गायत्री से हम सबकी प्रार्थना (Kahani)

June 1991

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1008 कुण्डी गायत्री महायज्ञ (1958) का प्रसंग है। भोजन भण्डार गृह में जिन सज्जन की ड्यूटी लगी थी। उन्हें बड़ा आश्चर्य था कि कुल बीस बोरी आटा उनके सामने गिनकर भण्डार कक्ष में रखा गया था। नित्य चार लाख से अधिक व्यक्ति भोजन करते थे। नित्य अठारह बोरा निकाला जाता था तब भी स्टॉक यथावत बना हुआ था। परम पूज्य गुरुदेव से पूछने गए तो बताया गया कि “भण्डार गृह में दो बोरे हमेशा बने रहे। शेष व्यवस्था यथावत होती रहेगी।” नियमित सवेरे, शाम भोजन चलता रहा पर उनकी समझ में यही आया कि यह तो नित्य लीला स्वरूप पूज्यवर की चमत्कारी लीलाओं की एक छोटी झाँकी भर थी, जिसे देखने का उन्हें सौभाग्य प्रारब्धवश मिल गया था। अंत में उनने देखा कि कुल बीस बोरे आटा सबको भोजन कराके बचा। इस सबको देखकर वे नतमस्तक थे व आज भी जब वह सब याद करके उनका समर्पण उसी परिमाण में बढ़ता रहता है। लगभग यही घटनाक्रम सभी ने पिछले वर्ष श्रद्धाँजलि समारोह में भी देखा।

आने वाले समय में अनगिनत ऐसी अनुभूतियाँ हम सब के समक्ष आने वाली हैं जो परम पूज्य गुरुदेव के सूक्ष्म शरीर के संपर्क में आने से देश-राष्ट्र महाद्वीप की परिधि से परे विभिन्न व्यक्तियों को होगी। देह त्याग कर वे अनन्त विस्तार को प्राप्त हो गए हैं व अपने पीछे एक राज मार्ग छोड़ गए हैं जिस पर चलते हुए हर कोई आत्मिक-भौतिक सफलता को हस्तगत करते हुए जीवन लक्ष्य की प्राप्ति करता रह सकता है। अनुभूतियाँ हमें चकाचौंध मात्र न करें, हमारा मनोरंजन न कर हमें सही दिशा दें। यही परम पूज्य गुरुदेव की ब्राह्मीसत्ता एवं माँ गायत्री से हम सबकी प्रार्थना है।

अपनों से अपनी बात—


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