सन् 1970 की यह घटना है। परम पूज्य गुरुदेव उन दिन बहुधा बाहर ही बने रहते थे। उस दिन मथुरा से यात्रा कार्यक्रम से लौट ही थे। बेतिया के एक गायत्री परिजन श्रीराम कृष्ण सिंह परिवार सहित शिविर हेतु मथुरा गायत्री तपोभूमि आए थे। परम पूज्य गुरुदेव के दर्शन हेतु वे घीयामण्डी पहुँचे। चरण स्पर्श के पश्चात् कुशल क्षेम पूछी गयी। रामकृष्ण जी ने सबसे वृत्तान्त बताते हुए कहा कि “श्री उमाकान्त जी झा ने आपको प्रणाम कहा है।” श्री उमाकान्त झा एक 42 वर्षीय कर्मठ कार्यकर्ता थे। पूज्यवर से वर्षों से जुड़े थे। कुछ क्षण बाद पूज्यवर बोले “उमाकान्त एक बार आ जाते तो भेंट हो जाती। अब उनका समय पूरा हो रहा है।” इतना कहकर बातों का प्रवाह उनने दूसरी ओर मोड़ दिया। रामकृष्ण यह सब समझ नहीं पाए कि ऐसा क्यों पूज्यवर ने कहा।
शिविर समापन के बाद रामकृष्ण सिंह वापस बेतिया चले गए। कुछ दिन बाद उनका एक पोस्टकार्ड परमपूज्य गुरुदेव के नाम आया, जिसमें लिखा था “हम उस समय समझ नहीं पाए थे पर यह यहाँ आने पर पता चला कि जब आप यह बता रहे थे कि उमाकाँत आ जाते तो अच्छा रहता, अब उनका समय पूरा हो रहा है, उसी दिन अचानक वे अस्वस्थ हुए व रात्रि को चिर निद्रा में सो गए॥ आपके कहे का गूढ़ अर्थ हमारी समझ में अब आया है।”
परोक्ष जगत में घट रहे एक एक घटनाक्रम की जानकारी जिस दैवी सत्ता की थी, उनसे संबंधित इस प्रसंग की साक्षी स्वरूप यह पोस्टकार्ड व उस वार्तालाप को सुनने वाले एक वरिष्ठ कार्यकर्ता शाँतिकुँज में अभी भी है। श्री रामकृष्ण सिंह तो इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं हीं।