देह त्याग कर तुम अनन्त विस्तार हुए, स्वयं देह की सीमाओं के पार हुए।
सूक्ष्म हुए इतने कि तुम्हारी करुणा ने, छुआ धरा-नभ के हर कोने, हर कण को।
तुमने सोची जाति-वंश की बात नहीं, लक्ष्य तुम्हारा था सँवारना जन-जन को,
आत्म-चेतना का इतना विस्तार किया, काया छोटी पड़ी, तुम्हीं अवतार हुए।
विश्वामित्र, वशिष्ठ और ब्रह्मा जी ने, जिस गायत्री को कर सिद्ध, प्रसन्न किया,
प्रतिबन्धित जो रही, उसी गायत्री को, मुक्त किया, जन-श्रद्धा ये सम्पन्न किया,
प्रबल वेग धारण कर उसका स्वयं तुम्हीं, ज्ञान-शिखर बन, सुगम गंग की धार हुए।
तुमने दीप दिखाया यूँ मानवता को,स्वयं तुम्हीं सम्पूर्ण विश्व की दृष्टि बने,
तुमने किया प्रयत्न कि खण्डहर संस्कृति पर, श्रेष्ठ विचारों वाली नूतन सृष्टि बने,
ऐसी भीषण क्रान्ति विचारों में की जो, युग-दृष्ट तुम, युग के नवल विचार हुए।
आना है उज्ज्वल भविष्य अब-तुमने ही, दहशत भरी मनुजता को यह ज्ञान दिया,
किन्तु भयंकर तूफानों से लड़ने को, सभी प्रखर प्रतिभाओं का आह्वान किया,
महाकाल की वाणी बनकर तुम्हीं यहाँ, नये सृजन के लिये सुदृढ़ आधार हुए।
-शचीन्द्र भटनागर