दो भिक्षु (kahani)

February 1986

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दो भिक्षु साथ-साथ जा रहे थे। रास्ते में नदी पड़ी। नाव थी नहीं। एक युवा महिला भी पार जाने का साधन ढूँढ़ने के लिए प्रतीक्षा में बैठी थी।

महिला ने साधुओं से कहा भाई जी, मुझे पार लगा दो। एक साधु ने उसे कन्धे पर बिठाकर पार लगा दिया। आगे चलकर दूसरे साधु ने कहा- तुमने तो भला नहीं किया, युवती को कन्धे पर नहीं बिठाना चाहिए था। निकालने वाला साधु चुप हो गया। आगे चलकर पहले साधु ने फिर वही बात कही। वह चुप रहा और आगे चलने पर फिर साधु ने कहा तुमने भला नहीं किया।

निकालने वाले साधु ने कहा मैंने तो कन्धे पर रखकर ही निकाल दिया था, पर तुम तो सिर पर ही बिठाये फिर रहे हो अब तक उसे सिर पर से उतार न सके।


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