धन कुबेर हैनरी फोर्ट ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, “जहाँ तक मैं समझा हूँ, जीवन एक सतत यात्रा है। इसमें कहीं कोई पड़ाव नहीं। जो सोचता है, मुझे करना था कर चुका, समझना चाहिए, वह अवनति की ओर जा रहा है। गतिशील रहना ही जीवन का चिह्न है।”
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