हारने लगे, तुम्हें पुकारने लगे। श्वास-श्वास में, तुम्हें गुहारने लगे॥
हार ने हमें, पुकार का पता दिया। हार ने हमें उदार का पता दिया॥
आह- अश्रु में, उसे निहारने लगे॥
वेदना से वेद-ज्ञान, की दिशा मिली। बोध की प्रभा लिये, हुए उषा मिली॥
प्राण-दीप, आरती उतारने लगे॥
दर्द-दाह की दुआ मिली, कृपा हुई। कराह प्रार्थना बनी, विभाजगा गई॥
तार-तार यों बजा, सितार तारने लगे॥
गीत बन गया, हृदय-पुकार वेदना। छन्द-छन्द में व्यथा, उतार भेजना॥
भीग-भीग अश्रु, छवि सँवारने लगे॥
अभाव यों मिले, स्वभाव प्पार हो गया। भाव से भरा हृदय, उदार हो गया॥
प्रहार वार ही हमें उबारने लगे॥
जो न पास आ रहे थे, दूर-दूर थे।
लुटा के प्यार-कोश सभी वारने लगे॥ हारने लगे तुम्हें पुकारने लगे।
श्वास-श्वास में, तुम्हें गुहारने लगे॥
- लाखन सिंह भदौरिया ‘‘सौमित्र’’
*समाप्त*