ईश्वर कैसा है और कहाँ है? इस झंझट में भले ही न पड़ो पर यह तो देखो कि तुम्हें किस लिए बनाया और किस तरह जीने के लिए कहा।
शतं जीवो शरदो वर्धमानः शतं हेमन्ता ऋतणु वसतान्। -अथर्व.
हे याज्ञिक तू सौ वर्ष तक बलवान होकर जी। सौ शीत और बसन्त ऋतुओं को इसी जीवन में देख।