चिरयौवन का रहस्य

December 1978

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“युवक अमेरिका चला गया और वहाँ उसने तीन वर्ष तक रोजगार किया। इस अवधि में उसे एक मुकदमे में फँसना पड़ा। उसे मुकदमे से निपटने में 15 वर्ष लग गये। इस बीच वह अपनी प्रेयसी को बराबर पत्र लिखता रहा था। युवती इस बात के लिए कटिबद्ध थी कि वह विवाह करेगी तो उसी युवक से। 15 वर्ष तक वह अपने प्रियतम की प्रतीक्षा करती रही। 15 वर्ष बाद जब वह लौटा तो उसकी प्रेयसी 34 वर्ष की हो चुकी थी। इस अवस्था में युवती को अधेड़ हो जाना चाहिए था परन्तु जब युवक अपनी प्रेयसी से मिला तो उसके स्वास्थ्य, नाक नक्श में जरा भी अन्तर नहीं आया था। लगता था उन्हें मिले 15 वर्ष नहीं 15 दिन ही हुए हों। दोनों का विवाह सम्पन्न हुआ। परन्तु युवक को यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि उसकी पत्नी 15 वर्ष बाद भी अपने शरीर को उसी प्रकार का कैसे बनाये रह सकी है जबकि अधिकांश युवतियाँ 15 वर्ष से 34 वर्ष की होते होते अधेड़ हो जाती हैं। एक दिन उसने कारण पूछ ही लिया।

इस घटना का उल्लेख करते हुए डॉ0 बैनेट ने लिखा है कि- मनुष्य का शरीर प्रतिदिन बदलता रहता है। उसके जीर्ण और पुराने कोश मरते रहते हैं तथा नये कोश उनका स्थान ले लेते हैं। इस प्रकार 80 दिन बाद शरीर का एक भी कोश पुराना नहीं रह जाता। सारे कोश नये हो जाते हैं। जिस तरह जीर्ण और पुराना हो जाने पर मकान को बदल दिया जाता है और उस मकान को अधिक पक्की ईंटों से बना कर नया कार देते हैं उसी प्रकार परमात्मा ने शरीर की व्यवस्था की है। हर पुराना कोश बदल जाता है और प्रकृति उसके स्थान पर नये कोश स्थापित कर देती है।

जीर्णता के निष्कासन और नवीन के स्थापन का क्रम नियमित रूप से चलता रहता है तो फिर क्या कारण है कि मनुष्य बूढ़ा हो जाता है। डॉ0 बैनेट ने वर्षों तक इस विषय पर विचार किया। परीक्षण और प्रयोग किये तथा इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि मनुष्य का मन जैसा होगा वैसा ही वह बनेगा। शरीर में होने वाले रासायनिक परिवर्तन उतने महत्वपूर्ण नहीं हैं, जितने कि मनःस्थिति के परिवर्तन। देखा जा सकता है कि स्वतन्त्र व्यवसाय में लगे लोग जीवन के अन्तिम क्षणों तक क्रियाशील और समर्थ सक्षम बने रहते हैं।

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