गुजरात के एक देहात में जन्मे सरदार बल्लभ भाई पटेल ने इंग्लैण्ड जाकर बैरिस्टरी पास की थी और उनकी वकालत भी अच्छी चल रही थी। पर जब स्वतन्त्रता का शंख बजा, तो वे अपने घरेलू जीवन से मुक्त होकर पूरी निष्ठा के साथ उसी एक कार्य में लग गये। उनके पराक्रमों का इतिहास ऐसा है, जिसके कारण उन्हें लौह पुरुष की संज्ञा दी जाती थी।
वारदोली का लगान बन्दी आन्दोलन, नागपुर का झण्डा सत्याग्रह, करो या मरो का नारा, गुजरात विद्यापीठ की स्थापना जैसे अनेकों कार्य ऐसे हैं, जिनमें उनके पराक्रम को अविस्मरणीय ही कहा जायेगा। उन्हें कितनी ही बार जेल जाना पड़ा।
स्वराज्य के बाद इतनी समस्यायें अंग्रेजों ने छोड़ी थीं, जिनसे सभी चिन्तित थे। 600 रजवाड़ों को भारत में मिलाना। जूनागढ़ और हैदराबाद की पाकिस्तान परस्ती को नीचा दिखाना, उन्हीं का काम था। पाकिस्तान का बंटवारा होने के बाद जो दंगे हुए, उनसे निपटने में उनकी महती भूमिका थी। पटेल यों केन्द्रीय सरकार के गृहमन्त्री थे, पर उन्हें भारत का हृदय सम्राट ही कहना चाहिए।