व्यक्तिगत अस्तित्व की महत्ता

July 1971

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व्यक्तिगत अस्तित्व की महत्ता-

बनते हुए विशाल भवन के पास लगे ईंटों के ढेर ने कहा-’गगनचुम्बी अट्टालिकाओं का निर्माण हमारे अस्तित्व पर आधारित है उसका शिलान्यास ही न हो तो कई मंजिलों की बात तो दूर रही एक दीवाल का खड़ा होना मुश्किल है भवन के आकार और आधार का श्रेय हमें ही तो है।’

गारे ने ईंटों की गर्व भरी वाणी सुनी तो उस पर न रहा गया ‘इतना झूठ क्यों बोलते हो। क्या तुम नहीं जानते कि एक सूत्र में पिरोकर , ईंट जोड़कर सुदृढ़ता प्रदान करने का श्रेय हमें ही है गारे के अभाव में ईंटों का ढेर ठोकर मारकर गिराया जा सकता है।’

किवाड़ और खिड़कियों ने भी प्रतिवाद किया-’गारे भाई ! यह कौन नहीं जानता कि ईंटों का जोड़ जोड़कर तुम दीवारें खड़ी करते हो । पर यदि उस मकान में खिड़की , दरवाजे न होंगे तो रहने को भी कौन तैयार हो जायेगा । ऐसे असुरक्षित मकान में कोई मुफ्त में भी रहने को तैयार न होगा । भवन की पूर्णता तो हम पर ही निर्भर करती है।’

शिल्पी उनकी बात चुपचाप सुन रहा था वह बोला-’आप लोगों में भले ही कितनी ही पारस्परिक सहयोग की भावना बढ़ जाये पर सबको एक सूत्र में पिरोने वाला तो मैं ही हूँ यदि मेरा हाथ न लगे तो ईंटें गारा और किवाड़ अपने अपने स्थान पर ही पड़े रहेंगे । मेरे शिल्प के बिना आपका कोई अस्तित्व नहीं ।’

और भवन ने फिर एकबार सोचा-’ सह-अस्तित्व के अभाव में व्यक्तिगत अस्तित्व का कोई महत्व नहीं है । झूठे अभिमान को छोड़कर दूसरों के महत्व को भी समझना चाहिये ।’


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