अखण्ड-ज्योति के प्रत्येक पाठक से अनुरोध है कि जनवरी और फरवरी के सम्पादकीय लेखों को वह दो बार पढ़े। एक बार इस दृष्टि से कि उन्हें मिशन के सूत्र-संचालकों ने लिखा है। एक बार इस दृष्टि से कि उन्हें प्रत्येक परिजन के व्यक्तिगत नाम से लिखा गया है। उसे सामान्य योजना विवरण न मानें वरन् यह समझें कि उनके साथ उनके कुछ विशेष उत्तरदायित्व भी जुड़ गये हैं।
जनवरी के लेख को यह समझें कि वह छोटे रूप में धीमी गति के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए एक व्यक्ति विशेष ने लिखा था। फरवरी अंक को इस दृष्टि से पढ़ा जाये कि वह हिमालय से बसन्त पर्व पर भेजा हुआ विशेष आदेश है। समय जितनी तेजी से आगे बढ़ रहा है और परिस्थितियों की माँग जिस तेजी से उभर रही है वह सामान्य नहीं असामान्य है। कठिनाइयाँ मुँहबाये खड़ी हैं उनका सामना करने के लिए जिस स्तर की शक्ति चाहिए उसे दधीचि और भागीरथ के उभयपक्षीय प्रयोगों का सम्मिलित स्वरूप समझा जाना चाहिए। अतएव जिस गति से हमारी व्यक्तिगत साधना चल रही थी एवं सम्मिलित रूप से प्रज्ञा परिजनों के जो दो सामूहिक अनुष्ठान चल रहे थे उनमें विशेष अभिवृद्धि का नया संकेत समझा जाना चाहिए। प्रतिदिन 240 करोड़ मन्त्रों का जप चल रहा है। अब 240 लाख गायत्री चालीसाओं का पाठ उस प्रक्रिया में नया अध्याय जुड़ता है। दैनिक जप में भी जिनसे अभिवृद्धि हो सके वह उन्हें करनी चाहिए। गायत्री चालीसा 100 वितरण करने वालों को उनके नाम की एक मुहर भी दी जायेगी जिसमें उल्लेख होगा कि यह किनने किसकी स्मृति में कितनी संख्या में वितरित किये हैं। हो सका तो यह उल्लेख प्रेस द्वारा छाप भी दिया जाएगा। इस प्रकार आशा की गई है कि प्रतिदिन 24 लाख गायत्री चालीसा पाठ भी इस बसन्त पर्व से होने लगेंगे।
एक बार इन दोनों लेखों को इस दृष्टि से पढ़ें कि प्रस्तुत योजना का स्वरूप अब की अपेक्षा कितने गुना बड़ा है। अभी शान्ति-कुंज में युग शिल्पी सत्र, पाँच दिन के परामर्श सत्र चलते हैं। कुछ स्थायी कार्यकर्ता हैं और कुछ प्रज्ञा प्रवास पर जाने वाली प्रवास टोलियाँ। इन्हीं सबका निर्वाह खर्च संख्या को वहन करना पड़ता है। वह ज्यों-त्यों करके हर महीने पूरा हो जाता है।
किन्तु अगले दिनों जिस निर्देशन को शिरोधार्य करना है वह पहले की अपेक्षा सैकड़ों गुना बड़ा होगा। नालन्दा, तक्षशिला विश्वविद्यालयों जितना प्रशिक्षण- एक लाख कार्यकर्त्ताओं को जुटाना ही नहीं उनका खर्च वहन करना भी प्रायः ऐसा है जिस सम्राट अशोक एवं राजा हर्षवर्धन जैसे ही वहन कर सके थे। जन साधारण के द्वारा तो इतनी बड़ी व्यवस्था बन ही कैसे पाती। नये कदम इतने बड़े हैं जिनको वामन द्वारा तीन पगों में धरती नाम लेने या मत्स्यावतार के आकार बढ़ने के समतुल्य कहे जा सकते हैं। इनमें कुरीति निवारण ही नहीं सतयुग की वापसी का दुहरा कार्यक्रम एक साथ सम्मिलित है। पहले लंकादहन और रामराज्य का संस्थापन दो बाद में हुआ था। इस बार की तीव्र गति को देखते हुए दोनों कार्य एक साथ होने हैं।
अन्य पक्षों पर पाठक विचार न करें। वे ठीक समय पर ठीक प्रकार सम्पन्न होंगे। उन्हें दो बातों पर ही विचार करना है कि जो शारीरिक और मानसिक दृष्टि से समर्थ हैं वे एक वर्ष का समय निकालें जो अत्यधिक व्यस्त हैं वे छह महीने की जेल तो अनिवार्य जैसी मानें इसे भुगतने के बाद वे तपे सोने की तरह निखरने का विश्वास कर सकते हैं।
शान्ति-कुंज का व्यय भार वहन करने के लिए जो अपना पेट भरने के अतिरिक्त कुछ बचा लेते हैं उन सबसे कहा जा रहा है कि शान्ति-कुंज के लिए अपनी महीने की आय में से एक दिन का अंशदान निकालने का संकल्पपूर्वक शपथ धारण करें और उसे निबाहें। आय-व्यय का सन्तुलन बिठाने के लिए यह एक ही संकल्प सामने है। इसे पूरा करने का संकल्प वे सभी लोग लें जो पेट भरने के अतिरिक्त महीने में कुछ बचा भी लेते हैं। उत्तर हर प्रज्ञा परिजन से माँगा जा रहा है।