तुम अधूरे नहीं, तुम अभागे नहीं (kavita)

February 1986

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तुम अधूरे नहीं, तुम अभागे नहीं, बात इतनी ही है, आप जागे नहीं।

बीज, वट-वृक्ष होना भुलाये हुये, उर्वरा भूमि की कोख पाये हुये; प्राण गलना नहीं चाहते धूल में- फूल-फल, लालसायें, लगाये हुये।

मेघ माली विकल, सींचने को खड़े, अंकुरों ने अमिय घूँट माँगे नहीं।

देन, तक दृष्टि, पहुँची नहीं, चाह की, लक्ष्य ने खोज की है, नहीं राह की; प्राप्ति का मूल्य, आँका नहीं, ध्यान दे, और पाये हुए की, न परवाह की।

शक्ति, प्रतिभा, प्रभा, खो रही व्यर्थ ही- लक्ष्य की दौड़ में, पाँव भागे नहीं।

भाग्य क्या है? विधाता स्वयं आप हैं, दीनता हीनता, आपके पाप हैं। दे खजाना तुम्हें, सौंप दी कुंजियाँ- बोध-विस्मृति, बनें, घोर सन्ताप हैं।

भाग्य के देवता, भाल को पीटते, हाथ बाँधे खड़े, पाँव आगे नहीं।

*समाप्त*


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