अपने प्रिय शिष्य योत्जी के साथ ऋषि लाओत्जे किसी यात्रा पर जा रहे थे। वे उस नगर के पास से गुजरे जहाँ के राजा को कुछ दिन पूर्व युद्ध में मार दिया गया था। राज-प्रासाद जो कभी हास-विलास का केन्द्र था, आज भूत-प्रेतों का बास बना हुआ था।
खण्डहर देखकर लाओत्जे ने कहा-कितना भयंकर लगता है यह स्थान, आदमी की गति न होने से स्थान कितने नीरव और उदास लगते हैं। पता नहीं उस दिन धरती की स्थिति क्या होगी जिस दिन पृथ्वी से मानव का अस्तित्व उठ जायेगा।
“क्या यह संभव है भगवन् कि पृथ्वी से जनशून्य हो जायेगी। मानव का अस्तित्व उठ जायेगा?” शिष्य योत्जी ने प्रश्न किया। “हाँ वत्स पर संसार की गति उसमें बसने वाले साधारण आदमियों से नहीं है बल्कि उस आदमी के कारण है जिसकी स्फूर्ति से अनेक आदमियों के जीवन सही दिशा में चलते हैं। उनका न रहना और संसार को प्रेत-वास बनाना एक समान है।”