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Akhand Jyoti
Year 1988
Version 2
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September 1988
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ओस की बूँदें दीखती तो मोती जैसी हैं। पर वे स्थिर कहाँ रह पाती हैं? आकर्षण भी ओस बिन्दुओं की तरह हैं।
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Page Titles
ज्ञान सबसे बड़ा देवता
उपासना के तीन उपक्रम
प्रगति का अनिवार्य आधार
मनुष्य में हिलोरें लेता चुम्बकीय महासागर
प्रशंसा के योग्य (Kahani)
अपरिग्रह व्रत का परिपालन
नसरुद्दीन बादशाह (Kahani)
स्वर्ग कहाँ? अपने ही इर्द−गिर्द
स्वस्थ जीवन का रहस्य (Kahani)
वेदान्त जोड़ेगा आध्यात्म और विज्ञान को
असाधारण मायावी (Kahani)
व्यक्तिवाद और अनौचित्य का संकट
सतयुगी व्यवस्था का मेरुदण्ड- ऋषि सत्ता
लार्ड बेडेन (Kahani)
ध्यान धारणा का स्वरूप और उद्देश्य
जैव चेतना की सर्वोच्च शक्ति का सुनियोजन
मानसिक अस्तव्यस्तता भी थकान का एक कारण
पंडितों की समझ (Kahani)
नैतिकी एवं परिस्थितिकी परस्पर अन्योन्याश्रित
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घृणा एवं प्रेम को अतिवादी न होने दें
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जहाँ हो जाती हैं सारी भाषाएँ मौन!
सेन खलें तो ही ठीक है!
प्रशंसा के भूखे लोग (Kahani)
सेवा साधना के व्रतधारी-जरथुस्त्र
शक्ति केन्द्रों का जागरण ऊर्जा का उर्ध्वगमन
मित्र भी बन गये (Kahani)
ठालीपन की नीरसता भारभूत
क्रिया कौशल में हमसे आगे हैं जीव जन्तु
किसे महत्व देंगे? दलीलों को या भावनाओं को
सुख बाँटना और ज्ञान बटोरना (Kahani)
हमीं आमंत्रित करते हैं इन विपत्तियों को
प्रतिकूलताएँ हमें विचलित न करने पायें
दया भी-प्रताड़ना भी
विजय का श्रेय (Kahani)
चिरस्थायी सम्पदा-चरित्र-निष्ठा
व्याधियाँ तन में नहीं कहीं और उपजती हैं
अभिनव संकल्पों के साथ मनाया गया गुरु-पर्व
अपनों से अपनी बात - सतयुग की वापसी इस प्रकार संभव होगी।
इस वर्ष की सृजन-साधना
अन्तः पुकार (Kavita)
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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