आप विश्वास देकर गये हैं हमें, अब अधिक हमारे पास में आयेंगे।
दिव्य संवेदना छलछलाते हुए, आप अन्तःकरण में उतर जायेंगे॥
इस विरह दग्ध अन्तःकरण में प्रभो, आप इस रूप में ही चले आइये।
लोक-पीड़ा शमन हेतु मन, प्राण में, दिव्य संवेदना बन समा जाइये॥
विश्व-पीड़ा कसकने लगे प्राण में, प्राण जब आप से प्रेरणा पायेंगे।
दिव्य संवेदना छलछलाते हुए आप अन्तःकरण में उतर जायेंगे॥
स्त्रोत संवेदना के रहे सूख अब, मानवी वेदना बढ़ रही इन दिनों।
व्यक्ति डूबे हुए व्यक्तिगत स्वार्थ में, भोग की वारुणी चढ़ रही इन दिनों॥
आप छाये न अन्तःकरण में अगर, क्रूर दुर्भाव मस्तिष्क पर छायेंगे।
आप विश्वास देकर गये हैं हमें, अब हमारे अधिक पास में आयेंगे॥
स्वार्थ को छोड़ सर्वार्थ पथ पर बढ़ें, बस यही प्रेरणा आप देना हमें।
प्राण पर पीर से छटपटाने लगें, दिव्य संवेदना आप देना हमें॥
दिव्य संवेदना स्त्रोत के साथ भी, प्राण क्या शुष्क पाषाण रह जायेंगे।
आप विश्वास देकर गये हैं हमें, अब हमारे अधिक पास में आयेंगे॥
-मंगल विजय