संकल्प शक्ति का उपार्जन उपयोग

December 1978

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सामान्य जीवन में आने वाली छुटपुट असफलताओं का दोष दुर्भाग्य, दैव और दूसरों को देते रहने वाले लोग जीवनभर असफलताओं को ही आमंत्रित करते रहते हैं। क्योंकि सफलता प्राप्ति के लिए उनमें न अभीष्ट मनोबल होता है और न ही संकटों से जूझने का साहस। जबकि कितने ही व्यक्तियों ने सामान्य से भी गिरी नितांत दुर्दशाग्रस्त स्थिति में रहते हुए भी असाधारण सफलताएं प्राप्त कर दिखाई हैं।

कितने ही व्रत शील उच्च उद्देश्यों को लेकर कार्य क्षेत्र में उतरे और तुच्छ सामर्थ्य के रहते हुए भी महान कार्य कर सकने में सफल हुए हैं। उन्हें निरन्तर आगे बढ़ने और अवरोधों को गिराने की सामर्थ्य आन्तरिक मनोबल से ही मिली है। बिहार के हजारी बाग जिले के हजारी नामक किसान ने इस प्रदेश के गाँव-गाँव में आम के बगीचे लगाने का निश्चय किया था। यदि दृढ़ संकल्प प्रबल आकांक्षा बन कर उभरे तो फिर मस्तिष्क को उसका सरंजाम खड़ा करने और शरीर को उसे व्यवहार में परिणित करते देर नहीं लगती। यही सदा से होता रहा है यही हजारी किसान ने भी कर दिखाया। उसने उस सारे इलाके में आम के दरख्त लगाये और अन्ततः उन आम्र उद्यानों की संख्या एक हजार तक जा पहुँची। वही इलाका इन दिनों बिहार का हजारी बाग जिला कहलाता है। सत्संकल्पों की परिणिति सदा इसी प्रकार से व्यक्ति और समाज के लिए महान उपलब्धियाँ प्रस्तुत करती रही हैं।

नर हो या नारी, बालक हो या वृद्ध स्वस्थ हो या रुग्ण, धनी हो या निर्धन परिस्थितियों से कुछ बनता बिगड़ता नहीं, प्रश्न संकल्प शक्ति का है। मनस्वी व्यक्ति अपने लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ बनाते और सफल होते हैं। समय कितना लगा और श्रम कितना पड़ा उसमें अन्तर हो सकता है, पर आत्म-निर्माण के लिए प्रयत्नशील अपनी आकांक्षा में शिथिलता एवं प्रखरता के अनुरूप देर-सवेर में सफल होकर ही रहता है। नारी की परिस्थितियाँ नर की अपेक्षा कई दृष्टियों से न्यून मानी जाती हैं किन्तु यह मान्यता वहीं तक सही है जहाँ तक कि उनका मनोबल गया-गुजरा बना रहे। यदि वे अपनी साहसिकता को जगा लें, संकल्प शक्ति का सदुद्देश्य के लिए उपयोग करने लगें तो कोई कारण नहीं कि अपने गौरव गरिमा को प्रभाव देने में किसी से पीछे रहें।

मैत्रेयी याज्ञवलक्य के साथ पत्नी नहीं धर्मपत्नी बन कर रही। रामकृष्ण परमहंस की सहचरी शारदा मणि का उदाहरण भी ऐसा ही है। सुकन्या ने च्यवन के साथ रहना किसी विलास वासना के लिए नहीं उनके महान लक्ष्य को पूरा करने में साथी बनने के लिए किया था। जापान के गान्धी कागावा की पत्नी भी दीन दुखियों की सेवा का उद्देश्य लेकर ही उनके साथ दाम्पत्य सूत्र में बँधी थी। नर पामरों को जहाँ दाम्पत्य जीवन में विलासिता के पशु प्रयोजन के अतिरिक्त और कोई उद्देश्य दृष्टिगोचर ही नहीं होता वहाँ ऐसी आदर्शवादी नर-नारियों की भी कमी नहीं जो विवाह बन्धन की आवश्यकता तभी अनुभव करते हैं जब उससे वैयक्तिक और सामाजिक प्रगति का कोई उच्चस्तरीय उद्देश्य पूरा होता हो।

कुन्ती भी सामान्य रानियों की तरह एक महिला थी। जन्मजात रूप से तो सभी एक जैसे उत्पन्न होते हैं। प्रगति तो मनुष्य अपने पराक्रम पुरुषार्थ के बल पर करता है। कुन्ती ने देवत्व जगाया- आकाश वासी देवताओं को अपना सहचर बनाया और पाँच देव पुत्रों को जन्म दे सकने में सफल बन सकी। सुकन्या ने आश्विनी कुमारों को और सावित्री ने यम की सहायता करने के लिए विवश कर दिया था। उच्चस्तरीय निष्ठा का परिचय देने वाले देवताओं की ईश्वरीय सत्ता की सहायता प्राप्त कर सकने में भी सफल होते हैं। टिटहरी के धर्म युद्ध में महर्षि अगस्त सहायक बन कर सामने आये थे। तपस्विनी पार्वती अपने व्रत संकल्प के सहारे शिव की अर्धांगिनी बन सकने का गौरव प्राप्त कर सकी थी। पति को आदर्श पालन प्रेरित करने वाली लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला स्वयं भी वनवास जैसी साधना घर रह कर करती रहीं। इन महान गाथाओं में आदर्शवादी संकल्प ही अपनी गरिमा प्रकट करते दिखते हैं।

बंगाल के निर्धन विद्वान प्रताप चन्द्र राय ने अपनी सारी शक्ति और सम्पत्ति को बाजी पर लगा कर महाभारत के अनुवाद का कार्य हाथ में लिया। वे उसे अपने जीवन में पूरा न कर सके तो उनकी पत्नी ने अपना संस्कृत ज्ञान पूरा करके उस अधूरे काम को पूर्ण करके दिखा दिया ऐसी साहसिकता वहाँ ही दिखाई पड़ती है जहाँ उच्च स्तरीय आदर्शों का समावेश हो।

विद्वान कैयट व्याकरण शास्त्र की संरचना में लगे हुए थे। उनकी पत्नी भारती मूंज की रस्सी बट कर गुजारे का प्रबन्ध करती थी। साम्यवाद के प्रवर्तक कार्लमार्क्स भी कुछ कमा नहीं पाते यह कार्य उनकी पत्नी जैनी करती थी, वह पुराने कपड़े खरीद कर उनमें से बच्चों के छोटे कपड़े बनाती और फेरी लगा कर बेचती थीं। आदर्शों के लिए पतियों को इस प्रकार प्रोत्साहित करने और सहयोग देने में उनका उच्चस्तरीय संकल्प-बल ही कार्य करता था।

जहाँ सामान्य नारियाँ अपने बच्चों को मात्र सुखी सम्पन्न देखने भर की कामना संजोये रहती हैं। वहाँ ऐसी महान महिलाएं भी हुई हैं जिन्होंने अपनी सन्तान को बड़ा आदमी नहीं महामानव बनाने का सपना देखा और उसे पूरा करने के लिए अपनी दृष्टि और चेष्टा में आमूल-चूल परिवर्तन कर डाला। ऐसी महान महिलाओं में बिनोवा की माता आती हैं जिन्होंने अपने तीनों बालकों को ब्रह्मज्ञानी बनाया। शिवाजी की माता जीजाबाई को भी यही गौरव प्राप्त हुआ। मदालसा ने अपने सभी बालकों को बाल ब्रह्मचारी बनाया था। शकुन्तला अपने बेटे भरत को, सीता अपने लव−कुश को सामान्य नर वानरों से भिन्न प्रकार का बनाना चाहती थीं। उन्हें जो सफलताएँ मिलीं। वे अन्यान्यों को भी मिल सकती हैं। शर्त एक ही है कि आदर्शों के अन्तःकरण में गहन श्रद्धा की स्थापना हो सके और उसे पूरा करने के लिए अभीष्ट साहस संजोया जा सके। संकल्प इसी को कहते हैं।

पुरुष महिलाओं की आत्मिक प्रगति में सहायक बनें। महिलायें, पुरुषों, छोटे बच्चों को संस्कारवान बनाने का व्रत लें, तो इस पारस्परिक सहयोग से राष्ट्र जागरण, आध्यात्मिक चेतना का विकास तथा आदर्शवादी आस्थाओं की स्थापना जैसे महान कार्य सहज ही किये जा सकते हैं।

वंश परम्परा या पारिवारिक परिस्थितियों की हीनता किसी की प्रगति में चिरस्थायी अवरोध उत्पन्न नहीं कर सकी है। इस प्रकार की अड़चनें अधिक संघर्ष करने के लिए चुनौती देने के अतिरिक्त और कुछ नहीं कर सकती। सत्यकाम जाबाल वेश्या पुत्र थे। उनकी माता यह नहीं बता सकी थी कि उस बालक का पिता कौन था। ऐतरेय ब्राह्मण के रचयिता ऋषि ऐतरेय -इतरा रखैल के पुत्र थे। महर्षि वशिष्ठ, मातंगी आदि के बारे में भी ऐसा ही कहा जाता है। रैदास, कबीर, वाल्मीकि आदि का जन्म छोटे कहे जाने वाले परिवारों में ही हुआ था। पर इससे इन्हें महानता के उच्च पद तक पहुँचने में कोई स्थायी अवरोध उत्पन्न नहीं हुआ। मनुष्य की संकल्प शक्ति इतनी बड़ी है कि वह अग्रगमन के मार्ग में उत्पन्न होने वाली प्रत्येक बाधा को पैरों तले रौंदती हुई आगे बढ़ सकती है।


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