Quotation

July 1971

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

पृथ्वी से हम सब परिचित है पर अपने भीतर विद्यमान देवलोक को कोई नहीं जानता ।

इसे उन्होंने आध्यात्मिक तथा भौतिक विचार धारा के मध्य की विभाजन रेखा कहा है अर्थात् हृदय चक्र से ऊपर तक विकास हो जाने पर फिर मनुष्य की अधोगति नहीं हो सकती।

पाँचवाँ केन्द्र गला और छठवां केन्द्र भू मध्य मानने का मतलब विशुद्वाख्य तथा आज्ञा चक्र की उपस्थिति की ही पुष्टि होती है। सातवाँ केन्द्र सहस्रार के बारे में उन्होंने लिखा है कि यह केन्द्र शिर की चोटी पर मुकुट के रूप में अवस्थित है उसको पाने के बाद मनुष्य देवत्व में बदल जाता है।

“एटानामी एण्ड इमोशन” के लेखक डॉ॰ हैजेल ने भी स्वीकार किया है कि मनुष्य जीवन को प्रभावित करने में अंतःस्रावों (हारमोन्स) का बहुत अधिक महत्व है यह काम इन ग्रंथियों से ही सम्बन्धित होते हैं दोहरा काम करते हैं एक ओर शरीर की व्यवस्था दूसरे उनकी भावनाओं से तालमेल। यह भाव और पदार्थ के बीच की कड़ी है जब मनुष्य उन्हें जानकर उनका आत्म विकास में प्रयोग करता है तब वह इतिहास का असाधारण व्यक्ति बन जाता है। यह ग्रन्थियाँ “माइक्रोकास्म” पदार्थ की बनी होने से वह आकाशस्य नक्षत्रों से प्रभावित होती है इसलिये उन्होंने इन्हें अंतर्नक्षत्र (इन्टीरियर स्टार्स) से सम्बोधित किया है। और

पैरासेल्सस का कथन है-स्वर्ग हमारे अन्दर है यदि इन अंतःस्रावी ग्रंथियों और नाडी केंद्रों का विमोचन किया जाये तो विराट् विश्व को अपने शरीर में ही प्राप्त किया जा सकता है। वेद का कथन भी यही है-

सप्ताम्यासन्परिधयस्त्रियः सप्त समिधः कृताः। देवा यद्यज्ञ तन्वाना अब ध्नपुरुशं पशुम्॥

यत्पुरुशेण हविशा देवा यज्ञमतन्वत। बसन्ताअस्या सीदाज्यं ग्रीश्म इध्मः शरद्वविः॥ --यजुर्वेद 31।15-14

अर्थात्-यज्ञ वेदी की सात परिधियां इक्कीस समिधायें है ऐसे यज्ञ को देवताओं ने फैलाया है उसमें पशु (जीव) बँधा है। और देवताओं की इच्छानुसार तीन ऋतुओं में जीवन की हवि चढ़ाता रहता है। जो वाह्य कामनाओं को समेट कर इन शक्तियों को ऊर्ध्वगामी बनाते हैं वे देवत्व को प्राप्त करते हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118