सोने की खानों के आस-पास जलाशयों में पर्याप्त मात्रा में स्वर्ण-अंश जब भूगर्भवेत्ताओं ने देखा तो उसके कारण की जाँच की। मालूम हुआ कि कुछ माइक्रोव-बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्मजीव स्वर्ण को खाते हैं और उनमें गंधक का मिश्रण करके एक ऐसा स्वर्ण थायो सल्फेट बनाते हैं, जो पानी में घुल सकता है। सोवियत विज्ञान एकेडेमी के शोधकर्त्ताओं द्वारा थायोनिक और स्पोरस बैक्टीरिया समूहों को स्वर्ण में से सोना निकालकर जलाशयों में भेजने का उपक्रम चलता रहता है, ताकि अन्यत्र के लोग भी उससे लाभ उठा सकें और एक स्थान पर उसका केंद्रीकरण विग्रह-विद्रोह उत्पन्न न करें। साम्यवादी कहते हैं— “उनका वर्ग अदृश्य समझे जाने वाले जीवाणुओं में भी मौजूद है— इसका प्रमाण है।”
— कामरेड स्पोरस माइक्रोव