प्रशंसा के भूखे लोग (Kahani)

September 1988

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कौआ कहीं से एक मीठा पुआ उठा लाया था। पेड़ की टहनी पर ऊँचे बैठ कर उसे स्वाद से खा रहा था।

एक चालाक लोमड़ी उधर से गुजरी उसने सोचा किसी प्रकार कौए से पुआ हथियाना चाहिए।

उसने कौए से कहा, आपके मधुर स्वर की प्रशंसा सारे जंगल में फैली हुई है। उसी से आकर्षित होकर मैं आपके पास दौड़ी आई। कृपाकर एक छोटा गीत मुझे भी सुना दें तो बड़ा अनुग्रह हो।

कौआ अपनी प्रशंसा सुनकर फूला न समाया। तुरन्त काँव-काँव को रट लगाने लगा।

पुआ चोंच से छूट कर नीचे गिरा और उसे लेकर लोमड़ी चम्पत हुई।

प्रशंसा के भूखे लोग इसी प्रकार चापलूसों द्वारा ठगे जाते हैं।


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