एक राजा जंगल में वन-विहार के लिए गया। राजा भूलकर बीहड़ों में भटक गया। संध्या हो गई। उसे वनवासियों की झोंपड़ी में आश्रम लेना पड़ा। उन लोगों के एक अपरिचित व्यक्ति पर भी सहज आत्मीयता दिखाई और भाव भरा सत्कार किया।
प्रातः चलते समय राजा ने अपना परिचय दिया और उन लोगों के आतिथ्य के बदले उस क्षेत्र में एक साधन सम्पन्न अस्पताल बनवा देने की घोषणा की ताकि वहाँ के निवासियों को बीमारियों से कष्ट न उठाना पड़े। अस्पताल खुल गया। उसमें बहुमूल्य औषधियाँ और उपकरण की सभी सुविधाएँ जुटाई गई। किन्तु मुद्दतें हो गई। कोई मरीज इलाज कराने नहीं आया। चिकित्सक बैठे-बैठे दिन काटते।
राजा ने अस्पताल की प्रगति देखने के लिए वहाँ का दौरा किया। पूछने पर मालूम हुआ कि कोई इलाज कराने आता ही नहीं।
समीपवर्ती गाँव के प्रमुख व्यक्ति बुलाये गये। राजा ने पूछा आप लोग अस्पताल से लाभ लेने क्यों नहीं आते?
वनवासियों ने नम्रतापूर्वक कहा-हम लोग भूख से कम खाते हैं और दिन भर कड़ा परिश्रम करते हैं फिर बीमार क्यों पड़ेंगे?
राजा का स्वस्थ जीवन का रहस्य विदित हो गया। वहाँ के अस्पताल का किसी शहर में स्थानान्तरण करा दिया।