मृत्यु बनाम वृद्धावस्था

July 1971

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मृत्यु बनाम वृद्धावस्था-

वृद्धावस्था अपनी काँपती गर्दन और झुकी कमर को सम्भाल ही रही थी तब तक मृत्यु ने आकर पूछा-’क्यों डर रही हो बहिन ! झुककर मेरी दृष्टि से तुम बच तो नहीं सकतीं ।जीवन में एकबार हमारा तुम्हारा मिलन तो निश्चित ही है इसे तो संसार का कोई भी व्यक्ति नहीं टाल सकता। तुम्हीं उससे कैसे बच सकती हो।

वृद्धावस्था ने कराहते हुये कहा-’मैं तो कब से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही थी। मेरे झुकने का उद्देश्य तुम्हारी दृष्टि से बचना नहीं है। संसार के ऋण से मेरी कमर झुक गई है जीवन भर मैं संसार से लेती ही रही पर उसका सहस्रांश भी तो चुका नहीं पाईं। इसीलिए तो मेरी कमर ऋण भार और गरदन ग्लानि से झुक गई है। सोचती हूँ यह ख्याल पहले जब मैं युवा थी तभी आ गया होता तो कितना अच्छा होता । मृत्यु बोली अब जो भूल हुई उसे अगले जन्म में मत दोहराना कहकर उसने वृद्धावस्था पर प्रहार किया और उसका अन्त कर दिया।


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