“तारीख 6 को जो स्वप्न तुमने देखा था, वह स्वप्न नहीं-योगतन्द्रा की स्थिति थी। हम कभी-कभी अपने स्वजनों की देख भाल के लिए सूक्ष्म शरीर से जाया करते हैं। उस दिन तुम्हारे पास भी अपना वात्सल्य प्रकट करने गये थे। सा ही तुमने देखा।” ऐसे स्पष्ट संकेत परम पूज्य गुरुदेव की लेखनी से कम ही देखने को मिले हैं पर जहाँ लिखा है, सब खोल कर स्पष्ट लिखा है। वे सभी सौभाग्यशाली थे, जिनके पास उन्हीं की लेखनी में साक्षी रूप में ये पत्र हैं तथा अनुभूति रूपी निधि जिनकी अमूल्य धाती बन गयी।
परमपूज्य गुरुदेव लीला प्रसंग : 5