दिमागी जादूगर अथवा दिमाग

July 1971

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

न्यूयार्क (अमरीका) शहर के सभी सम्भ्रान्त, व्यक्ति, बुद्धिजीवी और नगर की आबादी के हर क्षेत्र के नगर पार्षद उपस्थित है । हाल खचाखच भरा है । तभी एक व्यक्ति सामने स्टेज (मंच) पर आता है एक व्यक्ति ने प्रश्न किया-60 को 60 में गुणा करने पर गुणनफल क्या आयेगा तथा गुणा करते समय 47 वे अंक का गुणा करने पर जो पंक्ति आयेगी उसे बाई ओर से गिनने पर 36 वाँ अंक कौनसा होगा । प्रश्न सुनते ही वह व्यक्ति जो प्रदर्शन के लिये शक्ति आमन्त्रित किये गये थे वह निर्विकार रूप से कुर्सी पर बैठ गये । बिना किसी खड़िया कागज , पट्टी अथवा पेन्सिल के प्रश्न मस्तिष्क में ही हल करने लगे ।

सविकल्प समाधि वाले योगी ही यह क्षमता होती है कि वह अपनी सम्पूर्ण चेतना को शरीर के प्रत्येक अंक से खींच कर मस्तिष्क में केन्द्रित करले और विचार जगत में इस तरह घुल जाये जैसे दूध में पानी मिला देने पर पानी भी दूध हो जाता है। पानी का कोई अस्तित्व ही शेष नहीं रहता । विश्व-व्यापी चेतना की अनुभूति और प्राप्ति का यह भारतीय विज्ञान दुनिया के किसी भी विज्ञान से अधिक सूक्ष्म और मानव जीवन का हितकारी है उसी के द्वारा सृष्टि के गहन अन्तराल में चलने वाली सृजन, संहार और संचालन-प्रक्रिया का ज्ञान प्राप्त किया गया, किया जाता है उसे भला क्या समझेंगे तथाकथित बुद्धिवादी जिन्होंने आज पदार्थ विज्ञान को तो सब कुछ मान लिया पर जो चेतना पदार्थ की इच्छा , आकाँक्षा और हस्तान्तरण करती है उस महान् चेतना के अस्तित्व और विकास की प्रक्रिया को अन्धविश्वास कह कर अमान्य कर दिया ।

ध्यानस्थ व्यक्ति एक भारतीय थे । उनके अद्भुत मस्तिष्कीय करतबों से प्रभावित होने के कारण उन्हें अमरीका बुलाया गया । नाम था श्री सुरेशचन्द्र दत्त , बंगाल के ढाका जिले के रहने वाले । सुरेशचन्द्र दत्त ने कुल 45 मिनट में इतना लम्बा गुणा हल करके बता दिया, 47 वीं पंक्ति का 36 वाँ अक्षर भी । इससे पहले यही प्रश्न न्यूयार्क यूनिवर्सिटी के एक पी॰ एच॰ डी॰ प्रोफेसर ने भी हल किया था प्रोफेसर साहब ने मौखिक न करके विधिवत कापी-पेन्सिल से गुणा किया था । प्रतिदिन 2 घंटा लगाने के बाद पूरा प्रश्न वे 8 दिन में हल कर पाये थे । दोनों गुणनफल मिलाकर देखे गये तो दोनों में अन्तर निश्चित था कि उनमें से आया श्री सुरेशचन्द्र दत्त अथवा प्रोफेसर साहब-किसी एक का हल गलत था। जाँच के लिये दूसरे गणितज्ञ बैठाये गये। उनका जो गुणनफल आया वह श्री सुरेशचन्द्र दत्त के गुणनफल जितना ही था एक भी अंक गलत नहीं था जबकि अमेरिकी प्रोफेसर साहब का हल 16 स्थानों पर गलत था । श्री सुरेशचन्द्र दत्त से ऐसे कई प्रश्न पूछे गये जिनके उन्होंने सर्व शुद्ध हल करके बता दिया। किस शताब्दी की किस तारीख को कौन सा दिन था-ऐसे प्रश्न पूछे गये जिनका उत्तर गलत नहीं निकला। अमेरिका के वैज्ञानिक और बुद्धिवादी लोग इस अद्भुत क्षमता पर आश्चर्य चकित थे । दूसरे दिन अखबारों में सुरेशचन्द्र दत्त की प्रशंसा-मशीन का प्रतिद्वंद्वी (राइवल आफ मशीन,दिमागी जादूगर(मेन्टल बिजर्ड) ) मनुष्य की शक्ल में हिसाब की मशीन (ह्युमन रेडी रेकनर) तथ्रर विद्युत की गति से भी तीव्र गति से गणित के प्रश्न हल करने वाला (लाइटिंग केलकुलेटर) आदि विशेषण देकर की गई । नवम्बर 1626 में “इंडियन रिव्यू“ में श्री सुरेशचन्द्र दत्त इस विलक्षण प्रतिभा की जानकारी विस्तार से दी गई और इस अद्भुत मस्तिष्कीय क्षमता पर आश्चर्य प्रकट किया गया ।

मनुष्य की जन्मजात विशेषताओं का कारण ? वैज्ञानिकों से पूछा जाता है तो उत्तर मिलता है वंशानुक्रम गुणों के कारण ऐसा होता है। 24 वंश सूत्र (क्रोमोसोम) पिता के 24 माता के लेकर मनुष्य शरीर की रचना होती है। मनुष्य की विशेषताओं का कारण यह गुण सूत्र ही होते हैं। प्रसिद्ध जीवनशास्त्री ग्रेगर जोहन मेन्डेल ने सर्वप्रथम पौधों पर परीक्षण करके यह सिद्धांत संसार को दिया था । 1822 ई॰ सन् में आस्ट्रिया में जन्मे श्री मेन्डेल ने 8 वर्ष तक लगातार मटर पर प्रयोग किया । उन्होंने दो किस्म के मटर लेकर पहले उन्हें अलग-अलग बोकर देखा तो अच्छे बीजों के मटर अच्छे और कमजोर के बीज कमजोर हुये। फिर दोनों प्रकार के मटर साथ-साथ बोये गये तब केवल अच्छे वाले मटर पैदा हुये । तिबारा फिर दोनों प्रकार के बीज बोने पर तीन चौथाई कमजोर मटर अलग बोकर देखे गये तो सभी मटर कमजोर व छोटे हुये किन्तु बड़े वाले बीज बोने पर उनमें से कुछ बड़े कुछ छोटे भी । आगे यही क्रम चल पड़ा इससे यह सिद्धांत निकाला गया कि आनुवाँशिक गुण कभी नष्ट नहीं होते। माता-पिता के प्रभावशाली गुण यदि अगली ही पीढ़ियों में व्यक्त हो जाये तो उसका यह अर्थ नहीं होता कि दूसरे गुण व संस्कार दब गये वरन् वे सुप्त संस्कार भी किसी न किसी पीढ़ी में उभरते अवश्य है। डार्विन ह्यूगो डह ब्राइज, विलियम बैटेशशेगरमैक तथा कारेन्स आदि वैज्ञानिकों ने भी इन तथ्यों की पुष्टि कर दी ।

इतना होने पर भी अभी तक यही तय है कि अनुवाँशिक गुणों को अधिकाँश सम्बन्ध केवल शारीरिक रचना से है । माता पिता यदि भूरी आँख वाले है तो उनकी सन्तान की किसी पीढ़ी में भूरी आँख वाले बच्चों का जन्म अवश्यम्भावी है। यह रही शारीरिक गुणों की बात । अभी तक बौद्धिक मानसिक एवं आत्मिक गुणों के बारे में कोई बात निश्चित नहीं हो पाती । जीव जंतुओं में सामाजिकता (सोशल लाइफ इन दि एनीमल वर्ल्ड) के लेखक प्रसिद्ध प्राणि वेत्ता तक ने यह माना है कि प्रेम भावनाओं का उदय क्यों कैसे और कहाँ से होता है यह अभी अनिश्चित है । डॉ॰ क्रू का कहना है अभी तक मानसिक व्यवस्था के बारे में विज्ञान किसी निश्चित निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा। यदि मान ले कि लोगों की विलक्षण मानसिक शक्तियाँ भी वंशानुक्रम है तो अतीन्द्रिय ज्ञान पूर्वाभास और विद्युत गति से भी तीव्र मानसिक सक्रियता को एक सार्वभौमिक मस्तिष्कीय प्रक्रिया का ही प्रमाण मानना पड़ेगा और यह विश्वास करना पड़ेगा कि ऐसी शक्ति मात्र किसी यौगिक साधनों के विकास का फल न होकर एक अनादि तत्व का ही गुण होगी।

श्री सुरेशचन्द्र दत्त के परिवार में उनकी ही तरह कोई विलक्षण बौद्धिक क्षमता वाला व्यक्ति समीपवर्ती तो पाया नहीं बया सम्भव है वह आदि पूर्वजों ऋषियों का अनुवाँशिक गुण रहा हो उस स्थिति में भी वह गुण और कही अनादि समय से ही आया होगा जो एक अनादि चेतन तत्व की ही पुष्टि करता है। श्री दत्त में इस सुप्त गुण का पता जब वे 8 वर्ष के थे तब चला । एक बार एक स्कूल इंस्पेक्टर मुआयने के लिये आये। उन्होंने कुछ मौखिक प्रश्न पूछे श्री सुरेशचन्द्र ने उन्हें सेकेंडों में बता दिये इंस्पेक्टर क्रमशः उलझे गुणक देता चला गया और श्री दत्त उनके सही उत्तर देते रहे । तब कही उन्हें स्वयं भी अपनी इस अद्भुत क्षमता का पता चला । पीछे तो वे 100 संख्या तक के गुणनफल और किसी भी बड़ी से बड़ी संख्या के वर्गमूल (स्क्वैयर रूट) तथा घन मूल (क्यूब रूट) भी एक सेकेण्ड में बता देते थे ।

मस्तिष्क विकास किसी भी वंशानुकूल विज्ञान से जटिल और वैज्ञानिक नियमों से परे है। वह विकासवाद के सिद्धांत पर भी लागू नहीं होता । विज्ञान का कथन है कि जीवों में बुद्धि शरीर और मस्तिष्क के भार के परस्पर अनुपात के अनुसार होता है किन्तु डॉ॰ डीबायर ने उस मान्यता को खण्डित करते हुए बताया कि खरगोश लोमड़ी, कुत्ते तथा घोड़े में क्रमशः 1 व 140 , 1 व 156 , 1 व दृष्टि से खरगोश को अधिक बुद्धिमान होना चाहिये, होता है घोड़ा अधिक बुद्धिमान। उसकी कुछ जातियाँ तो मानवीय बुद्धि जैसी सूक्ष्मता प्रदर्शित करती पाई गई है। अलग-अलग जीवों में तो यह जटिलता और भी बढ़ जाती है जो इस बात का प्रमाण होती है कि मस्तिष्क शरीर से भिन्न विलक्षण पदार्थ है। उसकी क्षमतायें श्री सुरेशचन्द्र दत्त की क्षमताओं से आश्चर्य जनक है। श्री दत्त के प्रदर्शन कोलम्बिया विश्व -विद्यालय तथा अन्य स्थानों में भी हुये इन प्रदर्शनों ने लोगों को एक नई कल्पना और नया विचार दिया भारतीय तत्व दर्शन की व्याख्या करने वाला कोई होता तो सम्भव था कि एक नये विज्ञान की खोज का क्रम तभी चल पड़ता।उस समय यह कौतुक कौतूहल मात्र उत्पन्न करके रह गये-पर वह आज बुद्धिजीवी को यह सोचने को विवश करते हैं कि मानसिक विलक्षणताओं का रहस्य क्या है वे वंशानुक्रम विज्ञान से जोड़े और सम्बन्धित किये जायें ?

ऐसी क्षमताओं वाले एक नहीं इतिहास सैकड़ों ही व्यक्ति हुये है। इतिहास प्रसिद्ध घटना है-एक बार एडिनबरा का बेंजामिन नामक सात वर्षीय लड़का अपने पिता के साथ कही जा रहा था । बातचीत के दौरान उसने अपने पिताजी से पूछा पिताजी मैं किसी दिन, समय पैदा हुआ था पिता ने समय बताया ही था कि दो सेकेण्ड पीछे बैजामिन ने कहा-तब तो मुझे जन्म लिये इतने सेकेण्ड हो गये । पिता ने आश्चर्य चकित होकर देखा तो उसमें 17800 सेकेण्ड का अन्तर मिला । किन्तु बैजामिन ने तभी हँसते हुये कहा पिताजी आपने सन् 1820 और 1824 के दो लीप-ईयर के दिन छोड़ दिये है। पिता भौचक्का रह गया बालक की विलक्षण बुद्धि पर दुबारा उतना घटाकर देख गया तो बच्चे का उत्तर शत प्रतिशत सच निकला । यह घटना मायर की पुस्तक ह्यूमन पर्सनालिटी में दी गई है और प्रश्न किया गया है कि आखिर मनुष्य अपने इस ज्ञानस्वरूप की वास्तविक शोध कब करेगा ? मापर्स ने लिखा है जब तक मनोविज्ञान की सही व्याख्याएं नहीं होती विज्ञान की शोधें अधमरी और मनुष्य-जीवन के उतने लाभ की नहीं होंगी जितनी कि अपेक्षा की जाती है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles