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Akhand Jyoti
Year 1986
Version 2
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February 1986
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भगवान कठिनाइयों का भला करे, जिनके कारण समझदारी बढ़ती है और अपने पराये की परख होती है।
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Page Titles
तत्त्वज्ञान और सेवा साधन
जो दीपक की तरह जलने को तैयार हों
मन को बालक्रीड़ाओं में भटकने न दें
तत्त्वज्ञान का द्वितीय सूत्र
स्वर्ग के देवता (kahani)
दार्शनिक भूल भुलैया
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वैराग्य और जीवन लक्ष्य
लाला लाजपत राय (kahani)
ध्यान योग के नूतन अभिनव आयाम
शरीरगत प्रचण्ड शक्ति स्रोत- कुण्डलिनी
हजरत उमर (kahani)
साधक की तन्मयता
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संसार में मात्र प्रतिकूलता ही नहीं है।
महर्षि आयोदधौम्य (kahani)
प्राणशक्ति का आकर्षण अवधारण
शक्तिपात आध्यात्मिक भी साँसारिक भी
याज्ञवल्क्य ऋषि (kahani)
शाप और वरदान की शक्ति
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आत्मदर्शन का दर्पण प्रयोग
राणा प्रताप (kahani)
सीखने के लिए सामने ही सब कुछ है।
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हमारी अद्भुत काय संरचना
विज्ञान सम्मत विचार सम्प्रेषण विधा
पाल ब्रन्टन का मृतात्माओं से संपर्क
मनुष्य अपने आपसे इतना भयभीत क्यों?
दो भिक्षु (kahani)
कप्तान हिक्लिफ की प्रेतात्मा
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अर्धनारी नटेश्वर तत्व ज्ञान
भविष्यवाणियाँ सच भी होती हैं।
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प्रतिकूलताओं के रहते हुए भी प्रगति सम्भव
वे अजूबे जिनका कोई समाधान नहीं।
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ज्ञान-विज्ञान पर विनाश दैत्य का आधिपत्य
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धारावाहिक लेखमाला- - महाकाल की महाकाली- सावित्री
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सरदार बल्लभ भाई पटेल (kahani)
अपनों से अपनी बात
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कर्ण की बलिष्ठता (kahani)
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बढ़ते कदम और उनकी आपूर्ति
तुम अधूरे नहीं, तुम अभागे नहीं (kavita)
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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