कोर्ट मार्शल के सम्मुख तात्या टोपे को उपस्थित करने के बाद अँग्रेज न्यायाधीशों ने पूछा ‘यदि तुम चाहो तो अपने बचाव में कुछ कह सकते हो ।’ तात्या टोपे का स्वाभिमान जाग उठा उसने कहा-’मैंने ब्रिटिश शासन से टक्कर ली है । मैं जानता हूँ कि इसके बदले मुझे मृत्यु दण्ड प्राप्त होगा। मैं केवल ईश्वरीय न्याय और न्यायालय में ही विश्वास रखता हूँ इसलिये अपने बचाव के लिये मैं कुछ नहीं कहना चाहता । तात्या को जब फाँसी स्थल पर ले जाया गया तो उसने कहा ‘तुम लोग मेरे हाथ पैर बाँधने का कष्ट क्यों करते हो लाओ फाँसी का फन्दा मैं स्वयं ही अपने गले में डाल लूँ ।’ इन अंतिम शब्दों के साथ सत्तावन के स्वतन्त्रता संग्राम का वह सेनानी अमर हो गया।
जिसमें प्रगति की इच्छा नहीं वह मुर्दा है, जिसमें इच्छा है पर साहस नहीं वह मुर्दे का भी मुर्दा है।--लिंकन