमाणुओं से सुसज्जित होने लगती हैं जो देवशक्ति से आकर्षित होते हैं। यह प्रकाश परमाणु, उपासक में जितने अधिक विकसित होते जाते हैं वह उतना ही अधिक स्पष्ट भविष्य दर्शी, सार्थक स्वप्न, दृष्ट और चमत्कारिक प्रेरणाओं को प्राप्त करने वाला होता जाता है। श्रद्धा और विश्वास प्रगाढ़ होने पर लाभ की द्रुतगामी होती है। पर यदि ऐसा न हो तो भी साधक मंत्र जप के चमत्कारी लाभ से कभी वंचित नहीं होता।


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