सन्त तालमुद के संबंध में यह प्रसिद्ध था कि जो उनके पास जाता है, आनंदित होकर लौटता है।
एक अमीर उनके पास गया और आनंदित रहने की विधि बताने की पूछताछ करने लगा। तालमुद एक पेड़ के नीचे बैठे चिड़ियों को दाना चुगा रहे थे। चिड़ियों की प्रसन्नता के साथ सन्त अपने को जोड़ कर आनंद विभोर हो रहे थे।
उसने अमीर से कहा “दुनिया में प्रसन्न होने का एक ही तरीका है दूसरे को देना। देकर उनके आनन्द में भागीदार बनना। तुम चाहो तो अपनी अमीरी जरूरतमंदों को लुटा कर स्वयं आनंदित रहने वालों में अग्रणी रह सकते हो।”
‘एण्डस एण्ड मिस’ में एलडुअस हक्सले ने लिखा है कि “जब तक वासनाओं से पूर्णतया मुक्त होकर मनुष्य आत्मानुभव की ओर अग्रसर न होंगे, तब तक समाज में परिवर्तन नहीं आ सकता है”। इसमें भारतीय आर्य विचारधारा की स्पष्ट छाप है।
एक बार फिर इतिहास की पुनरावृत्ति होने जा रही है। भारतीय संस्कृति बन कर भारत को विश्व-गुरु की गौरव-गरिमा प्रदान करने जा रही है। इक्कीसवीं सदी इसी सुखद आनन्द को लेकर आ रही है, इसमें किसी को तनिक भी संदेह नहीं होना चाहिए।