एक और विकासवाद-सत्य पर अदृश्य

July 1971

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मनुष्य का शरीर जिन छोटे-छोटे कोशों से बना है इनमें ही उसके शारीरिक रचना के सूत्र विद्यमान होते हैं। इन्हें वंश सूत्र का गुण सूत्र (क्रोमोसोम ) कहते हैं। क्रोमोसोम भी लक्षण बीज (जीन्स) से बने होते हैं। पैडीदार सीढ़ी की शक्ल के अत्यन्त सूक्ष्म यह लक्षण बीज (जीन्स) ही जीवों की रचना के उत्तरदायी होते हैं। जब तक इनमें विशेष परिवर्तन न हो तब तक विधाता ने जो बात पहले से तय करदी हे मनुष्य उन्हें पालन करने को बाध्य होगा अर्थात् सौन्दर्य, सुडौलता,स्वास्थ्य आरोग्य, कालापन या गोरापन ,बुद्धिमता-मूर्खता , कवित्व, नेतृत्व आदि का जो भी भाग्य भगवान् ने कहिये या प्रकृति ने निर्धारित कर दिया वह उन भाग्य की लकीरों को आसानी से बदल ले।

वैज्ञानिकों ने वह उपाय खोजे जिनसे लक्षण बीजों में परिवर्तन करके शरीर और मन के आकार प्रकार में परिवर्तन किया जा सके। इस क्रिया को आकस्मिक परिवर्तन या (क्यूटेशन) कहते हैं। जीन्स अत्यन्त सूक्ष्म तत्व है उनका भेदन उससे भी सूक्ष्म प्रकाश किरणें ही कर सकती है। क्यूटेशन क्रिया में “एक्स” अथवा कास्मिक किरणों की बौछार जीन्स पर की जाती है। जिससे बौछार किये गये प्राणी और बच्चों पर विलक्षण परिवर्तन होते हैं शरीर और मन के आकार प्रकार के परिवर्तन का और दूसरा उपास नहीं।

यदि है तो वह है विकासवाद का सिद्धांत-एलाल्यूशन थ्योरी-डार्विन, लेम्मार्क आदि का मत है कि मनुष्य एक कोशीय जीवों से प्राकृतिक परिवर्तनों के रूप में क्रमशः विकसित होता हुआ आज इस रूप पहुँचा है। उदाहरण कि लिये वर्तमान घोड़े को लोमड़ी जैसे किसी जीव का विकसित रूप मानते हैं जैसे-जैसे उस जीव की इच्छाओं में परिवर्तन होता गया शरीरों में भी परिवर्तन होता गया। इस दृष्टि से इच्छा संकल्प शक्ति को प्रकाश किरणों में भी सूक्ष्म वेधक शक्ति मानना विज्ञान सम्मत ही होगा।

अब यहाँ एक घटना दी जा रही है पेन्सिल वेनिया के मुर्गीखाने में एक मुर्गी ने अण्डे दिये अण्डे देने के बाद तथा उन्हें सेने के बाद मुर्गी आश्चर्यजनक ढंग से बदलने लगी। नये पंख , चमकदार गर्दन , मुर्गे की तरह की सिर पर कलंगी, लम्बी पूँछ अतिरिक्त उसके पैरों में तीन-तीन एड़ियां भी निकल आई। इस मुर्गों के मालिक डॉ॰ एम एस गिलैस्पी ने उसे ब्रुकलिन अजायबघर को दे दिया जहाँ उसे लोग उसकी मृत्यु हो जाने तक देखने आते रहे।

इस मुर्गी पर किन्हीं किरणों की बौछार नहीं की गई। उसकी इच्छा शक्ति ने सद्यः परिवर्तन का रूप ले लिया हो यह बात भी समझ में नहीं आती जबकि विकास बाद के सिद्धांत के अनुसार यह इन दो कारणों में से ही होना चाहिये इससे तो यही मानना पड़ेगा कि कोई एक अदृश्य इच्छा शक्ति प्रकृति में ही काम कर रही है उसी की प्रखरता मुर्गी में परिवर्तन में रूप में प्रस्तुत हुई हो। क्योंकि यदि अदृश्य लोकों की किरणों की बौछार की बात सोची जाये तब तो वैसे ही परिवर्तन उसके बच्चों और पास के अन्य जीवों पर भी होता पर वैसा नहीं हुआ। तब निश्चित ही यह प्रकृति की चेतन इच्छा व संकल्प शक्ति से ही ऐसा हुआ अतएव हमें स्थूल पदार्थों में भी चेतनता को अमान्य नहीं करा चाहिये। सावित्री की उपासना इस चेतना से संपर्क और उसका आशीर्वाद प्राप्त करने का ही वैज्ञानिक तरीका है उससे वंचित नहीं रहना चाहिये।


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