विश्व ज्योतिर्विदों का संयुक्त प्रतिवेदन

February 1973

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हर बड़े-से-बड़े कार्य का भी प्रारंभ छोटे रूप में ही होता है। युग परिवर्तन जैसी महत्त्वपूर्ण बात जब तक सामान्य दिखने वाले प्रयासों के साथ कही जाती थी, तब तक लोगों को स्वाभाविक शंकाएँ होती थीं; पर वह समय आ रहा है जब वह हर व्यक्ति को स्वीकार करनी ही होगी। विश्व ज्योतिर्विद सम्मलेन की घोषणाएँ इस संदर्भ में ध्यान देने योग्य हैं।

“अमरीका और रूस में युद्ध तो होगा, किंतु सन् 1984 के पूर्व इस बात की कोई संभावना नहीं है। यह युद्ध विश्वयुद्ध हो सकता है।”

“आज जो राष्ट्र महाशक्तियों द्वारा विभक्त कर लिए गए हैं; जैसे जर्मनी, कोरिया और वियतनाम, वह भविष्य में पुन: संयुक्त हो जाएँगे। उनकी सरकारें दो न होकर एक होगी, राष्ट्रवादी और बाह्यशक्तियों के दबाव में आए बिना काम करने वाली होगी।”

“व्यापार, धन, धान्य, कृषि, गौ, विद्या, विज्ञान तथा तकनीकी क्षेत्र में एशियाई प्रभुत्व भारतवर्ष में आ सकता है।”

“चीन काफी समय तक जोड़-तोड़ की राजनीति में कामयाब रहेगा और प्रबल शत्रुओं को भी धोखा देने और मित्रता का नाटक रचने में वह सफल होगा; किंतु उसकी पोलें जल्दी ही खुलेंगी। अपने आंतरिक विग्रह के कारण ही वह विनाश के गर्त्त में जा सकता है।”

“विश्व के कई राजनीतिक नेताओं की हत्या का योग है, जिनमें चीन भी सम्मिलित है।”

यह पंक्तियाँ कोई किंवदंतियाँ या वर्त्तमान देश-दुनियाँ की समीक्षा नहीं, अपितु विश्व के उन ख्यातिलब्ध भविष्यवक्ताओं का सम्मिलित प्रतिवेदन है, जिनकी 80 प्रतिशत भविष्यवाणियाँ निश्चित सत्य उतरती रही हैं। 104 ज्योतिषियों का विश्व स्तर का सम्मेलन कुछ ही दिनों पूर्व 8, 9 तथा 10 सितंबर 72 को कोरिया के 'स्यूक्त'  नामक नगर में संपन्न हुआ। ज्योतिर्विज्ञान भी अन्य शास्त्रों की तरह एक महत्त्वपूर्ण विषय है। अब यह बात अनेक वैज्ञानिक भी स्वीकार करने लगे हैं कि मानव जीवन बहुत कुछ ग्रहचक्रों की गति द्वारा नियंत्रित और प्रतिबंधित है। पिछले दिनों सूर्य में भयंकर विस्फोट वेधशालाओं में अंकित किए गए, तभी यह घोषणा कर दी गई थी कि इस वर्ष एशिया में भूकंप तथा तूफानों का प्रकोप बढ़ेगा, फिर उड़ीसा, केरल आदि तटवर्तीय राज्यों को कई सप्ताह पूर्व तूफान आने की चेतावनी दे दी गई। यह सब वैज्ञानिकों द्वारा उपकरणीय जाँच पर आधारित था। गणक-यंत्र वायुमंडल की गैसों के दवाब, धूलकणों की हलचल तथा विकिरण का प्रभाव जाँचकर ऐसी भविष्यवाणियाँ करते हैं। तात्पर्य यह है कि कल जो कुछ घटित होने वाला होता है, उसकी सूक्ष्म हलचल प्राकृतिक कणों में आज ही, आज से पहले ही प्रारंभ हो चुकी होती है। ठीक उसी प्रकार बौद्धिक चेतना का भी विज्ञान है।

विश्व में एक जो स्वच्छ, निर्मल चेतना का सागर भरा हुआ है, वह भी ऐसी विश्वव्यापी योजनाएँ बनाया करता है। इन योजनाओं में निर्माण, पालन-पोषण, उत्पादन, संरक्षण के ही विधान नहीं होते, अपितु विनाश, संहार और प्राकृतिक प्रत्यावर्तन का भी प्राविधान रहता है। ग्रहविद्या और ग्रहगणित के ज्ञाता सूक्ष्म अध्ययनों द्वारा उन पूर्वाभाषों को जान-समझ सकते हैं। यही है ज्योतिष और भविष्यज्ञान का दर्शन, जिसके द्वारा समय-समय पर अनेक देवज्ञ भविष्यवाणियाँ किया करते हैं।

ऊपर की पंक्तियों में जो भविष्यवाणियाँ दी जा रही हैं, उनकी प्रामाणिकता इस बात से और भी अधिक हो जाती है, क्योंकि वह 104 भविष्यवक्ताओं द्वारा समर्थित है और केवल वही घोषित की गई है, जिन पर आम सहमति थी। विश्व-संस्था के अध्यक्ष, जो कि स्वयं भी कोरिया के विश्वप्रसिद्ध देवज्ञ हैं, श्री हसीरों असानों ने उस सम्मिलित विज्ञप्ति को प्रसारित करते हुए लिखा है कि उसमें केवल उन्हीं भविष्यवक्ताओं को सम्मिलित किया गया है, जिनकी भविष्यवाणियाँ 80 प्रतिशत से भी अधिक सत्य हुई हैं।

इस सम्मेलन के समाचार और यह भविष्यवाणियाँ दुनियाँ के सभी प्रमुख अखबारों में विवरणसहित छापी गईं। भारतवर्ष में भी यह विवरण 'इंडियन एक्सप्रेस'  दैनिक के 12 सितंबर 72 के अंक में साररूप में छपा है। उसमें उपरोक्त घटनाक्रमों की चर्चा के अतिरिक्त विश्वव्यापी बौद्धिक परिवर्तनों का भी संकेत है। घोषणा में कहा गया है कि— आगामी पाँच वर्षों के अंदर एशिया में भारी उथल-पुथल होगी। यह उथल-पुथल एक ओर ‘विचार-क्रांति’ के रूप में परिलक्षित होगी तो दूसरी तरफ एक बार भयंकर अकाल पड़ेगा। तीन भयंकर भूकंप आएँगे, जिनमें दूसरा इतना भयंकर होगा कि एशिया ही नहीं, विश्व त्राहि-त्राहि कर उठेगा।

विचार-क्रांति का असर सारी दुनिया पर पड़ेगा। सन् 2000 से पूर्व ही बौद्धिक-क्रांति की यह लहर न केवल दक्षिणपंथी, वरन वामपंथी कम्युनिष्ट देशों में भी फैल जाएगी। क्रांति का स्वरूप आध्यात्मिक-धार्मिक विचार होगा। मत-मतांतरों के, वर्ण-संप्रदाय के, भाषा-भेष के भेद मिट जाएँगे और लोगों में धार्मिक समभाव तथा भाईचारे की भावना का व्यापक विस्तार होगा। सभी लोग ईश्वरीय सत्ता को मानने लगेंगे। नीति और सदाचार का निष्ठापूर्वक पालन करने वाले ही समाज के प्रमुख, मार्गदर्शक और सत्ताधिकारी बनाए जाएँगे। विवाह-शादियों के मामले में लोग और अधिक उदारता का परिचय देंगे। भौतिक मान्यताओं वाले लोग आध्यात्मिक मान्यताओं को श्रेष्ठ मानने लगेंगे।

परिवर्तन जब एक सुनिश्चित विधान के अनुसार होगा तो उसका सूत्रपात्र और सूत्र-संचालन कौन करेगा, इस बात पर भी विश्व भविष्यवक्ताओं में विचार-विमर्श हुआ। दृष्टा इस मामले में एक मत थे कि एशिया के किसी देश में जन्मा एक महान संत विश्व में भारी परिवर्तन लाने के लिए कार्यरत है। बिना प्रचार-विज्ञापन के वह अपने क्रियाकलाप में संलग्न है। शताब्दी के अंत तक उसका प्रयास इतना सफल होगा कि पिछले अवतारों से भी अधिक उसकी गरिमा का मूल्यांकन किया जाएगा।

युगनिर्माण परिवार के सदस्यों को यह अंदाजा लगाने में कठिनाई नहीं होनी चाहिए कि यह संकेत किस संत की ओर है।

सम्मेलन के समापन समारोह में इस तरह की अनेकों सम्मिलित भविष्यवाणियाँ, अध्यक्ष हसीरो और पीडि आसानों की ओर से की गई। पीड़ित मानवता को यह विश्वास दिलाया गया कि वह दिन अब समीप आ गया है, जबकि उपेक्षित और दलित आत्माएँ फिर से ऊँची उठेंगी। दुष्टता के संहार के लिए ईश्वरी सत्ता का प्राकट्य हो चुका। नया सृजन नया परिवर्तन होकर ही रहेगा।

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