क्षुद्र प्राणियों का विशाल अंतःकरण

December 1978

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स्वार्थ और आत्म रक्षा की प्रवृत्ति सभी प्राणियों में पायी जाती है। यह प्रवृत्ति जीवन को प्रेम करने के फलस्वरूप ही विकसित हुई। यह बात दूसरी है कि उन प्रवृत्तियों का विकास कितने परिष्कृत अथवा विकृत रूप में होता है परन्तु यह सच है कि प्रत्येक प्राणी में एक ऐसी चेतन सत्ता विद्यमान है जो निरन्तर ऊंचा उठने की प्रेरणा देती है। स्वार्थों की पूर्ति के साथ-साथ उच्च आदर्शों को जीवन में आत्मसात् करने की प्रेरणा देने वाली इस चेतन सत्ता का नाम ही अन्तरात्मा है।

मनुष्य समाज में तो कितने ही लोग-उच्च आदर्शों की पूर्ति के लिए अपने तुच्छ स्वार्थों को बलि देते देखे जा सकते हैं। समाज भी ऐसे व्यक्तियों को महामानव देवात्मा आदर्श पुरुष कहकर सम्मानित करता और श्रद्धा से शीश नवाता है। अन्तरात्मा के रूप में सम्बोधित की जाने वाली यह चेतना केवल मनुष्य के पास ही नहीं है वरन् अन्य पशु पक्षियों में भी, जिनके पास बुद्धि का अभाव है, सोचने समझने की क्षमता नहीं है इन आदर्शों के प्रति अगाध प्रेम देखा गया है। अमरीकी लेखक एच॰ ए॰ जेज ने पशु पक्षियों के आपसी व्यवहार का लम्बे समय तक अध्ययन किया और अपने निष्कर्षों को ‘विजडम ऑफ एनिमल्स’ नामक पुस्तक में लिखा। इस पुस्तक में एच॰ ए॰ जेज ने कितनी ही ऐसी घटनाओं का उल्लेख किया जो यह प्रमाणित करती है कि पशु-पक्षियों में भी नैतिक चेतना तथा आदर्शों के प्रति प्रेम होता है और वे इन आदर्शों को प्राण पण से निवाहते भी हैं।

एच॰ ए॰ जेज ने अपनी पुस्तक ‘विजडम ऑफ एनिमल्स’ में एक पालतू बिल्ली तथा एक तोते की दोस्ती का उल्लेख किया है। सामान्यतः बिल्ली तोते को देखते ही झपटने की कोशिश करती है परन्तु उक्त पुस्तक में जिस बिल्ली और तोते का उल्लेख किया गया है, वे परस्पर एक-दूसरे को बहुत प्रेम करते थे। घर में जब कोई नहीं होता तो बिल्ली तोते को इस प्रकार खिलाती रहती थी जैसे कोई बच्चा खिला रहा हो। एक दिन उनकी मालकिन रसोई में कोई चीज पकाने के लिए चूल्हे पर रखकर ऊपर कमरे में चली गई और वहाँ किसी काम में व्यस्त हो गयीं। बिल्ली और तोते दोनों ही रसोई में खेलने लगे। खेलते-खेलते तोता पकने के लिए चढ़ाये गये बर्तन में गिर पड़ा। बिल्ली तुरन्त ऊपर वाले कमरे में दौड़ी गयी और मालकिन के कपड़े खींच कर, उछल कर व्याकुलता प्रदर्शित करने लगी। मालकिन ने झल्ला कर कहा, क्या बात है? तो बिल्ली ने उसकी ओर कातर भाव से देखा तथा रसोई की ओर चल पड़ी। पता नहीं उसकी आँखों में क्या भाव थे कि मालकिन ऊपर वाले कमरे से निकलकर रसोई की ओर बिल्ली के पीछे-पीछे चल दी। वहाँ जाकर उसने देखा कि तोता चूल्हे पर चढ़ाये गये बर्तन में गिर पड़ा है और बुरी तरह छटपटा रहा था। मालकिन ने उसे बाहर निकाला। यदि बिल्ली उस समय अपनी मालकिन को बुलाने नहीं जाती तो निश्चय था कि तोते के प्राण निकल गये होते।

पशु अपने सजातीय प्राणियों-परिवार के सदस्यों, बच्चों से तो प्रेम करते ही हैं, उन्हें साथ लिए घूमते और स्नेह का परिचय देते हैं। परन्तु दूसरे पशुओं से भी प्रेम सम्बन्ध बनाने, स्नेह सौहार्द्र बढ़ाने और मैत्री करने के उदाहरण बहुत कम देखने को मिलते हैं लेकिन मिलते अवश्य हैं। बरमिंघम (ब्रिटेन) में सर सैमुअल गुडवीईयर के यहाँ एक टट्टू था उसकी एक खच्चर से अच्छी दोस्ती हो गयी थी और दोनों बाड़े से निकलकर देर तक घूमा करते थे। टट्टू को एक बाड़े में रखा जाता था बाड़े का फाटक अन्दर से एक चटखनी से बन्द होता था और बाहर से कुंडी द्वारा टट्टू अपना सिर फाटक के ऊपर तो कर सकता था किन्तु वह बाहरी कुंडी तक नहीं पहुँच सकता था फिर भी वह अक्सर बाड़े के बाहर खुले में घूमता देखा जाता था। यह एक रहस्य ही था कि बाड़े का फाटक कैसे खुल जाता था?

एक दिन सर सैमुअल ने देखा कि टट्टू पहले भीतरी चटखनी को झटके देकर खांचे से अलग करता और फिर रेंकना शुरू कर देता। उसकी आवाज सुनकर बाहर एक खच्चर आ जाता। खच्चर अपनी नाक से धकेल कर कुंडी खोल देता फिर दोनों साथ-साथ घूमते।

‘वेजल’ नामक एक जर्मन पत्रिका में एक कुत्ते और बिल्ली की मित्रता का वर्णन छपा है। कुत्ते और बिल्ली जन्मजात शत्रु होते हैं परन्तु यह कुत्ता और बिल्ली साथ-साथ खाते पीते, उछलते कूदते और साथ-साथ उठते बैठते थे। इनके मालिक ने कुत्ते और बिल्ली की मैत्री को परखना चाहा। वह केवल बिल्ली को अपने कमरे में ले गया और उसे खाना दिया उसने बड़े मजे में खाना खाया। ऐसा लगा कि कुत्ते की अनुपस्थिति बिल्ली को जरा भी नहीं खली है। फिर एक तस्तरी में खाना रखकर वह तस्तरी आलमारी में रख दी गयी। अलमारी में ताला नहीं लगाया गया और बिल्ली को खुला छोड़ दिया गया। बिल्ली तुरन्त कमरे से बाहर गयी और थोड़ी देर में वह अपने साथी कुत्ते को वहाँ बुला करले आयी। दोनों उस अलमारी तक गये फिर बिल्ली ने धक्के से अलमारी का दरवाजा खोला तथा उछलकर कुत्ते को वह तश्तरी दिखाने लगी। कुत्ते ने तश्तरी देख ली और उसने अपने पंजों से दबाकर तश्तरी को बाहर निकाल लिया। पहले उसने बिल्ली की ओर भी तश्तरी खिसकाई परन्तु बिल्ली पीछे हट गई जैसे वह कह रही हो, मैं तो खा चुकी हूँ कुत्ते ने भी जैसे बिल्ली का आशय समझ लिया और तश्तरी को अपने पंजे में दबाकर सारा खाना खा गया। जब तक कुत्ता खाना खाता रहा तब तक बिल्ली उस स्थान पर ऐसे बैठी रही जैसे वह पास बैठकर खिला रही है।

एक दूसरे के प्रति प्रेम और कोमल भावनाओं का प्रदर्शन तो ठीक है। पशु पक्षी अपनी मित्रता में अवरोध उत्पन्न करने वाले कारणों को भी दूर करते हैं। दूसरों की इच्छा या अनिच्छा अथवा बहकने पर जुड़ने-टूटने वाली मित्रता का आधार स्वार्थ ही हो सकता है क्योंकि मित्रता सच्चे हृदय से की जाती है और बाहरी कारणों से स्थिर बनती अथवा टूटती नहीं है। प्रसिद्ध अंग्रेजी साप्ताहिक ‘स्टेट्स मेन’ में एक पिल्ले और सूअर की ऐसी ही मित्रता का वर्णन छपा था। वे दोनों साथ-साथ घूमते थे। उनके स्वामी को यह पसन्द न था इसलिए उसने पिल्ले के गले में लकड़ी का एक छोटा-सा किन्तु वजनदार टुकड़ा बाँध दिया। ताकि वह भाग न सके किन्तु उसने पहले ही दिन देखा कि उस पिल्ले के गले में पड़ी रस्सी कट गई थी और वह सूअर के साथ स्वतंत्र घूम रहा था। दूसरे दिन पिल्ले के गले में चमड़े का मजबूत पट्टा डाला गया और उसमें लकड़ी का टुकड़ा जंजीर से लटकाया गया। लेकिन उस दिन भी पट्टा कट गया और लकड़ी का वह टुकड़ा कहीं गिर पड़ा। पिल्ला अपने पट्टे को स्वयं कदापि नहीं काट सकता था। फिर वह कैसे कट जाता है यह देखने के लिए निगरानी की गई तो पाया गया कि यह काम उसके दोस्त सूअर का ही है।

यह तो हुई सामान्य मैत्री धर्म की बातें, साथ-साथ रहने उठने बैठने के कारण आपस में इस तरह की घनिष्ठता को स्वाभाविक भी कहा जा सकता है परन्तु पशु पक्षी में कर्तव्य भावना, विपत्तिग्रस्तों के प्रति सहयोग सद्भाव तथा पीड़ित जनों से सहानुभूति और आततायी के प्रति आक्रोश की भावनायें भी खूब पाई जाती हैं। युद्ध में घोड़ों के उपयोग की चातुरी, कुत्ते की स्वामिभक्ति और दूसरे घरेलू जानवरों का प्रेम तो आये दिन देखने को मिलता ही है। इस तरह की कई घटनायें इतिहास प्रसिद्ध भी है ऐसा नहीं है कि ये पशु इस तरह का विशेष व्यवहार अपने मालिक के साथ ही करते हों। उनके अपने साथियों के प्रति भी उनका व्यवहार कई बार इतना सूझ-बूझ भरा होता है कि देख-सुन कर दंग रह जाना पड़ता है।

कुछ दिन पर्व अमेरिका के प्रसिद्ध पत्र ‘लाइफ’ में व्यक्ति की आँखों देखी घटना का वर्णन छपा था। हुआ यह कि एक भेड़ का बच्चा किसी तरह काँटेदार झाड़ी में उलझ गया था। उसने झाड़ी से निकलने की बहुतेरी कोशिश की परन्तु बेचारा अंततः असफल रहा और थका कर निराश हो गया। पास ही उसकी माँ भेड़ भी चर रही थी। झाड़ियों में खड़खड़ाहट सुनकर उसे न जाने क्या शंका हुई कि वह वहाँ देखने आयी। सामान्यतः इस प्रकार की आहट पाकर भेड़ बकरियाँ भाग जाती हैं परन्तु वह मादा भेड़ पास आई और अपने बच्चे को झाड़ियों में फँसा देखकर उसे निकालने की कोशिश करने लगी। वह भी विफल ही रही। निराश होने के बाद वह खेतों के पार चर रही दूसरी भेड़ों के पास गई। कुछ ही देर बाद वह एक नर भेड़ के साथ वापस लौटी। मेढ़े ने अपने सींगों से काँटेदार टहनियों को खींचना शुरू किया और कुछ ही देर में मेमना झाड़ियों से मुक्त हो गया। झाड़ियों से निकलने के बाद उसकी माँ और नर मेढ़ा उस मेमना का चाट-चाट कर जिस प्रकार प्रेम प्रदर्शित कर रहे थे लगता था उसे विपत्ति से छूट जाने के लिए आश्वस्त कर रहे हों और उसका भय मिटा रहे हों।

आततायियों के प्रति रोष-आक्रोश की भावना केवल मनुष्यों में ही नहीं होती वरन् पशु पक्षी भी अनीति का डटकर मुकाबला करते हैं। सामान्यतः कमजोर जानवर ताकतवर जानवर से डर जाते हैं और डरकर या तो भाग जाते है अथवा आत्मसमर्पण कर देते हैं। परन्तु कई बार वे गजब की साहसिकता तथा समझदारी का परिचय देते हुए आततायी का डटकर मुकाबला करते हैं। जे0 जे0 रीमेन्स ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है कि-- डबलिन में उनके मकान की खिड़की के पास अबावीलों के एक जोड़े ने घोंसला बनाया और उसमें रहने लगे। उन्हें रहते हुए कुछ ही दिन हुए थे कि एक गौरैया ने उनके घोंसला पर कब्जा कर लिया। अबावील दंपत्ति को यह देखकर बड़ा गुस्सा आया।

उन्होंने गौरैया की घोंसले से निकालने की जी तोड़ कोशिश की परन्तु गौरैया अपने शक्ति मद में जाकर घोंसले पर अड्डा जमाये ही रही। अन्त में अबावील दम्पत्ति अपने कुछ साथियों को ले आयी। उन्होंने गौरैया को घोंसले से बाहर निकालने की अपेक्षा उसकी उद्दण्डता का मजा चखाने का निश्चय कर लिया था। सभी अबावीलें मिलकर अपनी चोंचों में कीचड़ भर कर लाने लगी और उससे घोंसला का मुँह बन्द कर दिया। गौरैया अब भीतर ही बन्द हो गई थी कुछ दिन बाद जब वहाँ से घोंसला हटाया गया तो गौरैया मरी पाई गई। बेचारी को अपने किये की सजा जीवन से हाथ धोकर भोगना पड़ी थी।

पशु पक्षियों द्वारा किया जाने वाला यह विशेष व्यवहार आकस्मिक ही नहीं कहा जा सकता। मानवी बुद्धि की दृष्टि से इस तरह के सम्बन्धों की रीति-नीति नैतिक चेतना की जागरण से ही विकसित होती है। मनुष्य के भीतर भी अपने मित्रों व साथियों के प्रति निर्दोष निस्वार्थ त्याग भावना का उदय होता है। बुरे से बुरे और दुष्ट से दुष्ट व्यक्ति में भी कई अवसरों पर विपत्ति ग्रस्तों से प्रति करुणा का भाव जाग उठता और कमजोर से कमजोर व्यक्ति भी अपने से बलवान आततायी से भिड़ जाने का साहस जुटा लेता है। कहने का अर्थ यह कि नैतिक चेतना अथवा अन्तरात्मा की प्रेरणा सभी प्राणियों में होती है, वह पशु-पक्षी हो या मनुष्य देवता। यह नैतिक चेतना अथवा अन्तरात्मा की प्रेरणा इस बात का प्रतीक है कि किसी भी प्राणी का जन्म और जीवन निपट उसका अपना मात्र ही नहीं है। बल्कि प्रत्येक प्राणी की समष्टिगत उपयोगिता है। प्रकृति ने उसे निजी स्वार्थों को पूरा करने के अलावा समष्टिगत उपयोगिता सिद्ध करने की भी भरपूर प्रेरणा प्रदान की है। मनुष्य को मिले अतिरिक्त साधन और विशेष सुविधायें तो इन प्रयोजनों को पूरा करने के लिए विशेष दायित्वों का बोध कराते हैं।


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