रामानुजाचार्य ने अपने गुरु से एक मन्त्र प्राप्त किया, पर मन्त्र देते समय गुरू ने कह दिया था -’इस मन्त्र का रहस्य किसी भी न बताना । रामानुजाचार्य ठहरे उदार स्वभाव के व्यक्ति। उन्होंने अपने अनेक भक्तों को मंत्र दीक्षा देकर उस मंत्र का रहस्य बता दिया।
गुरु ने अपनी आज्ञा की अवहेलना देखी तो रुष्ट हो गये। ‘तुमसे मना कर दिया गया था फिर भी तुम नहीं माने और उस मंत्र का रहस्य सबको बता ही दिया। अब तुम्हारी दुर्गति होगी।’
रामानुज ने अपने गुरु की रोषपूर्ण बात सूनी तो चिन्तित हो गये उन्होंने स्वाभाविक रूप में गुरुदेव से प्रश्न किया-’मुझे तो दुर्गति मिलेगी ही पर जिन्होंने मंत्र दीक्षा ली है उनका क्या होगा ?’
‘यदि उन्होंने श्रद्धा पूर्वक मंत्र ग्रहण किया है तो सद्गति प्राप्त होगी !’
‘भगवान् ! यदि इतने लोगों को सद्गति प्राप्त होने के कारण मुझे दुर्गति मिलने वाली हो तो मेरे लिए चिन्ता की कोई बात नहीं।’ रामानुजाचार्य ने बड़ी नम्रता पूर्वक कहा।