पंडितों की समझ (Kahani)

September 1988

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दो पंडित छात्र काशी पढ़कर अपने-अपने गाँव लौट रहे थे। उनके गाँव पास-पास ही थे। रास्ता पार करने के लिये दोनों साथ हो लिये।

रास्ते में एक गांव में रुके। परिचय पाकर गांव के मुखिया ने उन्हें अपने यहाँ ठहराने की व्यवस्था कर दी। दोनों को शौच स्नान से निवृत्त होकर तब भोजन करना था। सो दोनों बार-बारी बाहर गये।

एक पंडित बैडा हुआ था तो मुखिया ने दूसरे साथी की विद्वता के संबंध में पूछा- तो ईर्ष्यावश उसने कहा-वह तो मूर्ख हैं-निरा बैल। जब पहले वाला निवृत्त होने गया और दूसरा बैठा हुआ था तो मुखिया ने उससे भी वही प्रश्न किया वह भी ईर्ष्यालु न था। बोला पूरा गधा हैं।

जब दोनों निश्चिंत हो गये तो गृहपति ने धर भोजन के लिए बुलाया।

एक की थाली में घास रखी थी दूसरे की में भूसा। आश्चर्य से दोनों ने पूछा यह क्या?

विनयपूर्वक मुखिया ने कहा-आप लोगों ने ही तो एक दूसरे को परिचय में गधे और बैल के रूप में दिया था। उसी के अनुसार यह भोजन का प्रबंध है।

पंडितों की समझ में तब आया कि ईर्ष्या और पर-निंदा का क्या परिणाम होता है।


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