सीखने के लिए सामने ही सब कुछ है।

February 1986

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हमें प्रकृति से बहुत कुछ सीखना है। सिखाने के लिए हर क्षेत्र में अध्यापक मौजूद हैं। दत्तात्रेय को जब सामान्य गुरुओं से समाधान नहीं हुआ तो उन्होंने प्रजापति के परामर्शानुसार प्रकृति एवं प्राणियों का पर्यवेक्षण किया और उनसे उन्हें सन्तोषजनक गुरु ज्ञान मिल गया। मकड़ी जैसे क्षुद्र प्राणी से उनने यह सीखा कि जाला बुनना और उसे समेट लेना पूरी तरह अपने बस की बात है। चींटी से उनने सीखा कि जब उस राई से भी छोटे जानवर को अनवरत श्रम किये बिना चैन नहीं तो मनुष्य जैसे बुद्धिमान को ही आलस्य प्रमाद में घिर कर क्यों अपना भविष्य अन्धकार मय बनाना चाहिए। हम भी यदि ऐसी ही दृष्टि रखें तो बड़े विद्वानों और बड़े शास्त्रों की तुलना में ही बहुत कुछ सीख सकते हैं।

पुरातन काल में महागज, महा सरीसृप और महागरुण जैसे समर्थ प्राणी थे, पर उनके मस्तिष्क बहुत छोटे थे। बुद्धिमत्ता का अभाव था इसलिए परिस्थितियों के साथ तालमेल न बिठा सके और इस धरती पर से सदा के लिए समाप्त हो गये। इसके विपरीत दक्षिण ध्रुव पर पाया जाने वाला पक्षी पेन्गुइन पंख होते हुए भी उड़ नहीं सकता। वहाँ जीवन निर्वाह की व्यवस्था बना ली है। वहीं वह पानी में डुबकी लगाकर खुराक प्राप्त कर लेता है गृहस्थ सम्बन्धी ऐसी व्यवस्था बना लेता है जिसे देखकर कठिनाइयों के साथ तालमेल बिठाने की उसकी दक्षता पर आश्चर्य होता है।

जिराफ ऊँट से भी ऊँचा होता है। पत्तियों पर अपना गुजारा करता है। बढ़ाते-बढ़ाते उसने अपनी जीभ को इतना बढ़ा लिया है कि वह डेढ़ फुट तक मुँह से बाहर निकाल सकता है और पेड़ की सबसे ऊँची कोपलों को भी हस्तगत कर सकता है।

मनुष्य की जीभ स्वाद तो चखती है, पर चखती तभी है जब वह घुलनशील हो। लोहे जैसी कड़ी वस्तु का वह स्वाद नहीं चख सकती। इसका तात्पर्य यह हुआ कि अपनी इच्छा या योग्यता ही सब कुछ नहीं है। साधन भी वैसे होने चाहिए जिनके सहारे अपनी प्रतिभा काम दे सके।

ओइस्टर प्राणी अपने आप में पूर्ण है। वह कभी नगर बन जाता है कभी मादा। जब उसकी इच्छा प्रजनन की होती है तो अपने अंगों को मादा जैसा बना लेता है, किन्तु जब उसे नर स्तर का उत्साह उठता है तो बिना किसी का अनुग्रह पाये अपने आप को ही नर बना लेता है। हम भी अपने स्तर को घटिया या बढ़िया बनाने में स्वतन्त्र हैं।

ह्वेल मछली सिर्फ सामने देखती है उसे अगल-बगल का दिखाई नहीं पड़ता। इसलिए वह तनिक-सी आवश्यकता के लिए समूचा शरीर घुमाने का कष्ट उठाती है। अदूरदर्शी भी इसी प्रकार हैरान होते हैं।

मधुमक्खियाँ 500 ग्राम शहद इकट्ठा करने के लिए प्रायः दो लाख फूलों से संपर्क साधती हैं। हमें महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हस्तगत करने के लिए अधिक से अधिक लोगों के साथ जन संपर्क साधना चाहिए।

चारों ओर से घिर जाने पर एक पच्चीस किलो भारी जल जन्तु गेंद के बराबर छेद में से अपने को लचीला बनाकर निकल जाता है। हमें भी अकड़बाज नहीं लचीला विनम्र होना चाहिए।


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