भविष्यवाणियाँ सच भी होती हैं।

February 1986

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कल्पना करें कि हम किसी ऐसे नक्षत्र पर पहुँच जायं जो पृथ्वी से दो हजार प्रकाश वर्ष की दूरी पर हो तथा किसी शक्तिशाली टेलिस्कोप से पृथ्वी की ओर देखें तो पूर्व काल में घटित हुए घटनाक्रमों का दृश्य उसी प्रकार दिखाई देगा जैसे आज ही घटित हो रहा हो। ऐसी स्थिति में राम-रावण युद्ध, महाभारत, भगवान बुद्ध का धर्मचक्र प्रवर्तन अभियान स्थल सब देखा जा सकता है। पृथ्वी वासियों के लिए जो वर्तमानकाल है वह अन्य ग्रहों के लिए भविष्य है, जो भूत था वह उनके लिए वर्तमान है। इसी प्रकार अन्य नक्षत्रों पर जो वर्तमान है, वही पृथ्वी वासियों के लिए भविष्य है, जो उनके लिए भूत था, वहीं यहाँ वर्तमान है। इस प्रकार स्पष्ट है कि भूत, भविष्य, वर्तमान का अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। पृथ्वी से चला हुआ प्रकाश सभी दृश्यों को अपने साथ लेकर अरबों वर्ष बाद अन्यान्य दूरवर्ती ग्रहों पर पहुंचता है। यही बात अन्य ग्रहों के संदर्भ में है। सम्भव है कि घटनाएं प्रकाश के गर्भ में निवास करती हैं। सम्भव है आइन्स्टाइन ने इसी को चौथे आयाम की संज्ञा दी है। दृश्य घटनाएं कभी लुप्त नहीं होतीं वरन् कहीं न कहीं सूक्ष्म में विद्यमान रहती हैं, उन्हें दृश्यमान भी किया जा सकता है। विगत दिनों इन्फ्रारेड व अल्ट्रावायोलेट फोटोग्राफी से समीपवर्ती भूत के 45 घण्टों में घटे घटनाक्रमों के फोटोग्राफ लिए जा सकने सम्भव हो सके हैं। कुछ और उदाहरण देखे जायं।

मोटर और रेलगाड़ी प्रायः आगे की ओर ही चलती हैं, पर उन्हें पीछे की दिशा में लौटाते हुए भी कोई विशेष कठिनाई नहीं होती। इसी प्रकार समय का आगे की तरह पीछे लौट सकना भी सम्भव हो सकता है। आमतौर से नदी में प्रवाह की दशा में ही तैरा और बहा जाता है, किन्तु कुशल तैराक के लिए यह भी सम्भव है कि वह उल्टी दिशा में धारा को चीरता हुआ तैर सके। विज्ञान ने तथ्यों के आधार पर यह सिद्ध किया है कि भूत भी सर्वथा लुप्त नहीं हो जाता। वह मस्तिष्क के स्मृतिपटलों पर धुँधला भर होता है, किन्तु अपना अस्तित्व बनाये ही रहता है। इसी प्रकार भूत गुजर भले ही गया है, पर उसका अस्तित्व इस ब्रह्मांड में अपनी सत्ता बनाये ही रहता है। राम और हनुमान के शरीर अब नहीं रहे, पर उनका व्यक्तित्व और कर्तव्य अभी भी इस संसार में मौजूद है। यदि कोई मार्ग खोजा जा सके तो हम उल्टी दिशा में तैरने वाले तैराक की तरह उन महामानवों के संपर्क का उसी प्रकार लाभ उठा सकते हैं, जैसा कि उनके सहचर उठाया करते थे।

दिव्य दर्शन (क्लेयर वाइन्स) दिव्य अनुभव (साइको मैन्ट्री) प्रभाव प्रेषण ( टेलिपैथी) संकल्प प्रयोग। (हेट्रोसजेशन) जैसे प्रयोग थोड़ी आत्मशक्ति विकसित होते ही आसानी से किये जा सकते हैं। इन विद्याओं पर पिछले दिनों से काफी शोध कार्य होता चला आ रहा है और उन प्रयासों के फलस्वरूप उपयोगी, निष्कर्ष सामने आये हैं। परामनोविज्ञान अतीन्द्रिय विज्ञान, मैटाफिजिक्स जैसी चेतनात्मक विद्यायें भी अब रेडियो विज्ञान तथा इलेक्ट्रानिक्स की ही तरह विकसित हो रही हैं। अचेतन मन की सामर्थ्य के सम्बन्ध में जैसे-जैसे रहस्यमय जानकारियों के पर्त खुलते हैं, वैसे-वैसे यह स्पष्ट होता जाता है कि नर पशु लगने वाला मनुष्य वस्तुतः असीम और अनन्त क्षमताओं का भंडार है। कठिनाई इतनी भर है कि उसकी अधिकाँश शक्तियाँ प्रसुप्त अविज्ञात स्थिति में पड़ती हैं।

जिस प्रकार ध्वनि तरंगों को पकड़ने के लिये रेडियो में एक विशेष प्रकार का क्रिस्टल फिट किया जाता है, शरीर अध्यात्म का भी एक क्रिस्टल है और वह मन है। विज्ञान जानने वालों को पता है ईथर नामक तत्व सारे ब्रह्माण्ड में व्याप्त है, हम जो भी बोलते हैं उनका भर एक प्रवाह है, पर वह बहुत हल्का होता है, किन्तु जब अपने शब्दों को विद्युत परमाणुओं में बदल देते हैं तो वह शब्द तरंगें भी विद्युत शक्ति के अनुरूप ही प्रचंड रूप धारण कर लेती हैं और बड़े वेग से चारों तरफ फैलने लगती हैं। वह शब्द तरंगें संपूर्ण आकाश में भरी रहती है, रेडियो उन लहरों को पकड़ता है और विद्युत परमाणुओं को रोककर केवल शब्द तरंगों को लाउडस्पीकर तक जाने देता है, जिससे दूर बैठे व्यक्ति की ध्वनि वहाँ सुनाई देने लगती है। शब्द को तरंग और तरंगों को फिर शब्द में बदलने का काम विद्युत करती है, उसी प्रकार आध्यात्मिक चिकित्सा और विचार संप्रेषण (टेलीपैथी) का कार्य मन करता है। वह मन जो अभी तक एनाटॉमी विज्ञान द्वारा देखा नहीं जा सका। मात्र उसकी फलश्रुतियों से उसका अनुमान लगाया जाता है।

आकस्मिक मृत्यु की सूचना बिना किसी संचार साधन के जब स्वजन सम्बन्धियों को मिलती है तो उससे आत्मा के अस्तित्व और सूक्ष्म जगत में घटित होने वाली हलचलों का सूक्ष्म रूप से प्रमाण मिल जाता है। घनिष्ठता स्नेह सूत्र में बंधे हुए लोगों के साथ किसी विशेष उत्तेजना के समय विशेष रूप से प्रभावित करती है। इस तथ्य को हम मृत्यु की अदृश्य सूचनाओं का विश्लेषण करते हुए सहज ही जान सकते हैं। ऐसी घटनाएं एक नहीं अनेक हैं और ऐसी हैं जिन्हें किंवदंती नहीं, प्रामाणिकता की कसौटी पर खरा मानने में कोई अड़चन नहीं पड़ती। नेपोलियन ने मृत्यु की पूर्व संध्या पर अपनी माँ से साक्षात्कार किया था, मृत्यु की सूचना बाद में मिली थी। यह आत्मीयताजन्य सम्प्रेषण प्रक्रिया है।

कई वर्षों पूर्व दैनिक हिंदुस्तान में भी परिपूर्णानन्द वर्मा का एक लेख छपा जिसमें उन्होंने एक अंग्रेज वृद्धा की पूर्वाभास शक्ति का अद्भुत वर्णन किया है। यह महिला श्रीमती सरोजिनी नायडू के घनिष्ठ परिचय में थी। एक दिन श्रीमती नायडू के घर मुहम्मद अली जिन्ना और उनकी नव विवाहिता पारसी पत्नी आये। अंग्रेज वृद्धा आदि से अन्त तक उन्हें आंखें फाड़ कर देखती रही। जब वे चले गये तो श्रीमती नायडू ने उस अशिष्टता के लिए बुरा भला कहा कि किसी मेहमान की ओर इस तरह घूर-घूर कर देखना ठीक नहीं। क्षमा माँगते हुए उस अंग्रेज महिला ने कहा मुझे इनमें कुछ आश्चर्य दीखा। यह परम सुन्दरी महिला तीन वर्ष में आत्महत्या कर लेगी और मि. जिन्ना बादशाह बनेंगे। यह मैंने इन लोगों का भविष्य देखा है। इसी तथ्य को मैं उनके चेहरे पर पढ़ रही थी।

उपस्थित सभी लोग हंसे और उन दोनों बातों को असम्भव बताया। उस परम सुन्दरी पारसी महिला पर जिन्ना बेहद आसक्त थे। उसे सब प्रकार के सुख हैं फिर वह आत्महत्या क्यों करेगी? उसी प्रकार उन दिनों किसी की कल्पना तक न थी कि पाकिस्तान की माँग जोर पकड़ेगी और वह किसी दिन एक वास्तविकता बनेगी तथा जिन्ना उसके अध्यक्ष बनेंगे। दोनों ही बातें बुद्धि संगत न थीं इसलिए उस महिला की बात को निरर्थक माना गया।

पर कुछ दिन बाद दोनों ही बातें सच हो गईं। उस नवयुवती पत्नी को आत्महत्या करनी पड़ी। पाकिस्तान बना और जिन्ना उसके राष्ट्राध्यक्ष बने- बादशाह हुए।

अलीगढ़ विश्व विद्यालय के कुलपति जैदी को इस भविष्यवाणी की जानकारी थी। पाकिस्तान बनने के पाँच छह वर्ष बाद श्री जैदी को लन्दन जाना पड़ा। उन्हें उस अंग्रेज महिला की याद आई। पता उनकी डायरी में नोट था। वे उसके घर गये। उनने उस महिला से भारत तथा पाकिस्तान के भविष्य के बारे में पूछा तो उसने इतना ही कहाँ- पूर्वी पाकिस्तान टूट कर अलग हो जायेगा। समय कितना लगेगा कह नहीं सकती। उन दिनों पाकिस्तान के इस प्रकार विभाजन होने की कोई आशंका नहीं थी इसलिए वह कथन अविश्वस्त जँचा। पर समय ने बताया कि वह बात सच हो गई उस अंग्रेज महिला की पुरानी भविष्यवाणी अक्षरशः सच निकली। बाद में वह महिला कहाँ गई, उसका काई पता न चला।

अंतर्जगत विशाल और विराट् है उससे एक व्यक्ति ही नहीं बड़े समुदाय भी प्रेरित होते हैं। पूर्वाभास की ऐसी ही एक घटनायें यों है- अमेरफान वेल्स का एक छोटा कस्बा है। वर्षाकाल की बात है समूचे कस्बे में एक अजीब खलबली मची। अधिकाँश लोगों को या तो रात्रि के स्वप्नों में या दिन में यों अनायास ही पूर्वाभास होता है कि उनकी मृत्यु शीघ्र ही हो जायेगी। अमेरफान वासियों की इस बेचैनी ने इस तरह सार्वजनिक चर्चा का रूप ग्रहण किया कि जर्मनी के सुप्रसिद्ध मानस शास्त्री जान मार्कर को घटना के अध्ययन के लिए बाध्य होना पड़ा। सर्वेक्षण के मध्य उन्होंने पाया कि कस्बे के अधिकाँश व्यक्तियों को इस तरह का पूर्वाभास हो रहा है। यही नहीं लोगों के चेहरे पर भय की रेखायें स्पष्ट झलकती थीं।

मुश्किल से एक पखवाड़ा बीता था कि सचमुच समीप के पहाड़ से एक दिन ज्वालामुखी फटा- कोयले की राख का भयंकर तूफान उमड़ा और उसने देखते-देखते हजारों व्यक्तियों को मौत की नींद सुला दिया। एक स्कूल की दीवार में हुए भयंकर विस्फोट से तो 100 बच्चे एक ही स्थान पर मौत के घाट उतर गये। अभी-अभी मेक्सिको में आए भूकम्प तथा कोलम्बिया में फटे ज्वालामुखी के पूर्व भी इसी प्रकार की बेचैनी अनेकों समीपवर्ती नागरिकों में देखने को मिली। यह बताती है कि भविष्य के गर्भ में क्या पक रहा है, समष्टिगत हलचलों का यह आभास व्यष्टिमनों में होने लगता है।

इस विधा पर खोजबीन करने वाली एक अमरीकन महिला डॉ. लुईसा ई. राइन ने अपनी पुस्तक “ट्रेसिंग हिडन चैनेल्स" में लिखा है कि ये घटनायें यद्यपि पूर्व के देशों यथा भारत, बर्मा, स्याम आदि में संख्या में बहुत अधिक होती हैं पर आश्चर्य यह है कि वे कैसे घट जाती हैं? फिर लेखिका स्वयं ही उत्तर देती है कि “ये घटनायें किसी व्यक्ति के दैनिक जीवन के किसी बहुत छोटे अंश से सम्बन्धित होती हैं, चाहे वह देर से सिर के ऊपर मंडराती हुई हों और चाहे रास्ता चलते-चलते किसी सवारी गाड़ी से टकरा जाने जैसी सर्वथा आकस्मिक। इस प्रकार की घटनायें सर्वांगपूर्ण नहीं होतीं और न उनका जीवन से पूरी तरह सम्बन्ध होता है कुछ ही लोग अपनी देखी घटनाओं पर ऐसी विश्वास रखते हैं कि उनका सम्बन्ध उसके समग्र जीवन से है। पूर्वार्त्त दर्शन में वैज्ञानिक ऋषियों ने इसके तर्क सम्मत कारण भी दिए हैं।”

श्रीमती राइन ने आगे चलकर कहा है- “इस प्रकार की पूर्वदर्शन (प्राकोगनिशन) में एक मिलती-जुलती विशेषता यह होती है कि वे प्रायः सब की सब व्यक्ति सम्बन्धी ही होती हैं। राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय पैमाने की घटनाओं का पूर्वदर्शन शायद ही कभी किसी सामान्य व्यक्ति को होता हो। अधिकाँश में लोगों को अपने निकट सम्बन्धियों के सम्बन्ध में ही सूचना मिलती है।

अमेरिका के प्रसिद्ध विद्वान डा. जे. बी. राइन ने भी उक्त तथ्य की बाद में विस्तृत खोज की और पाया कि विचार, चिन्तन और किसी भी अभ्यास द्वारा यदि मन को विचारणाओं के सामान्य धरातल से ऊपर उठाकर आकाश में घुमाया जा सके तो वह भूत ओर भविष्य की अनेक घटनाओं को बेतार के तार के सन्देश की तरह प्राप्त कर सकता है। “न्यू फ्रान्टियर्स आफ माइन्ड” नामक पुस्तक में उन्होंने ऐसी अनेक घटनाओं का विवरण भी दिया है, जो उक्त कथन की सत्यता प्रतिपादित करती है। यह एक विज्ञानसम्मत प्रक्रिया है, अंधविश्वास नहीं।

रीडर्स डाइजेस्ट नामक विश्वविख्यात मासिक पत्रिका में “सैमबेन्जोन की सूक्ष्म शक्तियां” नामक लेख में पूर्वाभास की घटनाओं का उल्लेख करते हुए लेखक ने स्वीकार किया है कि “संसार में कोई एक ऐसा तत्व भी है, जो हाथ पाँव विहीन होकर भी सब कुछ कर सकता है, कान न होकर भी सब कुछ सुन सकता है, आंखें उसके नहीं हैं, पर वह अपने आपके प्रकाश में ही सारे विश्व को एक ही दृष्टि में देख सकता है। त्रिकाल में क्या संभाव्य है, यह उसको पता है। उसका सम्बन्ध विचार और भावनाओं से है, इसलिए यह कहा जा सकता है कि विचार और ज्ञान की शक्ति असीम, शाश्वत एवं एक ठोस सत्य है।


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