लार्ड बेडेन पावेल स्काउट-आँदोलन के जन्मदाता थे। इस अन्तर को दूर करने तथा भारतीय बालकों के साहस को परखने के लिए जनवरी 1929 में तत्कालीन वाइसरास लार्ड चेम्सफोर्ड के आमंत्रण पर भारत पधारे।
उनके सम्मान में इलाहाबाद में सेवा समिति, वाँय स्काउट और इंडियन स्काउट संस्थाओं ने स्काउटों की विशाल रैली को आयोजन किया। स्काउट चुस्ती से खड़े मुख्य अतिथि की जय-जयकार कर रहे थे। रैली के प्रधान संचालक पं. श्रीराम बाजपेयी ने मुख्य अतिथि लार्ड बेडेन पावेल से झंडा फहराने की प्रार्थना की। लार्ड बेडेन पावेल ने झंडे की रस्सी खींची परन्तु रस्सी झंडे के शीर्ष पर लगी धिर्री में फँस गयी। लॉर्ड बेडेन पावेल के काफी प्रयास करने पर भी ध्वज नहीं खुल सका।
उपस्थित जन समूह के सिर लज्जा से झुक गये। पं. श्रीराम बाजपेयी ने तुरन्त पास खड़े एक स्काउट बालक को आँख के इशारे से ध्वज-स्तम्भ पर चढ़ने का संकेत कर दिया। बालक बड़ी फुर्ती से बाँस के बने ध्वज-स्तम्भ पर चढ़ने लगा। ज्यों-ज्यों बालक ऊपर की और बढ़ने लगा, त्यों-त्यों बाँस अधिक भार के कारण लचकता गया। बालक ध्वज-स्तम्भ के मध्य भाग से थोड़ा ही ऊपर चढ़ा होगा कि बाँस टूट गया। बालक भी अत्यन्त धैर्यवान और साहसी था। उसने गिरते-गिरते टूटे डंडे को अपने हाथ में ले लिया और धड़ाम से जमीन पर आ गिरा। पर लड़के ने फिर टूटे बाँस पर चढ़कर भी झंडे को ऊपर बाँध दिया।