भारत पर आक्रमण कर दिया (kahani)

December 1978

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पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया। न चाहते हुए भी युद्ध की विभीषिका भीषण रूप से फैल गई। अवकाश पर गये सैनिक वापस बुला लिए गये। इनमें भारतीय सेना के ऑफिसर मेजर आशाराम त्यागी भी थे। माँ को प्रणाम कर जब वे युद्ध भूमि के लिए प्रस्थान करने लगे तो माँ ने आशीर्वाद देते हुए कहा- “बेटे! इस समय राष्ट्र रक्षा सर्वोपरि कर्त्तव्य है। जाओ और इस कर्त्तव्य का दृढ़ता से पालन करो। याद रहे अपनी परम्परा सीने पर गोली खाने की है पीठ पर नहीं।

इच्छोगिल नहर का मोर्चा भारतीय सेना के लिए अमेद्य दीवार बन रहा था। इस दीवार को तोड़ने का दायित्व मेजर त्यागी को सौंपा गया। मृत्यु की चिन्ता किये बिना त्यागी मोर्चे पर आगे बढ़े। गोलियों की सनसनाहट और टैंकों की गड़गड़ाहट के बीच मेजर त्यागी टैंकों को ध्वस्त करते आगे बढ़ रहे थे तभी एक साथ कई गोलियाँ पेट, हाथ और गर्दन पर लगीं किन्तु वे हतोत्साहित न हुये माँ का आशीर्वाद ज्वलंत प्रेरणा दे रहा था। इच्छोगिल फतह करीब थी सो वे फिर दुगुने उत्साह से आगे बढ़कर प्रहार करने लगे।

इसी बीच उन्हें पीछे हटने का हुक्म मिला पर उन्होंने समाप्तप्राय मोर्चे को जीवन देना उचित न समझा कदम रुके नहीं गोलियाँ की बौछार हो रही थी, पर उन्होंने शेष बचे टैंक ध्वस्त कर ही दम लिया, पर अब तक उनका सीना पूरी तरह छलनी हो चुका था।

घायल अवस्था में उन्हें अमृतसर सैनिक अस्पताल लाया गया। बुझते हुए चिराग से अधिकारियों ने पूछा - तुम्हारी कोई अन्तिम इच्छा है ? इस पर त्यागी ने कहा - “मेरी माँ तक संदेश पहुँचा देना, तुम्हारे बेटे ने गोलियाँ सीने पर ही खाई हैं पीठ पर नहीं।” दीपक बुझ गया पर उसका प्रकाश अनंत तक बुझने वाला नहीं।

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