पवित्र, श्रद्धालु और धार्मिक बनें

February 1973

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हे मज्दा आहुर! आप सद्भावनाओं और सत्प्रवृत्तियों के अनादि आलोक हैं। हम आपकी शरण आते हैं; इसलिए कि हमें पवित्र, श्रद्धालु और धार्मिक बनाएँ।

हे अधिष्टाता! हमें विश्वप्रेम और कर्त्तव्यनिष्ठा के पथ पर ले चलिए। जब हमारा मन पाप की ओर झुके और फिसलने के लिए मचले तो इतना सहारा देना कि उन विषमताओं को हटाने वाला, भक्तिभरा आलोक हमारे अंतःकरण में उदित हो सके।

हे मज्दा! आपका यह संकेत विस्मरण न हो जाए कि धर्मनिष्ठ ही श्रेय को प्राप्त करता है। आपकी इस वाणी को हमारे ज्ञानी हर जिज्ञासु के अंतस्तल तक पहुँचाने में समर्थ हों। अज्ञानियों को इतना बल मत देना कि वे लोगों को देर तक पथ भ्रष्ट करते रह सकें। आप हमें बहुत देते हैं, पर इतना और भी दें कि पवित्र बुद्धि, आत्मसंयम और सद्भावों के साथ जुड़े हुए आनंद का आस्वादन कर सकें।

हे अंश! आप हमें उस संपदा से सुसंपन्न कर दें, जो आत्मा को ज्ञान के प्रकाश और सत्कर्मों के आनंद से भरा-पूरा बनाए रहती है।

—  जिंदावस्ता


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