एशियाटिक सोसाइटी के संस्थापक, सर विलयम जोन्स उन दिनों सुप्रीम कोर्ट के जज थे। संस्कृत पढ़ने की उन्हें उत्कट इच्छा थी; पर उन दिनों बंगाल में कट्टरता का पूरा जोर था। कोई पंडित किसी 'मलेच्छ' को संस्कृत भाषा पढ़ाने के लिए तैयार न हुआ।
अंततः काफी वेतन पर रामलोचन नामक एक पंडित तैयार हुए। उनने कई शर्त लगाई। छात्र पढ़ने से पूर्व कुछ न खाए। लाने के लिए पालकी का प्रबंध हो। जिस कमरे में पढ़ा जाए, वह हिंदू नौकर द्वारा गंगाजल से घोटा जाए। के अलग वस्त्र हों आदि आदि।
यह सब शर्तें सर जोन्स ने स्वीकार की और वे विद्याप्राप्ति के लिए की जाने वाली तप-साधना की कठिनाइयाँ मानकर इन सब शर्तों को स्वीकार करते रहे और अंततः संस्कृत भाषा के विद्वान बनकर अपनी संस्था को महत्त्वपूर्ण कार्य संपन्न कर सकने में समर्थ बना सके।
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