चेतना की निस्सीमता को समझें और साधें।

December 1978

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नेपोलियन बोनापार्ट को अपनी माँ से गहरा प्यार था। जिस समय उसकी मृत्यु हुई, उसकी माँ उससे सैकड़ों मील दूर थी। वह फ्रांस में था, माँ रोम में। उस दिन माँ ने देखा - नेपोलियन सहसा आया है। पैर छूकर कह रहा है कि “माँ! अभी ही तो मुझे झंझटों से फुरसत मिल पाई।” थोड़ी देर बाद वह अन्तर्धान हो गया। बाद में पता चला कि उसका उसी दिन उसी समय निधन हुआ था।

प्रख्यात कवि बायरन ने भी एक ऐसे ही अनुभव का विवरण लिखा है। एक फौजी कप्तान ने रेल-यात्रा में रात को सहसा नींद उचटने पर अपने छोटे भाई को पायताने बैठे देखा। वह भाई वेस्टइंडीज में नियुक्त था। कप्तान ने समझा कि कहीं वे स्वप्न तो नहीं देख रहे हैं। उन्होंने अपने जगे होने की आश्वस्ति के लिए हाथ बढ़ाकर भाई को छूना चाहा। उनके हाथ में उसका कोट छू गया तो लगा कि वह कोट पानी से तर है। तभी वह भाई अदृश्य हो गया। बाद में तीसरे दिन खबर मिली कि उसकी उसी दिन उसी समय समुद्र में डूब जाने से मृत्यु हुई थी जब वह वहाँ दिखा था।

परामनोवैज्ञानिकों को अपने अनुसंधानों के दौरान ऐसे अनेक साक्ष्य मिले हैं जिनसे यह पता चलता है कि मृत व्यक्ति सैंकड़ों-हजारों मील दूर स्थित अपने आत्मीयों के पास मृत्यु के तत्काल बाद देखा गया। कई बार व्यक्ति नहीं दिखाई देता उसकी आवाज सुनाई पड़ती है।

इंग्लैंड के चार्ल्स मैथ्यूज समुद्री जहाज सेवा में कर्मचारी थे। एक रात वे ड्यूटी पर गये। उसके कुछ घंटे बाद उनकी पत्नी और उनकी पड़ोसिन दोनों को चार्ल्स की आवाज सुनाई पड़ी। पड़ोसिन ने सुना कि चार्ल्स उससे कह रहे हैं कि इसका यानी उनकी पत्नी का ध्यान रखना। पत्नी को लगा कि वे उसे पुकार रहे हैं। हुआ यह था कि उस रात जहाज डूब गया था और उसी के साथ श्री मैथ्यूज भी।

इससे सर्वथा भिन्न एक अन्य घटना है। कैलीफोर्निया के एक पुलिस अधिकारी को एक बार उसके कुछ ही दिनों पूर्व मृत तक मित्र की छाया देखी। इस छाया ने उससे कहा कि तुम तुरन्त मैक्डॉनल्ड एवेन्यू पहुँचो। वहाँ स्ट्रीम लाइनर से एक ट्रक टकराकर उलट गया है और उसके ड्राइवर की छाती चकनाचूर हो गयी है। पुलिस अधिकारी वहाँ पहुँचा। तब तक वहाँ वैसा कुछ भी घटित न हुआ था। उसे लगा कि मैंने दिवास्वप्न देखा है। वह लौटने को था। तभी वही घटना घटी। स्ट्रीम लाइनर से सामने से आ रहा ट्रक टकराया और ड्राइवर की छाती छलनी हो गई।

इस तरह के प्रमाणों से यह पता चलता है कि मानवीय चेतना जब तक शरीर से ही तादात्म्य अनुभव करती रहती है तब तक तो वह सीमाबद्ध रहती है। पर शरीर से निकलते ही वह सर्वव्यापी हो जाती है। उसकी संचरण और सम्प्रेषण क्षमता फिर निबंध हो जाती है। वह कहीं भी आ जा सकती है। यद्यपि अपने संस्कारों के कारण वह सर्वप्रथम अपने आत्मीय के पास पहुँचती है।

कई बार वह आत्मीय के पास न पहुँचकर सर्वप्रथम वहाँ पहुँचती है जहाँ उसका मृत्यु के तत्काल पूर्व ध्यान जाता है। पूना के एक बड़े वकील को एक बार देर रात में दफ्तर बंद करते समय एक परिचित व्यक्ति दरवाजे पर दिखा। उन्होंने उसके आने का कारण पूछते हुए अंदर आने को कहा। तभी वह अदृश्य हो गया। वे चकरा गये। इसके बाद बिस्तर पर जाकर लेट गये। दो-तीन घंटे बाद उस व्यक्ति के रिश्तेदारों ने दरवाजा खटखटाया। वकील साहब बाहर निकले। तब उन्हें बताया गया कि उस व्यक्ति के घर कुछ लोग गये थे। उन्होंने कहा कि आपको अभी ही वकील साहब ने बुलाया है। नगरपालिका के चुनाव के बारे में कोई खास चर्चा करनी है। सुबह वे जरूरी काम से बम्बई चल देंगे। वहाँ वकील साहब के घर और लोग भी हैं, आपसे भी चर्चा करनी है। वह व्यक्ति चल दिया और अभी तक नहीं लौटा। इसी से वे सब ढूंढ़ने आये थे। लोगों ने समझ लिया कि छल किया गया है। प्रातः पता चला कि रात को उन लोगों ने उसकी हत्या कर दी। इससे यह स्पष्ट हुआ कि मृत व्यक्ति को वकील साहब का नाम लगाकर बुलाया गया था, अतः उसके चित्त में यह बात थी और मृत्यु के तत्काल बाद उसकी आत्मा वहाँ पहुँची थी।

लेखिका शेला आस्ट्रेन्डर को एक बार उनकी एक सहेली मृत्यु तत्काल बाद दिखी। वह सहेली कई मील दूर दूसरे शहर में उसी समय मरी थी। मृत्यु की खबर दूसरे दिन मिली।

इससे चेतना की निस्सीमता का परिचय मिलता है। ऐसा नहीं है कि मृत्यु के उपरान्त ही, मानवीय चेतना इस प्रकार निर्बन्ध होती है। वरन् यदि संकीर्णता के मानसिक बन्धन दूर कर दिये जायें, तो जीवित अवस्था में भी चेतना की इन शक्तियों का अनुभव किया जा सकता है और लाभ उठाया जा सकता है।

अनेक सिद्ध पुरुष अपने दूरस्थ शिष्यों को अपनी सूक्ष्मसत्ता से प्रत्यक्ष मदद पहुँचाते हैं। प्रसिद्ध आर्यसमाजी सन्त स्व0 श्री आनन्द स्वामी के पुत्र लेखक पत्रकार श्री रणजीत ने कुछ समय पहले अपने संस्मरण-लेख में यह बताया था कि किस प्रकार उनके पिता ने उन दिनों, जबकि वे जीवित थे और भारत में थे तथा श्री रणजीत विदेश में प्रवास पर थे, एक बार भयानक खड्ड में गिर पड़ने से चेतावनी देकर उन्हें रोका था। अन्य कई अवसरों पर भी उनकी मदद व मार्गदर्शन का कार्य उनके पिता ने किया था। जबकि वे उस समय उनसे सैकड़ों मील दूर हुआ करते थे।

ये घटनायें विरल या अपवाद नहीं हैं। ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो दूरस्थ परिजनों की तीव्र संवेदना से, याद करने पर, उनके पास आभास रूप में देखे जाते हैं। ऐसे भी लोग हैं, जो भावाकुल होकर जब किसी प्रियजन का स्मरण करते हैं, तो वह उन्हें अपने सामने उस स्थिति में दिखता है, जिसमें वह उस समय होता है। बाद में पत्र मिलने पर या प्रत्यक्ष भेंट होने पर इस तथ्य की पुष्टि होती है। विशेषकर नारियों को दूराभास और दूरानुभूति प्रायः होती रहती है।

परामनोविज्ञानी हैराल्ड ने ऐसे अनेक वृत्तांतों का संकलन किया है, जिनमें महिलाओं को दूरस्थ भाई या पति की बीमारी, या मृत्यु का आभास हुआ और वह सत्य निकला। मनःशास्त्री हेनब्रुक ने भी यही कहा है कि यों, ये क्षमताएँ होती मनुष्य मात्र में हैं। नारियों में सौम्यता, मृदुता और सहृदयता के आधिक्य के कारण यह सामर्थ्य अधिक विकसित पायी जाती है।

बीज रूप में यह सामर्थ्य प्रत्येक व्यक्ति में सन्निहित है। आवश्यकता है, मन को संकीर्ण सीमाओं के बन्धनों से मुक्त करने की। ऐसा करने पर पानी में तेल की बूँद की तरह प्रत्येक व्यक्ति की अनुभव संवेदना का क्षेत्र दूर तक फैल जाता है। सामान्यतः अपने शरीर और मन की दीवालों से टकरा-टकराकर ही व्यष्टि-चेतना की तरंगें लौटती रहती हैं। तथा सीमित क्षेत्र में ही हिलोरें लेती रहती हैं। परन्तु यदि अनुभूति और संवेदना के स्तरों पर ये दीवालें हटा दी जायें, तो अनन्त चेतना- समुद्र से उन लहरों का संपर्क हो जाता है। दूरानुभूति, दूर श्रवण, दूरदर्शन जैसी सिद्धियाँ इसी स्थिति का स्वाभाविक परिणाम होती हैं।


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