1964 में गायत्री परिवार दक्षिण में इतना व्यापक नहीं हुआ था। बम्बई में कुछ ही व्यक्ति पूज्यवर की व गायत्री परिवार को जानते थे। बोरिवली के एक परिजन के यहाँ परमपूज्य गुरुदेव यज्ञ हेतु पहुँचे। यज्ञ के लिए धन संग्रह मात्र एक हजार रुपये ही का आया। उसी दिन प्रेरणा ने उन्हें एक नामी मिल के मालिक के पास पहुँचा दिया व शेष राशि उसने उसी समय नगद हाथों में दे दी। वह स्वयं यज्ञ में सम्मिलित होकर धन्य हुआ।
गुरुदेव के भोजन की व्यवस्था उनके ही घर में थी। कुल 6 व्यक्तियों का भोजन बना था, घर भी छोटा था। करीब पचास से ज्यादा व्यक्ति वहाँ उनके साथ पहुँच गए थे। उनने सबको भोजन के लिए बिठा दिया व परिजन की पत्नी से कहा “जहाँ पानी का मटका रखा है, वहाँ माँ गायत्री का फोटो रखकर एक दीपक जला दो। देखते ही देखते सीमित भोजन असीम हो गया। सभी ने भोजन पेट भर किया। बाद में उतना ही बचा जितने का भोजन बनाया गया था। मानो पूज्यवर के साथ बापा जलाराम की की झोली भी वहाँ पहुँच गयी थी”
परम पूज्य गुरुदेव लीला प्रसंग : 6