जो सदा दूर क्षितिज पर आँखें गढ़ाए रहते है और जमीन को देखकर कदम बढ़ाते है, उन्हीं को सही राह मिलती है। जीवन उसके सम्मुख अपने नुकसान खोलता है जो उसे जीत ले। हार मान लेने पर जो मिले उसे अंगीकार मत करो। जब तक पर्वत की छोटी छू न लो तब तक उसकी ऊँचाई मत नापो, बाद में तुम देखोगे कि वह उससे कहीं नीची थी जितनी दूर खड़े लोग समझते थे।
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