सूक्ष्म शरीर की सत्ता और उसकी महान महत्ता

July 1971

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एक तो युद्ध स्थल , उस पर घनघोर अँधेरी रात और भयानक शीत ऐसा लगता था वीभत्सता साकार होकर व्याप्त हो गई हो। एक तम्बू के अन्दर कुछ सैनिक कोयले की अँगीठी जलाये बैठे आँच ले रहे है। उनका वायरलैस सेट पास ही रख है। युद्ध अभी खामोश है इसलिये सब अपने-अपने घरों की याद कर रहे है ऐसी ही चर्च में वक सब संलग्न है तभी वायरलैस पर कमाण्डर का हुक्म आता है अपनी उत्तर वाली चौकी की सहायता के लिए तुरन्त प्रस्थान करो ।

घटना जम्बू कश्मीर की है सन् 1661 जब भारत का पाकिस्तान युद्ध हुआ । यह सभी जवान जिस स्थान पर बैठे है वहाँ से 15 मील दूर है। सवेरा होने से पहले ही वहाँ पहुँचना है सवेरा हो जाने पर दुश्मन देख सकता था मार सकता था अतएव कैसी भी कठिनाइयों में सवेरा होने तक चौकी पहुंचना आवश्यक था। अतएव वहाँ से उसी प्रकार तत्परता पूर्वक आगे बढ़े जिस तरह मृत्यु को कभी न भूलने वाले योगी मनुष्य जीवन को अस्त व्यस्त तरीके से नहीं व्यवस्थित अनुशासन पूर्वक और तत्परता से जीते हैं।

13 नवम्बर की बात है। ठण्डक के दिन थे। 10 सिपाहियों की छोटी सी टुकड़ी अपने अस्त्र सँभाले नक्शे के सहारे आगे बढ़ रही थी । वायरलैस से कमाण्ड पोस्ट का संपर्क बना हुआ था । संवादों का आदान प्रदान भी ठीक ठीक चल रहा था कि एकाएक ऐसा स्थान आ पहुँचा जहाँ से आगे बढ़ना नितान्त कठिन हो गया । सारा स्थान बर्फ से ढक गया था । युद्ध में सैनिक नक्शों में नदी नाले , टीले, वृक्ष आदि संकेतों के सहारे बढ़ते हैं पर बर्फ ने पृथ्वी के सभी निशान मिटा डाले थे । पदी झरने सब जम चुके थे । पेड़ पौधे तक बर्फ से ढके थे ऐसी स्थिति में आगे बढ़ना मुश्किल हो गया । सभी सैनिक निस्तब्ध खड़े रह गये सोच नहीं पा रहे थे क्या किया जाये ?

कहते हैं युद्ध के समय अदृश्य आत्माओं की भावनाओं की संवेदनशीलता बढ़ जाती है। द्वितीय महायुद्ध के दौरान अतीन्द्रिय अनुभूतियों , मृतात्माओं के विलक्षण क्रिया-व्यापार सम्बन्धी सैकड़ों घटनाओं के प्रामाणिक विवरण सैनिक रिकार्डस (डाकू मेन्स) में पाये जाते हैं। यह घटना भी उसी तरह की है और प्रकाश डालती है कि मृत्यु के बाद भी आत्मा का चेतन शरीर का नाश नहीं होता । यदि आत्मा का चेतन शरीर का नाश नहीं होता । यदि आत्मा तुरन्त मृत्योपरान्त नींद में नहीं चली जाती और उसकी कोई प्रबल कामना भी नहीं होती तो वह साँसारिक कर्तव्यों में जीवित व्यक्तियों को जीवित व्यक्तियों की भाँति ही सहायता पहुँचा सकती है। यह घटना उस तथ्य की पुष्टि में ही दी जा रही है । इस टुकड़ी में जो दस सैनिक थे उन्हीं में से एक श्री गिरिजानन्द झा-मस्ताना के द्वारा प्रस्तुत यह घटना 1662 के एक धर्मयुग अंक में भी छपी थी।

अभी सैनिक इस चिन्ता में ही थे कि अब किस दिशा में कैसे बढ़ा जाये कि किसी की पर ध्वनि सुनाई दी । अब तक आकाश में चन्द्रमा निकल आया। आशंका से भरे सैनिकों ने देखा सामने एक ऑफिसर खड़ा है। कन्धे पर दो स्टार देखने लगता था वह लेफ्टिनेंट है । देखते ही सैनिकों ने उन्हें सैल्यूट किया । सैल्यूट का उत्तर सैल्यूट से ही देकर लेफ्टिनेंट बोले-देखो आगे का रास्ता भयानक है तुम लोगों को कुछ मालूम नहीं है। चौकी दूर है सवेरा होने में कुल चार घन्टे बाकी है इसीलिये बिना देर किये तुम लोग मेरे पीछे पीछे चले आओ । यह कहकर वे पीछे मुड़े-सैनिकों ने देखा लेफ्टिनेंट साहब की कमीज में पीठ पर गोल निशान है लगता था उतना अंश जल गया था ।

बिना किसी नक्शे के सहारे लेफ्टिनेंट साहब आगे आगे ऐसे बढ़ते जाते थे मानो वह सारा क्षेत्र उनका अच्छी तरह घूमा हुआ हो । सिपाही परेशान भी थे और चिन्तित भी कि यह अजनबी ऑफिसर इस इलाके के इतने माहिर क्यों है। कभी कभी आशंका भी हो जाती थी कि कहीं कोई दुर्घटना तो होने वाली नहीं है । चुपचाप चलने में खामोशी और उदासी सी अनुभव हो रही थी। उस उदासी करे दूर करते हुये कमाण्डर ने बताया-मेरी पीठ पर यह निशान जो तुम लोग देख रहे हो वह कल की गोलाबारी का है- हम लोग हमले की तैयारी में थे तभी पाकिस्तानी सेना ने गोलाबारी शुरू कर दी ।सब लोग जमीन पर लेट गये, तभी एक बम आकर मेरी उधर आकर फटा । उसी का एक टुकड़ा पेरी पीठ पर आकर गिरा कमीज जल गई । इससे आगे कुछ और कहने से पूर्व उन्होंने बातचीत का रुख मोड़कर कहा -तुम लोग शायद आत्मा की अमरता पर विश्वास न करते हो पर मैं करता हूँ मरने के बाद आत्मायें’ अपने जीवन विकास की तैयारी करती है, जिसकी जो इच्छायें होती है उसी तरह के जीवन की तैयारी में वे जुट जाती है कोई इच्छा न होने पर भगवान् अपनी ओर से प्रेरित करके उसे आगे के क्रम में नियोजित करते हैं।”

बातचीत करते करते रास्ता कट गया और रात भी । जिस चौकी पर पहुँचना था वह कुछ ही फर्लांग पर सामने दिखाई दे रही थी ऑफिसर रुका, उसके साथ ही सभी सिपाही भी रुक गये उसने पीछे मुड़कर कहा-देखो अब तुम लोग अपने स्थान पर आ गये अब तुम लोग जाओ हम यहाँ से आगे नहीं जा सकते । सैनिकों ने सैल्यूट किया और आगे की ओर चल पड़े । ऑफिसर ने सलामी ली पर आगे नहीं बढ़ा। सैनिकों ने उस गज आगे जाकर फिर पीछे की ओर उत्सुकता पूर्वक देखा कि साहब किधर जा रहे है किन्तु वे आश्चर्य चकित थे कि वहाँ न तो कोई साहब था और न ही कोई व्यक्ति। दूर दूर तक दृष्टि दौड़ाई पर कही कोई दिखाई न दिया ।

सिपाही चौकी पर पहुँचे जहाँ कमाण्डर उनकी प्रतीक्षा कर रहा था । रात में वायरलैस संपर्क टूट गया था सैनिक कमाण्डर ने आते ही -पूछा-तुम लोग इस बीहड़ मार्ग में इतनी जल्दी कैसे आ गये । तो उन्होंने बताया कि एक लेफ्टिनेंट इन्हें यहाँ लेकर आये वे एक फर्लांग पहले कही अदृश्य हो गये।

लेफ्टिनेंट ?-उन्होंने आश्चर्य पूर्वक कहा यहाँ तो कोई भी लेफ्टिनेंट नहीं तुमको जिस व्यक्ति ने रास्ता दिखाया उसका हुलिया क्या था । सिपाहियों ने एक ही हुलिया बताया, कमाण्डर आश्चर्य चकित रह गया उनका कथन सुनकर, क्योंकि जिस लेफ्टिनेंट के बारे में उन्होंने बताया उनकी एक दिन पूर्व ही इसी स्थान पर गोला लगने मृत्यु हो गई थी।

वेद भगवान का कथन है-

इयं कल्याण्यअजरा मर्त्यस्यामृता गृहे। यस्मै कृता शये स यश्रकार जजार स॥ अथर्व वे 1 0।8।2

अर्थात्-मर्त्य शरीर में रहने वाली यह चेतना आत्मा अजर (जो कभी वृद्ध नहीं होती ) अमर (जिसका कभी नाश नहीं होता ) है । जो उसे प्राप्त करता है वह सुखी होता हैं

बन्धन और मुक्ति जैसे दर्शन की खोज करने वाला भारतीय योगियों ने प्रत्यक्षतः वह योग साधनायें भी विकसित की है जिनसे अपने प्राण शरीर को नियन्त्रित व स्थूल पदार्थों तथा स्थूल शरीर का इच्छानुसार उपभोग भी किया जा सके । परकाया-प्रवेश ( अपने शरीर से प्राण निकाल कर किसी शव में प्रवेश करके उसे जिन्दा कर देना ) तथा दूर की वस्तुओं को भी गुप्त रूप से उठा जाना आदि प्राण पर नियन्त्रण की ही सिद्धियां । योग उपनिषदों में उसकी विस्तृत व्याख्याएं है। योगवशिष्ठ 6।1।82।26 से 32 मंत्रों में भी बताया है-

रेचाकाभ्यासयोगेन जीवः कुण्डलिनी गृहात। उद्धृत्य योज्यते यावादामोदः पवनादिव॥

इति सिद्विश्रियं भुक्त्वा स्थित चेत्तद्वपुःपुनः। प्रविश्यन्ते स्वमन्यद्वा यद्यत्तात विरोचते॥

अर्थात्-रेचक प्राणायाम के अभ्यास से योगी । अपने प्राण कुण्डली में ऐसे ही ले आते हैं जैसे फूल से उसकी। सुगन्ध निकाल ली जाये उस स्थिति में शरीर निष्क्रिय चेष्टा रहित हो जाता है। उस अवस्था में शरीर को लकड़ी और पत्थर की भाँति त्यागा जा सकता है और किसी भी मुर्दा शरीर में सवार होकर फिर से जीवित मनुष्य के समान गतिशील भी हुआ जा सकता है।

यह घटना उपरोक्त तथ्य का प्रमाण है। गोला लगने के बाद लेफ्टिनेंट की मृत्यु हो गई युद्ध के समय कोई इच्छा या मन में वासना न होना स्वाभाविक है उस समय चित्तवृत्तियाँ एकाग्र रहती है ध्यानस्थ एकाग्रता के साथ हुई मृत्यु के बाद लेफ्टिनेंट की जीवात्मा को मृत्यु के बाद की नींद नहीं आई उस समय भी उन्हें अपने कर्तव्य का भाव बना रहा । उन्होंने देख कि इन सैनिकों को सहायता की आवश्यकता है तभी उन्होंने अपने ही मृत शरीर में फिर से अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति द्वारा प्राणों को प्रवेश कर उससे उतनी देर काम ले लिया । टूटे फटे शरीर को यद्यपि देर तक साधे रहना कठिन था तथापि प्राण शक्ति द्वारा उतनी देर तक पूर्व शरीर को काम में लेकर उन्होंने देश भक्ति और कर्तव्य भावना का आदर्श रखा साथ ही सूक्ष्म शरीर की सत्ता और उसकी महान महत्ता को भी प्रमाणित कर दिया ।


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