आत्मा न स्त्री है, न पुरुष

December 1978

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संस्कृत में आत्मन शब्द नपुंसक लिंग है। इसका कारण यही है कि आत्मा वस्तुतः लिंगातीत होती है। वह न स्त्री है, न पुरुष।

तब स्त्री या पुरुष रूप में जन्म लेने का आधार क्या है? इस अंतर का आधार जीव से जुड़ी मान्यताएं ही हैं। जीव-चेतना भीतर से जैसी इच्छा करती है, वैसे संस्कार उसमें गहरे हो जाते हैं। अपने प्रति जो मान्यता दृढ़ हो जाती है, वही व्यक्तित्व रूप में प्रतिपादित होती है। ये मान्यताएं स्थिर नहीं रहतीं। तो भी सामान्यतः इनमें एक दिशाधारा का सातत्य रहता है। किसी विशेष अनुभव की प्रतिक्रिया से मान्यताओं में आकस्मिक परिवर्तन भी आ सकता है। या फिर सामान्य क्रम में धीरे-धीरे क्रमिक परिवर्तन भी होता रह सकता है।

यह मान्यता अन्तःकरण से सम्बन्धित होती है। अन्तःकरण के चार अंश हैं- मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। अहंकार का अर्थ है वह अस्मिता भाव जिसके सहारे व्यक्ति सत्ता का समष्टि सत्ता से पार्थक्य टिका है। जब अहं-भाव का सम्पूर्ण नाश हो जाता है, तो समुद्र में बूँद की तरह व्यष्टि का समष्टि में लय हो जाता है। उसकी स्वतंत्र सत्ता नहीं रह जाती। स्वतंत्र सत्ता अहं-भाव पर ही अवस्थित है। इसी अहं-भाव में जो मान्यताएं अंकित संचित हो जाती हैं, वे ही व्यक्तित्व की विशेषताओं का आधार बनती हैं। इन विशेषताओं में लिंग-निर्धारण भी सम्मिलित हैं। जीवात्मा पुरुष रूप धारण करेगी या स्त्री रूप यह इसी अहं-भाव की मान्यता पर निर्भर है। उसमें जैसी इच्छा उमड़ेगी जैसी मान्यताएं जड़ जमा लेंगी, वैसा ही लिंग निर्धारण भी होगा। आधुनिक मनोवैज्ञानिक शब्दावली में अहंकार की अचेतन की अति गहन परत कह सकते हैं। इससे ही ‘ईगो’ और “सुपर ईगो” का स्वरूप निर्धारित होता है।

‘ईगो’ के स्वरूप में रोज-रोज आमूल-चूल परिवर्तन असम्भव है। मान्यताएं आस्थाएं बहुत गहरी जड़ें जमाये रहा करती हैं। उनमें आये दिन ऐसी फेर-बदल नहीं हो सकती कि पूरा ढाँचा ही बदल जाये। परन्तु जब भी मान्यताएं बदलती हैं तो उनका प्रभाव स्वाभाविक ही बहुत गहरा और दूरगामी होता है। बाल्मिकि, अजामिल, अम्बपाली ने अपने बारे में मान्यता बदली तो उनका व्यक्तित्व ही बदलता चला गया। जिस स्तर तक मान्यताएं परिवर्तित होती हैं, उसी स्तर तक व्यक्तित्व में हेरफेर होता। लिंग परिवर्तन भी ऐसे ही गहरे हेर-फेर से सम्भव है। जब कोई आत्मा अपने वर्तमान लिंग के प्रति गहराई से असन्तुष्ट होती है या जब उसकी मूलभूत प्रवृत्तियों की दिशा ही बदल जाती है, तो लिंग परिवर्तन समेत व्यक्तित्व में अनेक परिवर्तन हो सकते हैं। ऐसे परिवर्तन से इस जन्म की नारी अगले जन्म में पुरुष और इस जीवन का पुरुष अगले जीवन में नारी बन सकता है। कीड़े-मकोड़े जिस परिवेश में रहते हैं, उसका प्रभाव उनकी त्वचा के रंग तक पर पड़ता है। हरे पेड़ में रहने पर हरापन बढ़ जाता है, काले या भूरे वृक्षों, वनस्पतियों के बीच उनकी त्वचा का रंग भी वैसा ही हो चलता है। आत्मा भी मान्यताओं के जिस परिवेश में रहती हैं उसका उसके नर या नारी होने पर भी प्रभाव पड़ता है। चीते के शरीर पर घास के प्रभाव से पड़ जाने वाली भूरी-चितकबरी लकीरों-पट्टियों की तरह मान्यताओं और अनुभूतियों का प्रभाव आत्मपटल पर पड़ता रहता है।

व्यक्तित्व में जो प्रवृत्तियाँ प्रधान हो जाती हैं, जीवात्मा का वही लिंग बन जाता है। नारी-प्रवृत्तियों की प्रधानता से कोई लड़का अगले जन्म में लड़की बन सकता है, पुरुष प्रवृत्तियों का प्राधान्य किसी लड़की के अगले जीवन में लड़का बनने का कारण बन सकता है। यों सामान्य क्रम में भी हर व्यक्ति में दोनों ही लिंगों सम्बन्धी कुछ प्रवृत्तियाँ विद्यमान रहती हैं, किन्तु प्रधानता किसी एक की रहती है। ऐसे पुरुषों की कमी नहीं जो पूरी तरह पुरुष होते हुए भी करुणा ‘वात्सल्य’ ममता, मातृ-हृदय की कोमलता से सम्पन्न हों। ऐसी नारियाँ भी कम नहीं, जो नारी की समस्त विशेषताओं के साथ आक्रामकता, लड़ाकूपन जैसी पुरुष-प्रवृत्तियों से भी भरपूर हों।

जब तक ये विशेषताएं सीमित रहती हैं, प्रधानता अपने ही लिंग स्वभाव की बनी रहती है तब तक तो ये व्यक्तित्व के गुण और क्षमताएं ही बनी रहती हैं। इनकी असामान्य वृद्धि होने लगती है, तब वे चर्चा का विषय बन जाती हैं। किसी पुरुष में स्त्री सुलभ वृत्तियाँ अधिक हो जाने पर उसे स्त्रैण कहा जाता है। नारी में पुरुष प्रवृत्ति को प्रधानता दिखने पर इसे मर्दानी कहते हैं। जब बात और आगे बढ़ती है तो दोनों को ही जनखा, हिजड़ा कहा जाता है। यह मनोवृत्तियों के परिवर्तन का परिणाम हैं।

जब यह परिवर्तन मनोवृत्तियों से भी अधिक गहराई तक में होता है, संस्कार और मान्यताएं उलट-पुलट जाती हैं तब पूरा ढाँचा ही बदल जाता है तथा लिंग परिवर्तन हो जाता है।

ब्राजीलवासी श्रीमती इडा लारेन्स 12 बच्चों की माँ बन चुकी थी और अब सन्तान प्रजनन की सम्भावना क्षीण ही हो गई थी। तभी उन्हें “सेयान्स” में उनकी मृत पुत्री इमीलिया ने सन्देश दिया कि मैं पुनः तुम्हारे गर्भ से ही जन्म लेना चाहती हूँ किन्तु इस बार पुत्र रूप में।

अपने सन्देश के कुछ ही दिनों बाद उसने अपनी पूर्व की माँ श्रीमती लारेन्स के गर्भ में प्रवेश किया। यथासमय वह पुत्र रूप में पैदा हुई। माँ-बाप ने उसका पोलो नाम रखा। इस लड़के पोलो ने अनेक प्रवृत्तियाँ अब भी इमीलिया जैसी थीं। लड़का हो जाने पर भी उसके व्यक्तित्व में अनेक नारी सुलभ विशेषताएं विद्यमान थीं। किन्तु था वह पूरी तरह लड़का ही।

श्रीलंका की एक दो वर्षीया लड़की ने बताया कि पूर्वजन्म में वह लड़का थी परामनोवैज्ञानिकों ने उसके बारे में सुना तो संपर्क किया और खोजें की। उसके बताये हुए पूर्वजन्म-सम्बन्धों विवरण प्रामाणिक पाये गये। अपने पूर्वजन्म में ‘तिलकरत्न’ नामक लड़का होने की बात उसने बताई थी। उस लड़के की जो-जो प्रवृत्तियाँ गतिविधियाँ बताई छानबीन पर उनकी पुष्टि हो गई। पता यह चला कि तिलकरत्न में नारी सुलभ विशेषताएं उस जीवन में ही विद्यमान थीं।

यों, विज्ञान का हर विद्यार्थी जानता है कि प्रत्येक मनुष्य के भीतर उभयलिंगों का अस्तित्व विद्यमान रहता है। नारी के भीतर एक नर सत्ता भी होती है, जिसे ऐनिमस कहते हैं। इसी प्रकार हर नर के भीतर नारी की सूक्ष्म सत्ता विद्यमान होती है, जिसे ऐनिमा कहते हैं। प्रजनन अंगों के गह्वर में विपरीत लिंग का अस्तित्व भी होता है। नारी के स्तन विकसित रहते हैं, परन्तु नर में भी उनका अस्तित्व होता है।

कभी-कभी किसी व्यक्ति के भीतर छिपा यह विपरीत लिंगी व्यक्तित्व प्रबल हो उठता है। ऐसी स्थिति में कुछ शल्य-क्रियाएं किये जाने पर परिवर्तित लिंग वाला व्यक्तित्व पूरी तरह उभर आता है। उसमें कोई भी असामान्यता नहीं शेष रहती।

एरिका खिलाड़ी थी। साहस उसमें भरपूर था। उसने विचार किया कि इस स्थिति में लड़की ही बने रहने पर जीवन में अनेक कठिनाइयाँ आयेंगी। एक कठिनाई तो सामने ही थी। उसे यह कह कर प्रतियोगिता में भाग लेने से रोक दिया गया कि डाक्टरी रिपोर्ट के नतीजों के आधार पर अब तुम्हें लड़कियों वाली प्रतियोगिताओं में सम्मिलित होने के अयोग्य ठहरा दिया गया है।

अपने देश में सोलन शहर के निवासी जियालाल सुनार की तीसरी लड़की सुनीता के चार वर्ष की उम्र में आपरेशन के उपरान्त पुरुष बन जाने की घटना ताजी है। सितम्बर 78 के प्रारम्भ में उसका आपरेशन छः डाक्टरों ने किया। यह लड़की 4 वर्ष की थी। डाक्टरों ने देखा कि उसके मूत्रमार्ग को पुरुषों के मूत्रमार्ग में बदलना एक आपरेशन द्वारा सम्भव है। दूसरे सभी लक्षण उसमें पुरुषों के ही विद्यमान थे। आपरेशन के बाद सुनीता लड़का हो गई।

स्पष्ट है कि आत्मा का कोई लिंग नहीं होता। एक ही जीवात्मा अपने संस्कारों और इच्छा के अनुसार पुरुष या नारी, किसी भी रूप में वैसी ही कुशलता से जीवन जी सकता है। नर-नारी के भेद, प्रवृत्तियों की प्रधानता के परिणाम स्वरूप शरीर मन में हुए परिवर्तनों के भेद हैं। उनमें से कोई भी रूप अधिक श्रेष्ठ या निकृष्ट नहीं। अपने व्यक्तित्व के वजन यानी गुण क्षमताओं विशिष्टताओं के आधार पर ही कोई व्यक्ति उत्कृष्ट या निकृष्ट कहा जा सकता है। लिंग के आधार पर नहीं। व्यक्तित्व का कोई लिंग नहीं होता। उसकी प्रवृत्तियाँ और प्रकृति हुआ करती है। जो अन्तःकरण की मान्यताओं संस्कारों का ही परिणाम होती हैं और जिनमें यथेच्छ परिवर्तन भी सम्भव है।


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