हम हाइड्रोजन गैस जैसे हलके रहें

February 1973

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ईश्वर सबमें घुला-मिला है। विशुद्ध ब्रह्मतत्त्व को अलग से देखा नहीं जा सकता। उसकी झाँकी किसी व्यक्ति प्रतिमा, चित्र आदि के माध्यम से ही की जा सकती है। ठीक यही स्थिति हाइड्रोजन की है। वह सबसे हलकी गैस है, इसलिए अकेली नहीं पाई जाती, वह किसी-न-किसी पदार्थ में घुल-मिलकर ही रहती है। एकाकीपन उसे सुहाता ही नहीं। कहीं वह पानी में मिली होगी, कहीं वनस्पति घी में, कहीं पेड़-पौधों में, कहीं खनिज पदार्थों में। संसार का कोई भी तत्त्व ऐसा नहीं, जिसमें न्यूनाधिक मात्रा में हाइड्रोजन मिली हुई न पाई जाए।

हाईड्रोजन के परमाणु सबसे हलके होते हैं। उसके केंद्र में केवल एक प्रोटोन होता है और केवल एक इलेक्ट्रोन चक्कर काटता है। उसका परमाणु केवल दो टुकड़ों में विखंडित किया जा सकता है।

मानव शरीर में पानी की मात्रा 60 प्रतिशत है और पानी में हाइड्रोजन की मात्रा दो-तिहाई है। इसका अर्थ हुआ हमारा अस्तित्व शरीर 40 प्रतिशत हाइड्रोजन का बना है। आकाश में चमकने वाले अधिकांश तारे, जिनमें एक हमारा सूर्य भी है हाइड्रोजन के ही बने हैं। अपने सौरमंडल के गुरु, वरुण, शनि, यूरेनस, नेपच्यून में हाइड्रोजन की मात्रा अन्य ग्रहों की अपेक्षा कहीं अधिक है।

हलकापन तुच्छ अथवा दयनीय नहीं माना जाना चाहिए। जिसके ऊपर व्यक्तिगत पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ जितना हलका होगा, वह उतना ही अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य कर सकेगा। बोझिल गृहस्थी भार ढोते-ढोते तो उसी कुचक्र में आदमी को मरते-खपते रहने के अतिरिक्त आगे बढ़ने का और कोई रास्ता नहीं बचा रहता। हलकी हाइड्रोजन गैस इसीलिए सर्वोपरि महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती है कि वह अधिकाधिक भारमुक्त रहती है। मन में जिसके ऊपर कामनाओं का, महत्त्वाकांक्षाओं का जितना अधिक बोझ लदा होगा, वह बंदर जैसी उछल-कूद करके कुछ संग्रह कर सकता है और बालकों जैसा मोद मना सकता है, फिर भी इसके लिए जिन अंतर्द्वंदों में उलझे रहना पड़ता हैं, वे बेतरह थका देते हैं। हलका मन रखकर खिलाड़ी की भावना से किए हुए सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों ही स्तर के कार्य सरल भी होते हैं और सफल भी।

जहाँ भी चमक दिखाई पड़े, वहाँ यह हलकापन ही उभरता समझा जाना चाहिए। सूर्य चमकीला है, साथ ही पृथ्वी की तुलना में कहीं अधिक हलका भी। जिसने अहंकार का बोझ उतारकर नम्रता एवं विनयशीलता का शिष्ट हलकापन धारण कर लिया, समझना चाहिए उसने महानता प्राप्त करने का मर्म समझ लिया।

हाइड्रोजन की सबसे बड़ी विशेषता उसकी ज्वलनशीलता है। जरा से ताप में वह जलने लगती है। जब जलती है तो ऑक्सीजन के साथ मिलकर पानी बन जाती है। यह पानी ही जीवन है। जीव वैज्ञानिकों के अनुसार इस धरती पर जीवन सबसे पहले पानी में ही पैदा हुआ। वनस्पतियों से लेकर प्राणियों तक के शरीरों में अधिक अंश जल का और कम अंश ठोस पदार्थों का होता है। इन सबका जीवन पानी पीकर ही स्थिर रहता और बढ़ता है, यदि वह न मिले तो फिर किसी का भी जीवित रहना संभव न रह सकेगा। पानी में एक-तिहाई ऑक्सीजन और दो-तिहाई हाइड्रोजन है। इसका अर्थ यह हुआ कि धरती पर पाए जाने वाले जीवन तत्त्व में दो-तिहाई भाग हाइड्रोजन का है।

 अनाचार और अनौचित्य को देखकर क्षुब्ध हो उठना उज्ज्वल अंतःकरण का चिह्न है। अनीति से घृणा होनी ही चाहिए। अवांछनीयता से न केवल असहयोग किया जाए, वरन उसके विरुद्ध संघर्ष भी खड़ा किया जाए। भगवान ने मनुष्य के अंदर हाइड्रोजन जैसी ज्वलनशीलता इसीलिए दी है, पर यह सब होना शांतचित्त एवं संतुलित मनःस्थिति में ही चाहिए। अन्यथा जोश में होश खो बैठने से ऐसी औंधी गतिविधियाँ अपना ली जाएँगी, जिनसे अनाचार को मिटाना तो दूर, उलटे स्वयं को ही आवेशग्रस्त स्थिति के कारण हानि उठानी पड़ेगी।

हलकापन, सौमनस्य पानी की तरह बरसता है, बहता है और सर्वत्र शीतलता, हरीतिमा एवं तृप्ति की परिस्थितियाँ विनिर्मित करता है। हाड्रोजन जैसे हलके विचित्र स्वभाव के व्यक्ति सर्वत्र शांति, शीतलता एवं सरसता की धारा ही प्रवाहित करते हैं।

हवाई जहाजों के आविष्कार में इसी जानकारी ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निबाही कि हाइड्रोजन हलकी होती है और हलकापन ही, ऊपर उठता है — ऊँचा चढ़ता है।

अठारहवीं सदी के अंत में फ्रांस के गोल्फियर भाइयों ने ऐसा गुब्बारा बनाया, जिसके सहारे आदमी आकाश में उड़ सकता था। पीछे जर्मनी के काउंट जैपलीन ने आदिम हवाई जहाज ‘जैपलीन’ बनाया। 'ग्राफ' नामक जैपलीन ने पानी की परिक्रमा करके संसार को चकित कर दिया। इन दोनों ही आविष्कारों में हाइड्रोजन की ऊष्मा उठ सकने की शक्ति का ही प्रयोग किया गया था। उसके बाद अन्य प्रयोग होते रहे और वर्त्तमान हवाई जहाजों का ढाँचा खड़ा हो गया ।

ऊँचा उठना हलकेपन पर निर्भर है। भारी तो नीचे ही गिरेगा। धन-संपदाओं से लेकर पद, सत्ता और बुद्धिमत्ता का अहंतापूर्ण भारीपन अपने ऊपर लादे रहने वाला कभी उच्चकोटि के महामानवों की पंक्ति में नहीं बैठ सकता। वायुयान आकाश में ऊँचे उड़ते हैं, समस्त वाहनों की तुलना में अधिक वेग से चलते हैं। मनुष्य भी वायुयान की भूमिका संपादित कर सकता है, आँखों की पहुँच से परे भी ऊँचाई तक पहुँच सकता है और इतनी तीव्रता से प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सकता है, जिसकी तुलना में सामान्य मनःस्तर के प्रबल पुरुषार्थ और मनोयोग को भी पिछड़ा पड़ा रह जाना पड़े। अंतःकरण का हलकापन कितनी महान संभावनाएँ अपने साथ जोड़े हुए है, इसकी एक झाँकी हाइड्रोजन गैस के सहारे चलने वाले वायुयानों को देखकर की जा सकती है।

वनस्पति घी का आज पूरे जोर-शोर के साथ प्रचलन है। चिकनाई की तीन-चौथाई आवश्यकता इसी से पूरी होती है। असली घी तो एक-चौथाई बचा है, सो भी दुम दबाकर भागने की तैयारी में है। यह वनस्पति घी क्या है? विशुद्ध रूप से हाइड्रोजन गैस का चमत्कार। मूँगफली आदि के मामूली तेलों को गंधहीन सफेद और असली घृत से भी बढ़िया रवादार बना देने का जादू इस हाइड्रोजन गैस द्वारा ही किया हुआ होता है। गैस के चूल्हे अब हर बड़े शहर में उपलब्ध हैं और ईधन के धुँए के झंझट से छुट्टी ही मिल गई। यह इसी गैस का चमत्कार है।

हाइड्रोजन ठंडा करके तरल बनाया जा सकता है। अधिक शीत में वह ठोस भी हो जाता है। किसी भी रूप में रहे, वह अपने हलकेपन की विशेषता बनाए ही रहेगा। ऑक्सीजन की तुलना में वह 16 गुना हलका होता है। जिस बर्तन में एक सेर पानी आ सकता है, उसमें एक छटाँक ही हाइड्रोजन भरा जा सकेगा।

जल के रूप में जीवनदाता और हलकेपन में अनुपम यह हाइड्रोजन परशुराम की तरह उग्र भी है। अधिक-से-अधिक उग्र और ज्वलनशील, सर्वनाशी, आग्नेयास्त्र हाइड्रोजन बम बना ही है। उससे अधिक घातक अस्त्र अभी तक और कोई नहीं बना है।

तेल को घी बना देने की, तुच्छ को महान बना सकने की क्षमता हाइड्रोजन की तरह दुर्बुद्धि के भार से विमुक्त मानवों में ही पाई जाती है। शीतलता को बनाने और बढ़ाने में भी उसका योगदान सराहनीय माना जाता रहेगा। ढुल-मुल बहते-हिलते पानी जैसे अस्थिर मन को हाइड्रोजन की तरह हलकेपन का स्नेह-सौजन्य ही निष्ठावान सुस्थिर बनाता है। जहाँ ऑक्सीजन का सोलह सेर प्रयास काम करेगा, सामान्य व्यक्तित्व 16 जुटेंगे, वहाँ हलके चरित्र-व्यवहार और मनःस्तर का व्यक्ति अपनी स्वल्प शक्ति खरच करके ही वह प्रयोजन पूरा कर लेगा। हाइड्रोजन की तरह श्रेष्ठ व्यक्तित्व भी अपने में हलकापन ही भरे रहते हैं। वे भारीपन की तुलना में सर्वत्र अधिक सफल होते हैं। प्रसिद्ध है कि मोटे, भारी मनुष्यों की तुलना में हलके, पतले लोग अधिक निरोग और अधिक दीर्घजीवी होते हैं।

उपयुक्त अवसर पर वे उत्साहवर्द्धक शीतलता प्रस्तुत करते हैं और जहाँ आवश्यकता होती है, वह अपनी विस्फोटक उग्रता का ही परिचय देते हैं। सज्जनों की श्रेष्ठता, अनाचार के उन्मूलन और सदाचार के परिपोषण में हाइड्रोजन की ही तरह उभयपक्षी भूमिका संपादित करती है।

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