अन्तः पुकार (Kavita)

September 1988

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हारने लगे, तुम्हें पुकारने लगे। श्वास-श्वास में, तुम्हें गुहारने लगे॥

हार ने हमें, पुकार का पता दिया। हार ने हमें उदार का पता दिया॥

आह- अश्रु में, उसे निहारने लगे॥

वेदना से वेद-ज्ञान, की दिशा मिली। बोध की प्रभा लिये, हुए उषा मिली॥

प्राण-दीप, आरती उतारने लगे॥

दर्द-दाह की दुआ मिली, कृपा हुई। कराह प्रार्थना बनी, विभाजगा गई॥

तार-तार यों बजा, सितार तारने लगे॥

गीत बन गया, हृदय-पुकार वेदना। छन्द-छन्द में व्यथा, उतार भेजना॥

भीग-भीग अश्रु, छवि सँवारने लगे॥

अभाव यों मिले, स्वभाव प्पार हो गया। भाव से भरा हृदय, उदार हो गया॥

प्रहार वार ही हमें उबारने लगे॥

जो न पास आ रहे थे, दूर-दूर थे।

लुटा के प्यार-कोश सभी वारने लगे॥ हारने लगे तुम्हें पुकारने लगे।

श्वास-श्वास में, तुम्हें गुहारने लगे॥

- लाखन सिंह भदौरिया ‘‘सौमित्र’’

*समाप्त*


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