ठालीपन की नीरसता भारभूत

September 1988

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नीरस जीवन अपने लिए भारभूत और दूसरों के लिए उपहासास्पद बना रहता है। ऐसा जीवन निरुपयोगी होने के कारण अपनी अवधि जल्दी ही खत्म कर लेता है। पैंदे में फूटे होने के कारण ही यह उतने समय नहीं जलता जितने के लायक उसमें तेल बाती है।

समय से पूर्व मरने के कई कारण हैं। बीमारियों से घिरा हुआ व्यक्ति पूरी जिन्दगी नहीं जी पाता। अभावग्रस्त व्यक्ति के संबंध में भी यही बात कही जा सकती है। खाद पानी जिसे न मिलेगा उस पेड़ को समय से पहले ही सूखना होता है। अन्न वस्त्र के अभाव में दरिद्र कंगाल व्यक्ति ज्यों त्यों करके गाड़ी खींचते हैं और मंजिल तक पहुँचने से पहले ही लड़खड़ा जाते हैं। जड़ों में दीमक लग जाने पर तने से लेकर पत्तों तक सभी बीमार मालूम पड़ते हैं और आयुष्य पूरी नहीं कर पाते। चिन्ताग्रस्त आदमी तेज हवा में चौराहे पर रखे हुए दीपक की शमा के समान है। जिसका बुझना कभी भी संभव है।

मानसिक सरसता हिल-मिल कर रहने और सामूहिक जीवन जीने में उपलब्ध होती है। अकेलापन ऐसा है जैसे रेगिस्तान का पेड़। दूसरों के सुख-दुख में शामिल रहने से जीवन में सरसता बनी रहती है। जो लोग प्रसन्न, संतुष्ट, सुखी है उनके समीप रहने से उनकी प्रफुल्लता अपने हिस्से में भी आती है। चंदन के नजदीक उगे हुए पेड़ पौधे अनायास ही महकने लगते हैं। अपने हिस्से का सुख कोई किसी को बाँटता नहीं। पर उस वातावरण की सरसता समीपवर्ती लोगों के हिस्से में आये बिना नहीं रहती। विवाह, शादी दूल्हा-दुल्हन का होता है पर बराती और अतिथि आगंतुक उसमें प्रसन्नता से हिस्सा बँटाते हैं। यहाँ तक कि उसे देखने के लिए गाँव वाले और बच्चे लोग मजा लेने लगते हैं।

जीवन की संरचना समन्वय के आधार पर हुई है। प्रसन्नता को देखकर प्रसन्नता बढ़ती है। उत्साह भरे जुलूस प्रदर्शन दर्शकों को भी प्रमुदित करते हैं। यही बात दुख के संबंध में भी है। किसी कष्ट पीड़ित को देखकर अपनी भी करुणा उमड़ती है। मृत्यु हो जाने पर स्वजन संबंधी सहानुभूति के लिए पहुँचते हैं। इन आगन्तुकों को देख कर दुखी जनों का भी मन हल्का होता है। एकाकी व्यक्ति न सुख हजम कर सकता है न दुख पचा पाता है।

सहानुभूति रहित मन वाले अपने काम से काम रखते हैं। जिन्हें अपने मतलब से मतलब, ऐसे व्यक्ति जीवन में एक भारी कमी अनुभव करते हैं। उन्हें सब कुछ नीरस प्रतीत होता है। चौबीसों घंटे कोई काम से नहीं लगा रह सकता। खाली समय में सूनेपन से घिरा होता है तो श्मशान जैसा कर्कश लगता है। ऐसा व्यक्ति नीरसता के भार से लद जाता है और समय काटना भारी पड़ता है। जिसका सारा समय अपने लिए ही लगता है। जिसके लिए अपनी समस्याएँ ही समस्या हैं। जो अपना काम निपटा कर खाली शरीर और खाली मन रहता है उसकी नीरसता ही उसकी जिन्दगी को घटाती जाती है। उदासी अपने आपमें एक भार हैं जिससे लद जाने पर मनुष्य बीस गधों से लदा होने जितना कष्ट साध्य जीवन जीता है। उसके लिए न आगे बढ़ने की गुंजाइश न पीछे हटने की।

कई व्यक्ति सर्विस से रिटायर होने पर बाल बच्चों की जिम्मेदारियों से निवृत्त होने की प्रतीक्षा करते हैं और उस निश्चिन्तता में मौज के दिन बिताने की कल्पना करते हैं पर वास्तव में वैसा होता नहीं। जब तक जिम्मेदारियाँ हैं। जब तक काम का बोझ है तब तक मनुष्य स्वस्थ भी रहता है और प्रसन्न भी। कुछ आगे की बात सोचता है और कुछ समस्याएँ निपटाने के लिए योजनाएँ बनाता है, सोचता है, दौड़−धूप करता है। जब कुछ भी सामने नहीं रहता तब समय का एक-एक घंटा काटना पहाड़ की तरह भारी पड़ता है। ऐसा नीरस जीवन पीठ पर लाद कर कोई दीर्घजीवी नहीं बना सकता।

काम अपना हो या दूसरों का उसमें व्यस्तता चाहिए। वानप्रस्थ जीवन में पूरे समाज की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है लोक हित के कामों को अपनी निजी कामों की तरह तत्परता पूर्वक करते रहना पड़ता है। जो अपना भी नहीं करते पराया भी नहीं करते भगवान उनके नीरस दिनों में कटौती कर देते हैं और वे असमय में ही मरते हैं।


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