है यह बात सखे! स्थिर-हम तुम सबके अंतर्मन में।
अब भी रहते हैं वे “शान्तिकुँज” के ही आँगन में॥
करुणापूर्ण हृदय उनका है, मधु ममत्व की राशि।
छोड़ हमें-वे हो न सकेंगे, अन्य लोक के वासी।
याद करो आ जायेंगे वे, अभी उदास नयन में॥
उनके जाने का न तनिक दुख, हम निज मन में मानें।
पूर्ण करें युग परिवर्तन का कार्य, उन्हें पहचानें।
वे हैं शाश्वत दिव्य ज्योति, भर लें वह निज चेतन में॥
केवल तन ने यात्रा की है-मन तो यही बँधा है।
सिर्फ न रोये हम, उनका भी विह्वल कंठा रुँधा है।
रोज उतरते हैं प्रकाश बन, पूजा वाले क्षण में॥
आये थे वे हम सबकी ही, ब्रह्मकमल विकसाने।
अतः अधिक तप ऊर्जा लेने पहुँचे नंदन वन में॥
-माया वर्मा