अश्वः शस्त्रं शास्त्रं वीणा, वाणी, नरश्च नारी च।
पुरुषविशेषं प्राप्ता भवन्त्ययोग्याश्च योग्याश्च॥
अर्थात्- घोड़ा हो, शस्त्र हो या शास्त्र हो वीणा हो अथवा वाणी हो, नर हो अथवा नारी हो, ये सभी व्यक्ति विशेष को प्राप्त होने पर (उस व्यक्ति के अपने गुण-स्वभाव-सामर्थ्य-प्रवृत्ति के अनुसार) योग्य या अयोग्य बन जाते हैं।
----***----