उपासना के तीन उपक्रम

September 1988

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उपासना के अनेकानेक अभ्यास हैं। अनेकों योग सिद्धांत हैं। उनका निर्माण साधकों के निजी अनुभव अभ्यास के आधार पर बना हैं। उनके पीछे शास्त्रकारों की दूरदर्शी वेधक दृष्टि भी हैं। योगों की संख्या 74 बताई गई हैं। जिनमें राजयोग, हठयोग, मंत्रयोग, प्राणयोग, लययोग, स्वरयोग, नादयोग आदि प्रमुख हैं। मात्र शरीर से किये जाने वाले आसन बन्ध मुद्रा आदि की संख्या भी सुविकसित हैं। इन सभी का एक व्यक्ति द्वारा किया, अपनाया जाना असंभव हैं। हर किसी को अपनी स्थिति के अनुसार विस्तृत साधन विधियों में से कुछ का चयन करना पड़ता हैं। खाद्य पदार्थों की संख्या सैकड़ों हजारों में हैं पर अपनी थाली में रुचिकर और सुन्दर ही वस्तुएं संजोई जाती हैं। कपड़े अनेक फैशन के संसार भर में सिये जाते हैं। पर अपनी पसंदगी और सुविधा के कुछेक ही होते हैं। इसी प्रकार निर्धारित साधनाओं में से सभी-हर किसी के लिए नहीं हैं उसे अपनी अंतरंग और बहिरंग परिस्थितियों के साथ तालमेल बिठा सकने वाले ही चुनने पड़ते हैं।

नदियां अनेक हैं पर उनमें से गंगा, यमुना, सरस्वती का संगम ही तीर्थराज प्रयाग बनता हैं। इसी प्रकार साधना में तीन को ही प्रमुखता दी गई है। उन्हें ही सर्वसाधारण के लिए सुगम साथ ही थोड़े प्रयास में अधिक फल देने वाला माना गया हैं। इनमें छोटी मोटी भूल रहने पर भी किसी अनिष्ट की आशंका नहीं हैं। अनेकानेक साधनाओं का आविर्भाव इन्हीं की शाखा प्रशाखाओं के रूप में हुआ भी हैं।

ऐसी प्रमुख साधना धाराओं में तीन को वरिष्ठता दी गई हैं। एक जय, दूसरा प्राणायाम, तीसरा ध्यान। इनकी श्रेष्ठता भी क्रमशः एक के बाद एक की हैं। जप सामान्य हैं। माला पर

गिनती रहने और निर्धारित शब्दों की बार-बार पुनरावृत्ति करते रहने से, वातावरण को स्वच्छ

समाधान कारक बनाये रहने से जप की प्रक्रिया सही रूप में चल पड़ती हैं। शब्द गु¡थन मंत्र की विशेष शक्ति हैं। उसके अक्षरों का कुछ अर्थ भी होता हैं। पर वह अर्थ ऐसा नहीं हैं जो इससे पूर्व जाना ना गया हो या उस जानकारी मात्र से कुछ अधिक हित साधन होने वाला हैं। शिक्षा प्राप्त करना ही उद्देश्य हो तो स्वाध्याय सत्संग के आधार पर पूरा किया जा सकता हैं। मंत्रों से उनका अक्षर गु¡थन ही रहस्यमय हैं यदि उन्हें प्रयोग करते समय समुचित श्रद्धा विश्वास का पुट लगाये रहा जाय तो उसका समुचित प्रतिफल मिलकर ही रहता हैं।

एक शिष्य ने अपने क्षेत्र में घोषणा की, वह हर रोग का निवारण करने वाली एक दवा प्राप्त कर चुका हैं। हजारों आने लगे, शिष्य उनको जल से भरी कटोरी में अपनी शीशी से निकाल कर एक बूंद डाल देते। पीने वाले प्रायः सभी अच्छे होने लगते।

एक बार उसके गुरु को भयंकर बीमारी हुई। उनने शिष्य की चमत्कारी चिकित्सा विधि के संबंध में सुना। वे उसके पास पहुँचे। शिष्य ने उन्हें भी जल भरी कटोरी में एक बूंद दवा डालकर पिला दी। वे देखते-देखते अच्छे हो गये। बड़े चमत्कृत हुए और यह इच्छा करने लगे कि किसी प्रकार इस दवा का भेद उन्हें भी विदित हो जाये तो उनकी भी प्रतिष्ठा को सम्पदा बढ़ सकती हैं। उनने शिष्य को औषधि का नुस्खा पूछने का साहस कर ही डाला। उसने नम्रता पूर्वक बता दिया कि हर गुरुपूर्णिमा को आपके दर्शन करने जाता हूँ तभी आपके पैर धोकर एक बोतल भर लाता हूँ। एक-एक बूँद उसमें से देते रहकर साल भर में हजारों रोगियों का भला कर देता हूँ। आप इस कथन को अन्यथा न समझे मैंने वास्तविकता में ज्यों की त्यों आपके सामने प्रकट कर दी हैं।

गुरु बड़े उत्साह में थे। उनने भी अपने क्षेत्र में वैसे ही ढिंढोरा पिटवा दिया लोग आये गुरुजी ने अपने दोनों

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